Archana Saxena

Romance

4.8  

Archana Saxena

Romance

प्यार ऐसा भी

प्यार ऐसा भी

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शहर में 'ब्राइटस्टार कलाकार' प्रतियोगिता के लिये प्रतिभागियों की खोज में मुंबई से टीम आयी हुयी थी। यह एक डांस रियलिटी शो था और वह जगह जगह घूम कर अच्छे नर्तक नृत्यांगनायें चुन रहे थे। हमारे भारत वर्ष में हुनर की कमी नहीं है और जयपुर एक बड़ा शहर है, लिहाजा लड़के लडकियों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। एन्ट्री दस बजे से प्रारंभ थी पर सात बजे से ही भीड़ जुटनी प्रारंभ हो चुकी थी। ऊपर से गर्मी का मौसम, जब तक एसी हॉल में प्रवेश न हो जाये तब तक सब पसीना बहाने को मजबूर थे। समर ठीक आठ बजे पहुँच गया था और साढ़े नौ बजने को थे। तभी भीड़ में जगह बनाती और किसी न किसी से उलझती एक लड़की उसके पास आ खड़ी हुयी। पीछे से लोग इस तरह बीच में घुसने पर चिल्ला रहे थे। पर उसकी सेहत पर कोई असर नहीं था। भीड़ की वजह से अचानक समर का हाथ उसकी कमर पर छू गया तो वह उस पर भड़क उठी "लड़कियाँ छेड़ने आये हो भीड़ में ? सीधी तरह खड़े नहीं रह सकते ?"

समर कब चुप रहने वाला था  

"अरे ओ! एक तो समय से आयी नहीं और भीड़ में जबरदस्ती घुस कर यहाँ तक आ गई और उल्टे मुझ पर इल्ज़ाम लगा रही हो। मैं तो कब से खड़ा हूँ, पास तो तुम आयी मेरे ?"

  "शक्ल देखी है अपनी ? तुम्हारे जैसों को खूब जानती हूँ मैं ?"

"अच्छा ? क्या जानती हो मेरे बारे में ? तुम्हारे जैसी कितनी मेरे आगे पीछे घूमती हैं।"

  "क्यों नहीं ? होगे किसी बड़े बाप के बेटे इसलिये घूमती होंगी। जिस दिन तुम्हारी काबिलियत पर आगे पीछे घूमें तब बात करना।"

 बात और बढ़ती इससे पहले ही गार्ड ने आकर पंक्ति बनवा दी। द्वार खुलने को था और सभी का उत्साह बढ़ गया था।

एक एक कर सभी हॉल में एकत्रित हो गये। अपनी बारी की प्रतीक्षा में समीक्षा बेचैन थी। कुछ लोग विजय कार्ड हाथ में पकड़े हँसते हुये बाहर निकलते तो कुछ मुँह लटका कर चुपचाप बाहर का रास्ता देखते।

समर भी जब हँसता हुआ बाहर कार्ड के साथ आया तो सीधे समीक्षा के पास आकर रुका। कार्ड उसके सामने लहराते हुये बोला      "मेरी काबिलियत का सबूत तो मिल गया। अब तुम्हारी बारी"

बारी सचमुच अल्फाबेट के हिसाब से समीक्षा की ही थी। वह जल्दी में बिना जवाब दिये अन्दर चली गयी। पीछे से 'ऑल द बेस्ट' की आवाज सुनायी दी पर वह मुड़ी तक नहीं।

    समीक्षा का चयन भी हो गया था। बाहर आकर उसकी नजरें समर को ढूँढ रही थीं पर वह जा चुका था।

अब वह सीधे रियलिटी शो की रिहर्सल पर मिले। शो का अन्दाज़ कुछ अलग था। पहले चार ग्रुप बनाए गये। कोई एक हर दिन निकल जाता ग्रुप छोटा होता जाता। जब बारह लोग बचे तो छः जोड़ी बना दी गयीं। यह महज इत्तेफाक था कि समर और समीक्षा एक जोड़ी थे। हमेशा एक दूसरे से उलझने वालों को अब यदि जीतना था तो मिल कर चलना ही था। समीक्षा ने सोचा भी कि पार्टनर बदलने की बात करे पर समर बहुत अच्छा डांसर था और शो जीतने के लिये जो चाहिए होते हैं वह सारे गुण उसमें कूट कूट कर भरे थे। रिहर्सल के दौरान जब भी वह उलझते उनकी कोरियोग्राफर उन्हें छोड़ कर जाने की धमकी देती। एक दूसरे को बर्दाश्त करने की आदत सी होती जा रही थी। कोरियोग्राफर के साथ समर की अच्छी बॉन्डिंग होती जा रही थी। जब भी वह उस पर अतिरिक्त ध्यान देती समीक्षा को जलन होती। इस जलन का कारण वह खुद भी नहीं समझ पाती। एक के बाद एक दो जोड़े निकल चुके थे। कोरियोग्राफर ने समझाया कि शो जीतना है तो दूसरे को अपना प्रेमी मान कर ही प्रैक्टिस करनी होगी। चेहरे पर भाव नहीं आये तो आउट होते देर नहीं लगेगी।

