हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Romance Fantasy

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

Comedy Romance Fantasy

प्यार का मौसम

प्यार का मौसम

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लो जी "साहित्यिक वाणी" हो गई । कोई जमाने में "आकाशवाणी" हुआ करती थी। जबसे "आकाशवाणी" एक सरकारी संस्था बन गई तब से आसमान में आकाशवाणी होना बंद हो गई और अब आकाशवाणी केवल "रेडियो" पर ही होती है , आकाश में नहीं। जिस तरह समस्त सरकारी संस्थाओं का हाल होता है, उसी तरह "आकाशवाणी" का भी हो गया। बी एस एन एल को एयरटेल , जीओ वगैरह ने पीट दिया। एयर इंडिया को प्राइवेट एयर कंपनीज ने पीट दिया। दूरदर्शन को दूसरे चैनल्स ने पीट दिया इसी प्रकार आकाशवाणी को भी एफ एम चैनल्स ने पीट दिया। सरकारी संस्थाएं तो पैदा ही पिटने के लिए होती है, जैसे एक आम आदमी। उसे तो कोई नटवर लाल एक आम आदमी बनकर 45 करोड़ के बंगले में रहकर पीट जाता है , उसी तरह समाजवाद का दंभ भरने वाले ये तथाकथित समाजवादी भी आतंकी और माफियाओं की गोदी में बैठकर "समाजवाद" की कब्र खोद देते हैं। पर ये भारत है। यहां दुष्कर्म पीड़िताओं के बजाय आतंकवादियों के लिए रात के बारह बजे कोर्ट खुल जाते हैं। गुंडों बदमाशों को "माननीय" बना दिया जाता है। बच्चों को बचपन से ही डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर, पुलिस अफसर बनकर जनता को लूटने के लिए शिक्षित किया जाता है। 

अजी छोड़िये इन बातों को। इन बातों में क्या रखा है ? जिस तरह प्याज के छिलके उतारते जाते हैं तो सिवाय आंसुओं के और कुछ हासिल नहीं होता है , उसी तरह इन बातों से दुख , क्षोभ, घृणा , द्वेष के अतिरिक्त और क्या हासिल होगा ? 

तो बात हो रही थी "साहित्यिक वाणी" की। आज सुबह सुबह साहित्यिक वाणी हो गई और उसने घोषणा भी कर दी कि "प्यार का मौसम" आ गया है। साहित्यिक वाणी की घोषणा होते ही ठंडी ठंडी , मीठी मीठी, सुगंधित बयार बहने लगी। वृक्षों पर नई नई कोंपलें फूटने लगी। फूल खिलने लगे। भ्रमर फूलों पर मंडराने लगे। बागों में कोयल मीठे मीठे गीत गाने लगी। यानि की "प्यार का मौसम" बन गया। 

जब प्यार का मौसम बन जाता है तो प्रेमी युगल का हृदय स्पंदित होने लगता है। जिस जिस का प्रेमी प्रेमिका होता/होती है वह प्यार के झूले पर झूलना शुरू कर देता है। जिसके नहीं है वो अपनी जोड़ी तलाशना शुरू कर देता है और जिसकी जोड़ी नहीं बनती है वह सिर धुन कर पछताने लगता है। तो सभी प्रेमी प्रेमिकाएं, पति पत्नी , लेस्बियन, गे, ट्रासजेंडर, बाइसेक्सुअल वगैरह वगैरह सब लोग अपने अपने पार्टनर को साथ लेकर गार्डन, सिनेमा हॉल, होटल , रेस्टोरेंट, पिकनिक स्पॉट आदि जहां जगह मिली उस जगह पर चल दिये। हर जगह भीड़ का रेला नजर आने लगा। होटलों में जगह नहीं। गार्डन में पैर रखने को जगह नहीं। 

पर कुछ लोग हिम्मत वाले होते हैं और कुछ लोग जुगाड़ू । ऐसे लोग कुछ न कुछ जुगाड़ कर ही लेते हैं। ऐसे लोग मंदिर मस्जिद चले गये। जब पुजारी और मौलवी ने एतराज जताया तो ये लोग कहने लगे "महाशय ये बताइये कि प्रेम से बढ़कर और कौन सी पूजा होती है" ? पुजारी और मौलवी लोग खामोश हो गये और ये लोग मंदिर में बैठकर "प्रेम पूजा" करने लगे। 

कुछ लोग ज्यादा समझदार थे। ऐसे लोग कार में ही प्रेम का "स्वर्गिक आनंद" लेने लगे। प्रेम का आनंद तो कहीं भी लिया जा सकता है। इसके लिए कोई खास जगह तो बनाई नहीं है। कुछ लोग जंगल को निकल लिये। "प्रकृति" के मध्य "प्रेमानंद" की बात कुछ और ही है। 

इतने बड़े हुजूम और रेले को देखकर सरकार चिन्तित हो गई। यह सरकार बिल्कुल इन्द्र देव की तरह है जो हर बात पर चिंतित हो जाया करती है। उसे अपने "सिंहासन" की बहुत चिन्ता रहती है। मगर इस बार सरकार को चिंता जनसंख्या वृद्धि को लेकर हुई। अगर सभी लोग प्यार के मौसम का लुत्फ उठायेंगे और "प्रेमालाप" करेंगे तो फिर 150 करोड़ से एक ही दिन में 180 करोड़ हो जायेंगे। सरकार की चिंता वाजिब थी। 150 करोड़ लोगों में से कम से कम 20 करोड़ तो ऐसे हैं जिनके पास दो वक्त की रोटी का जुगाड़ तक नहीं है। इसलिए सरकार ने आदेश दे दिया कि प्यार के मौसम में दूर से ही प्यार किया जाये। "शारीरिक मिलन" वर्जित कर दिया गया। केवल "ऑनलाइन प्यार" करने की इजाजत ही दी गई। 

