प्यार के रिश्ते
प्यार के रिश्ते


आखिर आज वो दिन आ ही गया जब सुधा भाभी सास बनने जा रही है। बहुत बात करती थी ना, मैं एक बहुत अच्छी सास बनूंगी, एक माँ का प्यार सहेज के रखूँगी,अब देखते है वो दिन भी आ गया जब उन्हें इस पड़ाव से गुजरना पड़ेगा।
शुरू से ही सुधा एक स्वतंत्र विचारों की धनी महिला रही, लड़के और लड़की के भेदभाव से वो नफरत करती थी, कभी अपनी आवाज़ को दबाया नहीं, ना ही किसी की गलत सोच में भागीदारी दी।
जब वो दुल्हन के रूप में इस घर मे आयी तो ये सोच लेकर आई कि मैं भी इनके घर का एक जिम्मेदार हिस्सा बनूंगी, पढ़ी लिखी होने के साथ कई हुनर उनके कदमों तले रहते थे, पर घर का माहौल कुछ और ही नजर आया, या जिम्मेदारी सिर्फ़ रसोई की संभालने को दी गयी, अगर तुम उसमे खरी उतरी तो आप एक जिम्मेदार महिला हो, बहु का दर्जा सबसे नीचे का होता है , सबके बाद उसकी ख़ुशियों की कीमत लगाई जाती है यही सब देख वो हताशा से भर गई, तभी से उन्हें अपनी संतान में लड़का चाहिए था, वो नहीं चाहती थी उसे लड़की हो और वो इस सोच का हिस्सा बने, वो चाहती थी कि एक बहु के रूप में उसे बेटी मिले जिसे वो अपनी स्वतंत्र सोच का हिस्सा बनाये। उसकी परवरिश बिल्कुल एक बेटी की तरह करे।
अरे अरे दीदी आप यहाँ क्या कर रहे हो, राघव अभी दुल्हन को लेकर आता ही होगा, आप मेरी मदद कर दीजिए, सुधा ने अपनी दोनों ननदों को कहा,
क्या भाभी आज तो आप फूली नहीं समा रही,
हाँ क्यों नहीं एक बेटी आ रही है मेरे घर, मेरे घर की लक्ष्मी,
ये सुन दोनों मुँह बनाती हुई निकल गयी।
अरे देखो राघव आ गया,
हाथों में पूजा का थाल लिए बहु का स्वागत करने को उत्सुक थी सुधा, दहलीज पर बहु के लिए फूलों की चादर बिछाई थी।
बहुत अच्छे से स्वागत हुआ,
सबने बहु की सुंदरता की तारीफ़ की , चाँद का टुकड़ा लाया है राघव तो ,
अरे नेहा, बेटा तुम सफर में थक गई होगी जाओ आराम कर लो, कपड़े भी बदल लो,
ये सुन नेहा अंदर ही अंदर सुकून महसूस कर रही थी की कोई तो है जिसे ये याद रहा कि मैं थक गई होंगी। पर वो मम्मी जी होंगी ये नहीं सोचा था।
थोड़ी देर में सुधा नेहा के कमरे में गयी और एक सुंदर सी ड्रेस देकर बोली तुम्हें कोई जरूरत नहीं इस ताम झाम को अपने शरीर पर लादने की, तुम्हें अगर ये पसंद आये तो यही पहन लो और मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लायी हूँ कुछ खा लों।
नेहा को विश्वास नहीं हो रहा था, क्योंकि जो पट्टी उसकी माँ ने और इस समाज ने दिखाई है एक सास की वो ऐसी तो नहीं थी, पर हो सकता है ये छलावा हो। सास ऐसी थोड़ी ना होती है।
थोड़ी देर बाद नेहा सुंदर सी गुलाबी रंग की गाउन में नीचे उतरी, सब देखकर आश्चर्य में थे। पर राघव तो खुश हो गया था। पर लोग बातें बनाने से कहाँ चूकते है।पर आज जो आत्मविश्वास सुधा के चेहरे में था वो किसी को एक सवाल की अनुमति नहीं दे रहा था।
जैसे जैसे वक़्त बिता वैसे वैसे नेहा को सुधा का प्यार अपनी माँ से भी बढ़कर लगने लगा, एक ऐसा घर परिवार जहाँ बहु को मेड की उपाधि नहीं दी जाती , जहाँ सबकी भावनाओं की कद्र होती है, जहाँ नेहा को चार दीवारी में कैद नहीं किया गया, वहाँ उसकी डिग्री को अलमारी की शोभा नहीं बनाया गया ,उसे भी बराबर मौका मिला अपने हुनर को दिखाने का, और वो सबकी उम्मीदों पर खरी उतरी।
आओ नेहा साथ मे चाय पियेंगे।
हाँ माँ आती हूँ ।
एक बात बोलू मैं आपको, क्या सास ऐसी भी होती है, या तो मेरी किस्मत बहुत अच्छी है या, समाज मे इस रिश्ते की छवि बिगड़ रखी है।
बेटा ये हम पर निर्भर करता है किस रिश्ते को हम कितना सींचे, पर लोग अहम रूपी रिश्ते के नाम पर अपनी घर के सदस्यों को तौलते है।
ये मेरी बेटी है तो सर आँखों पर रहेगी, ये बेटा है तो माथे पर बैठेगा, और मैं खुद इस घर की सर्वेसर्वा हूं, और बहू को सिर्फ इसलिए लाया गया है कि ये घर के सभी सदस्यों का बोझ उठाएगी, अमूमन ये सोच लोग रिश्तों में भर देते है जो कभी एक घर और रिश्तों को एक धागे में बांध नही पाती।
जब मैं बहु बनकर आयी तो मुझे इस सोच से गुजरना पड़ा, पर मैंने ये निश्चय किया कि ये सोच मेरी बहु ओर हावी नहीं होगी। और देखो कुछ मुश्किल नहीं था, तुम चाहो तो इसी परम्परा को आगे बढ़ा सकती हो भविष्य में सिर्फ माँ बनकर, फिर चाहे वो तुम्हारी बेटी हो, बेटा हो या बहू ,पर शर्त ये है कि तुम सिर्फ माँ हो।
दोस्तों अगर ये सोच हमारे समाज मे भी उसी तरह बड़े तो जिंदगी और रिश्ते नाम के टैग से नहीं तोले जाए। इंसान को सिर्फ इंसान समझा जाये।