प्यार तो होना ही था

प्यार तो होना ही था

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उसने कहा था, "मुझे लाइब्रेरी में मिलोगे शाम को ।..असल में मुझे एक किताब की जरूरत है और फिर उसमें से नोट्स भी बनाने है....कुछ देर इकट्ठे बैठ कर डिसकस कर लेंगे ।"

मेरा दिल धड़कने लगा, पूरे शरीर मे एक उत्साह फैल गया । कितने ही दृश्य दिमाग मे घूमने लगे, कितने ही अर्थ मैं उसके शब्दों को सुनकर खोजने लगा ।

“शायद उसे इस बात का अहसास हो गया है, कि मैं उसके बारे में किस नजरिये से सोचने लगा हूँ । "

कितना कोमल सा नाम था ‘सलोनी ‘| जैसे किसी ने मलमल के कपडे पर हाथ फिरते हुए सोचा हो |

" अभी उस दिन कैंटीन में जब सब दोस्त गोल घेरा बनाकर बैठे थे और एक दूसरे की बातों में मग्न थे तो मैं उसकी हंसी, हाव भाव और प्यारे से चेहरे में लगातार डूबा जा रहा था । उसकी बालों की एक लट बार बार उसके चेहरे पर आती और वो उसे अहिस्ता से अपने हाथ से हटाकर कान के ऊपर टिका देती | जैसे फूल बार बार बार कोई भंवरा मंडरा रहा हो | शायद मेरे पास ज्यादा रूपक नहीं थे इस बात को और भी रूमानी ढंग से कहने के लिए पर बस मै पूरी तरह डूबा था उसके चेहर में , हिलते हुए होठों में , आती जाती मुस्कुराहट में | एकदम उसने मेरी तरफ देखा |शायद वो भी कही और देखने का बहाना कर रही थी या शायद मेरी लगातार पड़ती नजर ने उसके चेहरे पर गुदगुदा दिया हो | वो मुस्कुराई और अपनी आँखों के इशारे से जैसे पूछा हो'क्या देख रहे हो ।'उसकी आँखों का इशारा मेरे शरीर मे कंपकपी छोड़ गया । उसकी ये बेबाकी दिल की गहराई तक पहुंची । मैंने एक गहरी सांस ली । सब अपनी बातों में मग्न थे पर हम दोनों शायद बिना बोले ही एक दुसरे से बात कर रहे थे |

उस पल के बीत जाने के बाद जब हम अपने अपने होस्टल चले गये उसके बाद पूरी शाम और पूरी रात बड़ी बेचैनी में गुजरी | सपने में न जाने मै उसे कितना कुछ कह गया था उसे पर शायद मेरी आवाज उस तक पहुँच ही नहीं रही थी | मै हडबडा कर उठा था अगले दिन | अपने तकिये को बाँहों में लेकर मुस्कुराया था |

अगले दिन क्लास में एक कागज लेकर वो मेरे पास पहुंची थी ।'यार इसमे कुछ नए गानों की लिस्ट है,मुझे ये रिकार्ड करवाने हैं,क्या तुम करवा दोगे ।' उसके संबोधन में कितना अपनापन लगा मुझे |

'क्यो नही, जरूर, यूनिवर्सिटी के गेट के सामने बने शॉपिंग काम्प्लेक्स में है एक दुकान रिकार्डिंग की है , सी डी , कैसेट सब मिलता है, नए से नया गाना,बिल्कुल लेटेस्ट । सब मिल जायेंगे । "मैंने लिस्ट में वेंगाबॉयज और जॉर्ज माइकल के गाने देखकर कहा ।

उसने थैंक्यू कहा तो उसकी आवाज मेरे कानों में अलका याग्निक की तरह घुल गयी दिल को काबू करते हुए जैसे मैं पिघला जा रहा था । फिर कभी कुमार सानू के गीत होते तो कभी गजलों की लिस्ट । समय जैसे अपना कोई गीत हमारे बीच बुनता हुआ गुनगुना रहा हो ।

पूरे छह महीने हो गए थे यूनिवर्सिटी में उसके साथ क्लास,काफी और गपशप एटेंड करते । सीनियर्स के साथ सिनेमा भी देखा और कैंटीन में दोस्तों की महफ़िले भी इंजॉय की । जिनगी को जैसे पर लग गये थे | आस पास सब कुछ बड़ा कूल लग रहा था | अचानक बैठे बैठे गुनगुनाने लगता | जैसे हर पल कोई मेरे साथ था |

