प्यार में कभी कभी
प्यार में कभी कभी
बचपन से साथ खेलते बड़े हुये मीनल और विराज में गहरी मित्रता थी। परिवारों में भी प्रगाढ़ सम्बंध थे। मीनल परम रूपसी थी। जब उनदोनों ने युवावस्था में कदम रखा तब से ही विराज की माँ मीनल को बहू बनाने के सपने देखने लगी । यदाकदा वह विराज के आगे इसका जिक्र भी कर देती तो विराज थोड़ा शरमा जाता। मीनल के परिवार को भी विराज बहुत पसंद था। जब से मेडिकल में दाखिला हो गया था, तब से रुतबा और बढ़ गया था उसका। मीनल फिजियोथेरेपी की पढ़ाई कर रही थी। बारहवीं तक दोनों एक विद्यालय में पढ़ते थे परन्तु अब सालभर से दोनों के शहर अलग हो गए थे। फोन पर रोज बात होती थी। दोनों का प्रयत्न रहता कि जब छुट्टी लेकर घर जायें तो साथ पहुँचे जिससे मिल सकें।
सब कुछ ठीक चल रहा था। जब विराज द्वितीय वर्ष में आया तो प्रथम वर्ष में नये विद्यार्थियों का आगमन हुआ। परिचय के दौरान एक मुखड़े पर विराज की निगाहें बारबार अटक जाती थीं। साँवली सलोनी सी पारुल दिखने में बहुत खूबसूरत नहीं थी पर आत्मविश्वास से लबरेज उस लड़की में एक अजब सा आकर्षण था और विराज न चाहते हुए भी उसकी ओर देखने से खुद को रोक नहीं पा रहा था। धीरेधीरे परिचय मित्रता में बदल गया। कॉलेज कैन्टीन में अक्सर दोनों मिलने लगे। विराज पढ़ाई में उसकी मदद करने लगा था।
मीनल का फोन नित्य ही आता। विराज के सभी मित्रों की जानकारी उसे थी। अपने खास मित्रों के फोन नम्बर भी उसे विराज ने दिये थे। इन मित्रों में लड़कियाँ भी थीं। कभी कभी वह उनसे भी बात कर लेती। उन सभी से विराज ने मीनल का परिचय अपनी गर्लफ्रेंड के रूप में कराया था। पारुल के विषय में विराज चाह कर भी मीनल को नहीं बता पा रहा था। कुछ तो था जो उसे रोक लेता था। इधर पारुल मन ही मन विराज को पसंद करने लगी थी, विराज ने उसे भी मीनल के बारे में कुछ नहीं बताया था। वह दोनों को ही धोखे में रखना नहीं चाहता था परन्तु वह समझ नहीं पा रहा था कि उसे क्या करना है।
एक तरफ बचपन की घनिष्ठ मित्र थी जिसके साथ वह अपने सुखदुख साझा करता था, जिसे उसका परिवार बहू के रूप में स्वीकार कर चुका था, जो इतनी सुन्दर थी कि पत्नी के रूप में पाकर कोई भी खुद को धन्य समझता। दूसरी तरफ नयी मित्र बनी साधारण सी दिखने वाली यह लड़की जिसमें न जाने क्या खास बात थी जो दिल उसकी ओर खिंचा जाता था।
एक वर्ष से मीनल से दूर रह कर भी कभी उसे इतना मिस नहीं किया जितना एक दिन पारुल को न देख पाने पर उसे करता था।
तो क्या मीनल से जो रिश्ता है वह सिर्फ दोस्ती का है? और पारुल....? क्या इसको प्यार कहते हैं? कहीं जगह की दूरी दिलों की दूरी की वजह तो नहीं बन रही? पर यदि ऐसा होता तो प्रारंभ में जब इस शहर में आया था तब तो दूरी परेशान करती। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। कहने को तो जब भी मीनल कहती "आई मिस यू" तो वह भी कह देता था पर कभी अपनी ओर से कहा हो ऐसा याद ही नहीं।
इसी ऊहापोह में फँसा दिल न पारुल से इकरार कर पाता और न मीनल से इनकार।
पर ऐसा कब तक चलता? एक दिन मीनल को विराज के एक मित्र ने पारुल के बारे में बता दिया। मीनल को विश्वास नहीं हो रहा था कि विराज दोस्ती से आगे किसी लड़की के बारे में कुछ सोच सकता है। पर अन्य दोस्तों की तरह इस लड़की के बारे में कुछ बताया क्यों नहीं? मीनल ने दोस्त से विराज और पारुल के कैंटीन में मिलने का समय पता किया और अगले दिन विराज को वीडियो कॉल लगा दी। विराज सकपका गया और पहली बार में तो फोन ही काट दिया। पर घंटी फिर बज गयी तो पारुल ने भी फोन उठाने को कहा। फोन उठाते ही मीनल की आवाज सुनाई दी
"हैलो विराज! फोन क्यों काटा?"
"थोड़ा बिजी था। अभी आधे घंटे में करुँ?" वह पारुल के सामने बात नहीं करना चाहता था।
"पर तुम तो कैंटीन में बैठे हो। कौन है साथ में? दिखाओ मुझे।"
"तुम नहीं जानती हो। जूनियर है। कुछ मदद चाहिए थी उसे बस वही डिस्कस कर रहा था।"
"पर मिलवा तो दो। उसे भी पता चलना चाहिए कि उसके सीनियर की गर्ल फ्रेंड कैसी है।"
मीनल ने तो हँसते हुये कह दिया। पर पारुल के तो जैसे सपने धराशायी हो गये। विराज ने कैमरा पारुल की ओर घुमाया उसने फीकी सी मुस्कान के साथ अपना परिचय भी दिया पर वह आहत हो गई थी।
मीनल ने जब फोन रखा तो पारुल ने पूछना चाहा कि विराज ने कभी बताया क्यों नहीं अगर उसकी गर्ल फ्रेंड थी। पर किस अधिकार से पूछती? विराज ने पारुल से भी तो कभी प्यार का इजहार नहीं किया था।
उस दिन से पारुल ने दूरी बनाना शुरू कर दी क्योंकि वह विराज को मित्र से कुछ बढ़ कर मानती थी और आज वह सपना चूरचूर हो गया था। अब दूर से विराज को देख पारुल राह बदल लेती थी। कैंटीन जाना छोड़ दिया। कोई शिकायत नहीं की विराज से, करती भी किस बात की? शायद वह पारुल को केवल मित्र ही मानता हो और पारुल उसकी आत्मीयता को प्यार समझ बैठी हो।
परन्तु इस दूरी से विराज को स्पष्टतया समझ में आ गया कि मीनल के साथ दोस्ती का गहरा रिश्ता था जिसे घरवालों के बढ़ावे से वह प्यार समझने लगा था। परन्तु प्यार तो यह था जो पारुल के साथ हुआ। तभी तो मन में वह छटपटाहट थी जो पहले कभी अनुभव नहीं की।
आगे का रास्ता कठिन था। पारुल को प्यार का विश्वास दिलाना तो फिर भी मुश्किल नहीं था। पर मीनल को सच्चाई बताने के अतिरिक्त घरवालों को समझाना भारी अवश्य था। पर सच्चे प्यार के रास्ते में बाधाएँ न आयें ऐसा तो कम ही देखने में आता है। विराज ने डूबते हुए आत्मविश्वास को सम्हाला और चल पड़ा अपने प्यार को मनाने।