प्यारी डायरी
प्यारी डायरी
प्रिय डायरी, हालत कुछ ऐसे हैं की मेरे पास कुछ लिखने के लिये ख़ास कुछ नहीं पर बहुत कुछ भी है। घर पर ही हूँ ऑफ़िस जाना नहीं हो रहा क्यूँकि बारी बारी से जाना है। खुशी की बात ये है की अपने परिवार के साथ हूँ... आजकल फिर से पाक कला की निपुणता की जाँच हो रही है। फ़ुरसत से सुन रही हूँ कैसा बना क्यूँ बना इत्यादि तब महसूस हुआ की घर और ऑफ़िस के बीच जिम्मेदारियाँ निभाते निभाते ये छोटी छोटी नोक झोंक... टीका टिप्पणी ख़त्म सी हो गई थी।
घर और बहार की जिम्मदारियों में हम संतुलन और संयम खो रहे थे और किसी भी टीका टिप्पणी पर गौर करने की बजाए लड़ने लगे थे। किसी समस्या से लड़ने के लिये ही सही हम घर पर एक साथ हैं और धीरे धीरे संयमित भी हो रहे हैं। नौकरी से जो समय अभाव उत्पन्न हुआ था और उस समय अभाव से दिलों में दूरियाँ... अब धीरे धीरे दूरियों के गिलेशियर पिघलने लगे हैं। फिर प्रेम और घनिष्ठता का वातावरण हो गया है... घर की मेड को छुट्टी देने से सभी मिलजुल कर कार्य कर रहे हैं। अपनत्व बढ़ रहा है। मेरी प्रिय डायरी मुझे मेरा घर धीरे धीरे वापस मिल रहा है। मेरा भी कद धीरे धीरे बढ़ रहा है। प्रिय डायरी कुछ लिखने को ना होने पर भी बहुत कुछ लिखने को मन कर रहा है।