यूनिवर्सिटी में आने के एक हफ्ते बाद ही तो उसे देखा था । एडमिशन लेट थी उसकी शायद । मैं डिपार्टमेंट में क्लास के बाहर खड़ा सर के आने का इंतजार कर रहा था जब सलोनी ने मुझे बुलाया ।"एक्सक्यूज़ मी, क्या आप फर्स्ट ईयर में हैं ? मेरा नाम सलोनी है और मै फर्स्ट इयर में ही आई हूँ |”

गोरा रंग, गुड़िया जैसा पतला मासूम चेहरा । काले घुंगराले बाल । जैसे कस्तूरी की महक पूरे वातावरण में घुल गयी हो । किसी ने कहा था कि फर्स्ट इम्प्रैशन इज द लास्ट इम्प्रैशन । वो गाना है न...."पहली नजर में कैसा जादू कर गया..."। उस दिन बाहर बारिश हो रही थी । सितम्बर के पहले हफ्ते की बारिश ।

मेरे कपड़े सूखे थे लेकिन जैसे मन भीग रहा था, नाचा था जैसे बारिश के संगीत के साथ ।

बस मैं उस दिन से न जाने क्यो सलोनी को लेकर कितना कुछ सोचने लगा ।

मैं अक्सर शाम को लाइब्रेरी जाता था । कभी कभी दोस्तो के साथ गर्ल्स हॉस्टल की तरफ चक्कर लगाता ।हमारे सीनियर्स और क्लासमेट वहाँ बाहर इकट्ठे होते । वही एक किनारे बैठ कर गप्पे हांकते । धीरे धीरे हम सब क्लासमेट भी आपस मे घुल मिल गए । कुछ जोड़ियां बन गयी या कुछ लोग इसे सेटिंग भी कह सकते हैं |कुछ घूमने के लिए यूनिवर्सिटी की लोकल बस पकड़ते या अपनी मोटर साइकिल लेकर और अपने जोड़ीदार को साथ बैठाकर सिटी जाने लगे । सलोनी भी एक एडवांस लड़की थी मतलब ये घूमने फिरने को लेकर कोई हिचक नहीं थी उसे , पर पढ़ाई को लेकर भी सिंसियर थी । उसे वही युनिवर्सिटी में पेड़ों की छाव से घिरी कंक्रीट की सडक पर दोस्तों के साथ चलना अच्छा लगता | हम में से चार पांच सीनियर जूनियर मिलकर शाम को कुछ दूर तक टहला करते | फिर धीरे धीरे उसमे से भी जैसे दोस्ती गहराने लगी और हम या शायद मै कुछ बाते अलग से करने की सिर्फ सलोनी के साथ करने की चाहत रखने लगा | शायद उसने भी ये महसूस किया हो | मैं वीकेंड पर घर कम ही जाता था | लाइब्रेरी में ज्यादा समय बिताता था छुट्टी के दिन और फिर क्लास की डिस्कशन में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लेता था । इसका फायदा ये हुआ कि हम भी नजदीक आने लगे | उसे ये सब जैसे अच्छा लगता | उसे कभी नोट्स शेयर करने होते तो कभी शाम को यूनिवर्सिटी के कैफे हाउस में दोस्तो के साथ मिलते । उसके लिए मै पढने लिखने वाला लड़का भी था| मेरे लिए वो क्या थी वो बस मै जानता था |

अब मैं सिर्फ उसके साथ ही बाते करने के लिए समय चाहता था । बस वो और मैं और तन्हाई ।

लाइब्रेरी के रीडिंग रूम से भी ज्यादा तन्हाई किताबों की अलमारियों के बीच होती है जहाँ भीड़ नही जुटती । हमें भी ऐसी ही एक स्पेस चाहिए थी जिसमे हम एक दुसरे की साँसों की आवाज भी सुन सके | ‘सांसों की माला पे सिमरु मै .....पी का नाम ‘ जैसे मेरे मन में गूंजा करता |

आंखे, अहसास और आकर्षण हम दोनों में बहुत कुछ न कहकर भी शायद हमारे अनकहे शब्दों को एक दूसरे के सामने उघड़ने लगा था । अब कई बार हम सुबह डिपार्टमेंट में मिलते तो हाथ मिलाते ।