 रिहर्सल के बाद समर ने कॉफी पीने का प्रस्ताव रखा। समीक्षा ने बिना देरी लगाये मान लिया। कॉफी पीने के दौरान समर ने ही बात छेड़ी   

    "देखो तुम मुझे शुरू से पसन्द नहीं करती मैं जानता हूँ। शायद हम मिले ही गलत तरीक़े से थे। पर अब अगर हमें यह शो जीतना है तो दोस्त बनना ही पड़ेगा। बाद में दोस्ती निभे तो ठीक नहीं तो तुम अपने रास्ते मैं अपने।"

   "तुमने कहा मैं तुम्हें पसन्द नहीं करती। पर पसन्द तो तुम भी मुझे नहीं करते ?" समीक्षा ने गहरी नजर से उसे देखा।

   "शुरू में नहीं करता था, पर धीरे धीरे जाना कि इतनी भी बुरी नहीं हो तुम। मेरी राय बदल गयी है।"  समर हँस कर बोला।

 "वैसे राय तो मेरी भी बदली है। अगर हम उस तरह नहीं मिले होते तो अच्छे दोस्त हो सकते थे।" समीक्षा भी मुस्का कर बोली।

   "तो अभी भी कौन सा समय हाथ से निकल गया है। चलो आज से ही हम दोस्त बन जाते हैं।"  समर ने हाथ आगे बढ़ाया तो समीक्षा ने बेझिझक हाथ मिला लिया।

    उस दिन से उनके काम में चार चाँद लग गये थे।

एक दूसरे के प्रति आकर्षण भी बढ़ता जा रहा था।

जब सिर्फ दो जोड़ियाँ बची तो जोड़ियों के स्थान पर सोलो परफॉर्मेंस होनी थी। अब दो जोड़ियों के स्थान पर चार प्रतिभागी रह गए थे और अन्त में प्रथम किसी एक को ही आना था। समर और समीक्षा को यह नहीं भाया पर प्रतियोगिता थी तो नियम मानने ही थे। अब तीन लोग ही बचे थे जिनके बीच प्रथम, द्वितीय व तृतीय घोषित किये जाने थे। समर और समीक्षा को विश्वास था कि प्रथम तो उन दोनों में से ही कोई आना है पर कौन ? यहाँ तीन राउंड थे। एक के बाद एक तीनों को स्टेज पर बारी बारी आना था। बड़ी कठिन प्रतियोगिता थी। समर और समीक्षा का नाम उनके चाहने वाले जोर जोर से पुकार रहे थे। तीसरे प्रतियोगी का नाम बमुश्किल ही कोई ले रहा था। अचानक समर ने एक मूव ही छोड़ दिया। एक पल को वह ठहर सा गया था। समीक्षा ने साफ साफ जानबूझ कर की गयी इस गलती को देखा।

वह हैरान थी कि उसने ऐसा क्यों किया ? इसी के साथ प्रतियोगिता समाप्त हो गयी और समर को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ। हर कोई बात कर रहा था कि वह नहीं ठहरता तो प्रथम आने से समीक्षा भी नहीं रोक पाती। जजों के पूछने पर उसने यही कहा कि 'उसे जैसे किसी ने रोक लिया था एक पल को'। उसे किसने रोका था यह सिर्फ प्रथम आ चुकी समीक्षा समझ पा रही थी। उसके कानों में गूँज रहे थे वह शब्द जब उसने समर से कहा था

  "जिस दिन तुम्हारी काबिलियत पर लड़कियाँ तुम्हारे आगे पीछे घूमें तब कहना।"

दोस्त के लिये इतनी बड़ी कुर्बानी कोई साधारण इन्सान तो नहीं दे सकता।

  तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सब सिर्फ समीक्षा को देख रहे थे और उसकी निगाहें सिर्फ समर पर जमी थीं जो उसके लिए खुश होकर ताली बजा रहा था और उसकी आँखों में लेशमात्र भी पछतावा नहीं था। समीक्षा को इस मंच से न सिर्फ सम्मान और बड़ी राशि ही प्राप्त हुयी बल्कि एक अनमोल मित्र भी मिल गया था जिसे जीवनसाथी बनाने को उसका दिल मचल रहा था।


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