प्यार के दो बोल का मोल

प्यार के दो बोल का मोल

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प्राची कपड़े सुखा रही थी तभी उसे अपनी बेटी काव्या के रोने की आवाज़ आई। वह जल्दबाज़ी में कपड़े सुखा कर अंदर आई, तो उसकी कमर में अचानक से दर्द होने लगा। शायद कपड़ों की भारी बालटी उठाने से उसकी कमर की कोई नस चढ़ गयी थी। दर्द इतना तेज़ था कि उससे अपनी चार महीने के बेटी भी नहीं उठाई जा रही थी।  

काव्या के बराबर में ही प्राची का पति मोहित टी.वी. देखने में मगन था और प्राची के आते ही उससे बोला "काव्या को लेकर जाओ यहाँ से, कितनी ज़ोर-ज़ोर से रो रही है। मेरा सारा मैच का मज़ा ही ख़राब कर दिया। तुमसे एक बच्चा नहीं संभलता।" प्राची ने दर्द से करहाते हुए कहा "मेरी कमर में बहुत तेज़ दर्द हो रहा है। इसे भूख लगी होगी, मैंने इसके लिए दाल का पानी बनाया था, इसे वो पिला दो।" मोहित मन मार कर काव्या को गोदी में लेकर बैठ गया और दाल का पानी पिलाने लगा, साथ ही साथ वो बड़बड़ाता रहा "एक छुट्टी वाले दिन भी चैन से नहीं बैठ सकते। पहले बच्चे को खिला-पिला कर फिर कपड़े सुखाती पर नहीं हर काम की आफ़त है।" प्राची से भी अब चुप नहीं रहा गया उसने कहा "काव्या सो रही थी तो मैंने सोचा इतने कपड़े सुखा लूँ । मेरी कमर की लगता है कोई नस चढ़ गयी है। ये तो कह नहीं सकते कि लाओ कमर पर ऑइंटमेंट लगा दूँ और चार बातें सुनाने लगे",जैसे बच्ची सिर्फ मेरी है । तुम्हारी तो कोई ज़िम्मेदारी ही नहीं बनती।"  


मोहित को प्राची की बात का कोई असर नहीं हुआ वो मैच देखने के लिए उठ के ड्राइंग रूम में चला गया। प्राची ने जैसे-तैसे खुद ही अपनी कमर पर दवाई लगाई और सिकाई का पैड कमर के नीचे लगा कर लेट गयी। लेटे-लेटे उसके मन में काव्या के पैदा होने से लेकर अब तक की सारी बातें घूम गई। काव्या को लेकर हॉस्पिटल से जब वो घर आई, तो एक हफ्ते तक कोई मेड न मिलने की वजह से मोहित और उसकी मम्मी ने हर बात के लिए कितना ड्रामा किया था। रात को भी कोई उसके पास सोना नहीं चाहता था, क्यूंकि बच्ची के रोने से उनकी नींद ख़राब होती थी। मज़बूरी वश दोनों ने अपनी चार-चार घंटे की ड्यूटी बनाई। उसमें भी दोनों हर समय प्राची के ऊपर एहसान जताते रहते थे। मेड के आने के बाद तो सासु माँ ने तो बिल्कुल प्राची के कमरे में आना ही बंद कर दिया।  

खाने-पीने का सामान मेड के या उनके नौकर छोटू के हाथ ही भेज देती थी। प्राची तरस गई थी प्यार के दो शब्द सुनने को। वह चाहती थी कभी तो कोई उसे ज़बरदस्ती उसकी मम्मी की तरह खाना  खिलाये और उसके न खाने पर गुस्सा हो कर दिखाये। मोहित भी बस अपना सामान लेने या किसी काम से ही कमरे में आता था।  काव्या को जब भी उन लोगों का खिलाने का मन करता था, बाहर ही मेड से मँगवा लेते थे।  

प्राची अकेले कमरे में लेटी- लेटी बहुत ही बोर हो जाती थी। कोई दो शब्द हमदर्दी के बोलने वाला नहीं था। काव्या जब सवा महीने की हो गई थी मेड को तो सासु माँ ने हटा ही दिया था। प्राची थोड़े दिन अपनी मम्मी के घर रह कर आई। आते ही वो सारे काम करने लगी थी। मोहित अभी भी काव्या के रात में जागने की वजह से कमरे में कम ही सोता था। उसकी मम्मी भी कह देती थी की "रात को ठीक से नहीं सोयेगा, तो फिर दिन भर ऑफ़िस में काम कैसे करेगा।"  