इस आदेश से समस्या खड़ी हो गई। आजकल तो नाबालिग बच्चे भी स्कूल में ही "शारीरिक प्रेम" का आनंद उठा लेते हैं। "ओयो होटल्स" तो बनी ही "प्रेमालाप" के लिए हैं। गार्डन भी आजकल घूमने वालों से नहीं प्रेमी प्रेमिकाओं की "लीलाओं" से आबाद रहते हैं। सरकार के इस आदेश से सब जगह पर एकदम सन्नाटा छा गया। 

पर जैसा कि सरकारी आदेशों का हस्र होता है , इस आदेश का भी हुआ। जिस जिस राज्य ने "शराब बंदी" घोषित की, उस उस राज्य में उतनी ही सुगमता से शराब उपलब्ध होने लगी। वेश्यावृति एक अपराध होने के बावजूद ऐसा कौन सा शहर , गांव है जहां वेश्यावृति नहीं होती है ? बहुत से एप तो घर बैठे सुविधाऐं उपलब्ध करा रहे हैं। लोगों ने तो नदियों तक में अतिक्रमण करके मकान बना लिए हैं। रेल्वे लाइन पर मकान बनाकर रह रहे हैं। जब सरकार ऐसे लोगों को हटाने का आदेश देती है तो माननीय सुप्रीम कोर्ट उस आदेश को रद्दी की टोकरी में फेंक देता है और कहता है कि सरकार पहले ऐसे लोगों को मकान बना कर दे फिर उन्हें रेलवे की पटरी से बेपटरी करे। रेल चले या नहीं चले, इससे सुप्रीम कोर्ट को कोई मतलब नहीं लेकिन अतिक्रमण कारियों, आतंकियों, माफियाओं के मानवाधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए। आम आदमी को सरेआम मार दिया जाये, छोटी छोटी बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया जाये। उनके अधिकारों की परवाह सुप्रीम कोर्ट को नहीं है लेकिन गुण्डों बदमाशों के मानवाधिकार सुरक्षित रहने चाहिए। ऐसी न्याय व्यवस्था को शत शत नमन। 

लोगों ने प्यार के मौसम को एन्जॉय करने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। धड़ाधड़ जनहित याचिकाएं लगने लगी। सुप्रीम कोर्ट भी इस पर सुनवाई करने के लिए तुरंत तैयार हो गया। सुप्रीम कोर्ट हर उस विषय को सुनने के लिए तैयार हो जाता है जहां उसे सरकार की ऐसी तैसी करनी हो। आजकल सारे अधिकार सुप्रीम कोर्ट ने अपने हाथ में ले लिये हैं। और लें भी क्यों नहीं ? "लोकतांत्रिक" तरीके से तो केवल वे ही "चुनकर" आते हैं। एक जज अपने भाई या रिश्तेदार के बेटे को जज बनाता है। बाद में जब वह रिश्तेदार का बेटा मुख्य न्यायाधीश बन जाता है तब वह उस जज के बेटे को जज बना देता है। और इस प्रकार यह सिलसिला अनंत काल तक चलता रहता है। सरकार का काम इतना ही है कि वह इस पर हस्ताक्षर करे , बस। कितनी तनख्वाह होगी, कितने घंटे काम करेंगे , कितनी सुविधाएं लेंगे , ये सब खुद जज तय करेंगे और एक आदेश देकर सरकार से पालना रिपोर्ट मांगेंगे जैसे कि सरकार इनकी जड़ खरीद गुलाम हो। इस प्रकार के सर्वश्रेष्ठ "लोकतांत्रिक" तरीके से जज बनाये जाते हैं यहां पर। 

सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए सरकार का आदेश रद्दी की टोकरी में फेंक दिया और कहा "प्रेम करना मनुष्य का मूल अधिकार है और सरकार इस पर रोक नहीं लगा सकती है। प्रेम स्त्री पुरुष में ही हो यह जरूरी नहीं है। प्रेम स्त्री स्त्री और पुरुष पुरुष के साथ साथ जानवरों के साथ में भी हो सकता है। हम अब स्पेशल मैरीज एक्ट में संशोधन कर रहे हैं। हम स्त्री पुरुष की परिभाषा ही खत्म कर रहे हैं" 

इस पर घिघियाते हुए एटॉर्नी जनरल ने कहा "माई बाप , कानून बनाना संसद का काम है" 

इस पर सुप्रीम कोर्ट की त्यौरियां चढ़ गई और उसने फुंफकारते हुए कहा "कौन सरकार ? कैसी सरकार ? हम सुप्रीम कोर्ट हैं सुप्रीम कोर्ट। हम सुप्रीम हैं। सरकार हमारे ऑर्डर की पालना के लिए होती है। सरकार को वही करना होगा जो हम चाहते हैं। समझे" , 

एटॉर्नी जनरल ने कहा "माई बाप, फिर लोकतंत्र का क्या होगा ? जनता के चुने हुए प्रतिनिधि क्या करेंगे" ? 

"उनका काम है भ्रष्टाचार करना और जेल जाना। बस, यही काम करते रहें वे। शासन करना हमारा काम है और हम करते रहेंगे"। उन्होंने न केवल लिंग विभेद के प्रेमालाप करने की अनुमति दे दी अपितु जानवरों, पक्षियों आदि के साथ भी "प्रेमालाप" करने की अनुमति दे दी। 

अब लोग कुत्ते, बिल्लियों के अलावा और भी जानवरों को साथ में लेकर प्रेमालाप कर रहे हैं। स्वर्ग लोक धरती पर उतर आया है। 

श्री हरि 



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