ओह जैसे किसी गुलाब के फूल को हाथ मे ले लिया हो ,जी करता कि कुछ देर हाथ को हाथ मे ही पकड़े रहूं । पर अभी झिझक के पर्दे हमारे बीच टँगे हुए थे । दोस्त समझने लगे थे कि हम दोनों में कुछ चल रहा है । वैसे भी सब किसी न किसी के साथ अटैच थे ।

दोस्ती और प्रेम में बहुत बारीक फर्क होता है । दोस्त मिलते हैं तो उन्हें एकांत हो न हो, कोई फर्क नही पड़ता पर प्रेमी एकांत ढूंढते हैं । यूनिवर्सिटी की इमारतों के कितने कोने, और कितने एकांत प्रेम से घिरे ये बताते कि अब रिश्ता एक खास मोड़ पर है ।

तो नोट्स, मुलाकातें और गानों की कैसेट भरवाते, हाथ मिलाते एक दुसरे को गुनगुनाते मैं और सलोनी भी एक खास अहसास की ओर बढ़ रहे थे । कितना कुछ इस अहसास को सजा रहा था । अचानक मुझे जगजीत सिंह, गुलाम अली और नुसरत फतेह अली खान के गीत अच्छे लगने लगे । होस्टल के मेरे कमरे में अक्सर गीत गूंजा करते ।

"तेरे आने की जब खबर महके, तेरी खुशबू से सारा घर महके.....,

'उनकी गली में आना जाना,आदत सी हो गई है......, ' और या फिर गुलाम अली की गजल कि

'राज की बाते लिखी और....खत खुला रहने दिया ।' ऐसा लगता जैसे दिल की भावनाएं और लहरों में मैं बहता चला जा रहा हूँ । अकेले रहना अच्छा लगने लगा था । शाम को घूमने निकलते तो लगता जैसे यूनिवर्सिटी में सलोनी की बजाय कुछ और देखने लायक ही नही । कुछ दोस्त थे जिनसे अब दिल का हाल छुपा नही था ।

सब रोज खूब हिम्मत देते -यार बोल डाल,वरना देवदास बनेगा क्या ?? इतना भी क्या सोचना , मानी मानी वरना...तू नही तो और सही, और नही तो और सही...." ।

क्या वाकई इतना आसान होता है । शायद मैं दूसरों से अलग था । हर छह महीने बाद 'और प्यार हो गया' वाला स्लोगन अभी मेरी फितरत में नही था । फ्लर्ट होना या करना शायद अभी तक इसका कोई अनुभव नही था । शायद ये सब कोई तब करता है जब उसे प्यार करने वाले बहुत मिलते हैं |

यूँ तो लाइब्रेरी में अक्सर शाम को आते जाते हम आपस मे मिलते थे । दोस्त साथ होते । हम नोट्स शेयर करते,बोर होते तो बाहर कैंटीन में जाकर चाय की ब्रेक लेते । पता नही कब सलोनी की आंखों से मेरी आँखें बाते करने लगी और हम कही न कहीं यूँ महसूस करते कि मिलते तो है पर मुलाकात अधूरी सी रह जाती है । शायद एक डर था जो हमे हमारी दोस्ती को लेकर इतना संजीदा बनाये हुए था कि हम डरते थे कि कही कोई गलतफहमी न हो ....या दोस्ती बिखर न जाये । जब कोई अहसास बड़ी मुश्किल से मिलता है तो उसे जिलाए रखना ही सबसे बड़ी बात होती है | अहसास की बाते बड़ा गोरखधन्धा होती है पहले प्रेम के लिए जिनका सिरा पकड़ना भी बड़ी इमोशनल उलझन होती है |

पर आखिर कब तक जज्बात दबाए रखे जाते । आखिर वो दिन आगया ।

सलोनी ने शाम को सही पांच बजे लाइब्रेरी में मिलने का एक प्रस्ताव दिया । और इस प्रस्ताव के सूत्रधार थे कुछ नोट्स और हमारी सिक्स्थ सेन्स |