मोहित जब भी प्राची के पास आता, उसकी कमियाँ ही निकलता रहता था। कभी कहता था "तुम कितनी मोटी हो गयी हो, तुम्हारे साथ अब मुझे रिलेशन बनाने में भी मज़ा नहीं आता। तुम्हारे ब्रैस्ट भी कितनी ढ़ीली हो गई है। प्राची यह सब सुन कर मन ही मन बहुत दुखी होती थी, और सोचती थी कैसे मोहित को समझाऊं की थोड़ा टाइम तो लगेगा ही वापिस शेप में आने में।  


प्राची ने भी आज सोच लिया था कि मोहित को उसकी ज़िम्मेदारी का एहसास करवाना ज़रूरी है। कुछ दिन बाद मोहित को बहुत खाँसी हो रही थी और उसके पैर में भी मोच आ गयी थी। प्राची जान-बुझ कर अपने कामों में लगी रही। उसने मोहित की तरफ ज़रा सा भी ध्यान नहीं दिया। रात को भी उसने मोहित से यह दिया कि "तुम्हारे खाँसने की आवाज़ से मेरी नींद ख़राब होती है। वैसे ही काव्या की वजह से में ठीक से नहीं सो पाती, इसलिए तुम गेस्ट रूम में सो जाओ।" अगले दिन प्राची सुबह उठी और काव्या को मोहित के पास लिटाते हुए बोली "मेरी योगा क्लास है, आज से ही जॉइन की है, क्यूंकि अब वापिस शेप में आना है। दिन रात मोटी-मोटी नहीं सुना जाता, इसलिए तुम काव्या का ध्यान रखना में एक घंटे में आ जाऊंगी।"  

मोहित ने गुस्सा होते हुए कहा "कल से तुमने मुझसे एक शब्द हमदर्दी का नहीं बोला। तुम्हें पता है मेरे पैर में मोच आई हुई है, फिर भी तुम काव्या को मेरे ऊपर छोड़ कर जा रही हो।" अब तो प्राची को भी बोलने का मौका मिल गया था उसने कहा "अगर काव्या उठ भी गयी, तो तुम्हें उसे हाथों से उठाना है पैरों से नहीं। प्यार और परवाह की उम्मीद तो मैं भी तुमसे रखती हूँ पर तुम तो जिस दिन से काव्या हुई है मेरे साथ कितना रुखा व्यवहार करने लगे हो। तुमने और तुम्हारी मम्मी ने एक बार भी मुझसे दो शब्द हमदर्दी के नहीं बोले। मम्मी तो काव्या के होने के दो महीने बाद ही भैया के घर चली गयी थी और तुमने तो अपनी कभी कोई ज़िम्मेदारी समझी ही नहीं। हर समय नौकर के या मेड के हाथ से खाना लेकर खाने में मुझे कभी अपनापन ही नहीं लगा पर तुम लोगों को इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ा। मम्मी खुद भी चली गई छोटू को भी अपने साथ ले गई उन्होंने एक बार भी नहीं सोचा की छोटे बच्चे को इसे अकेले सम्भालने में कितनी दिक्कत होगी। मेड को तो तुम पहले ही हटा चुके थे। उसके बाद तुम्ही तो थे, जो मेरी मदद करते मुझ से प्यार के दो बोल बोलते पर तुम तो उल्टा मेरे शरीर में आये बदलावों का भी मज़ाक बनाते रहे।"  


मोहित अपनी ग़लती समझ चुका था उसने प्राची को गले लगाते हुए कहा "मुझे माफ़ कर दो प्राची जिस समय तुम्हें मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी, उस समय मैंने कभी तुम्हारा दर्द समझने कि कोशिश ही नहीं की। तुमने मुझे काव्या के रूप में इतना अनमोल तोहफ़ा दिया और मैंने तुम्हारे ही शरीर का मज़ाक बनाना शुरू कर दिया। प्राची से भी अब उसका दर्द देखा नहीं जा रहा था इसलिए वो उसके पैर में दवाई लगाती हुई बोली "अब धीरे से उठ कर गरारे कर लेना फिर साथ में नाश्ता करेंगे।"


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