शाम के पांच कैसे बजे ये मैं जानता हूँ । चार बजे ही लाइब्रेरी पहुंच गया । कहाँ ज्यादा एकांत मिल सकता है,कहा इत्मीनान से बाते हो सकती हैं,जैसे कोई जगह ही नही मिल रही थी ।कभी लगता कि छुट्टी का दिन है । ज्यादातर लोग तो घर चक्कर लगाने गए हैं । इसलिए भीड़ भी नही है । चार मंजिला इस बड़ी लाइब्रेरी में एक सुकून तो था ही और कोई बात करने के लिए रीडिंग हाल से बाहर एक जगह बैठने का इंतजाम था । आज वहां कोई बैठा भी नही था ।

जैसे चार से पांच बजने में कई घण्टे गुजरे हो । मैंने न जाने सलोनी से कल्पना में ही कितना कुछ कह दिया हो,उसके कितने ही परिणाम सोचे हो । ‘ये कहूँगा ...ऐसे कहूँगा ...नहीं नहीं ...यह तरीका शायद गलत हो ...जल्दबाजी सब कुछ बर्बाद न कर दें ...’ कभी डरता तो कभी मुस्कुराहट और खुशी से भर जाता । जैसे कोई कीमती खजाना मिल गया हो । मेरे दिमाग और दिल में कितने सैलाब उठते और गुजर जाते |

मैं अपने दिल की धड़कन को संभाले किताब के पन्ने पलटता रहा । मेरी नजर बार बार लाइब्रेरी के एंट्री गेट की तरफ जाती ।

और फिर इंतजार की घड़ियां खत्म हुई । हल्के हरे रंग में लिपटी,घुंघराले खुले बालों से घिरे मासूम चेहरे को लिए सलोनी आ गयी ।

" कब आये, मैंने ज्यादा इंतजार तो नही करवाया ।"सलोनी ने पूछा ।

"तुम्हारा इंतजार तो मैं रोज करता हूँ, बस तुम समझ नही पाती ।" मैंने ये बात शायद मन मे कही होगी पर सलोनी ने न जाने कैसे सुन ली ।

"क्या बात है आज रोमांटिक गाने सुनकर आये हो क्या ? तुमहारी शर्ट अच्छी लग रही है ।" उसकी आखों और चेहरे पर आती बेबाकी मुझे जैसे हौंसला दे रही थी | शायद वो मुझसे अपनी और तारीफ सुनना चाहती थी ।

मैने भी अपनी तारीफ को नजर अंदाज करते हुए कहा, आज तो बिकुल परी लग रही हो ।"

"तो पहले मैं क्या थी, मुझे तो पापा भी हमेशा परी ही कहते हैं ।"उसने मुझे मुस्कुराते और आँखे मटकाते हुये कहा ।

मैं बेकाबू ही रहा था । जाने अपने आप को कैसे रोकूँ, मेरे शब्द मेरे अहसास थे जो बस कह देना चाहते थे सब कुछ । जैसे समय भागा जा रहा हो |

" अच्छा वो किताबें ढूंढकर ले आते हैं , फिर नोट्स भी बनाने हैं ।...चलें |”

जैसे मेरी नींद टूटी हो । हम दोनों दूसरी मंजिल पर अपने सब्जेक्ट की किताबों की अलमारियों के बीच किताबे ढूंढने लगे । आस पास एकदम सन्नाटा, किताबों और सलोनी के परफ्यूम की घुलती खुशबू । हम दोनों के हाथ आपस मे टकराये । हम दोनों मुस्कुरा दिए ।

"सलोनी ..... मैं तुम्हे ....मैं तुम्हे लाइक करता हूँ, तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त ही नही हो बल्कि उससे बढ़कर .....अब मैं ....तुम समझ रही हो न ।" मैं अटकने लगा ।

"इसमें क्या शक है, हम बहुत अच्छे दोस्त तो हैं ही । मैं भी तुम्हे पसंद करती हूँ ।'वो जैसे शर्मा सी गयी |

सलोनी की झुकी आँखों को समझते और इस जज्बात को सुनते मैंने उसका हाथ अपने हाथों में ले लिया । उसने कोई इनकार नही किया ।

" मै तुमसे प्यार करता हूँ सलोनी ।" गहरी सांस लेते हुए मैंने उसे अपनी बाहों में ले लिया ।

प्यार के फूल जैसे चारो और बहुत खूबसूरती से खिल गये थे ।


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