पवित्र बंधन ....
पवित्र बंधन ....
नहीं! तुम उस मामूली इंसान से शादी नहीं कर सकती, मेरे जीते जी ये कतई नहीं होगा, ये बात कहते हुए तुमने एक बार भी नहीं सोचा, क्यों मेरी इज्जत पर दाग लगाने पर तुली हो, क्या मैंने ये दिन देखने के लिए तुझे पाल पोसकर बड़ा किया था, सेठ दीनानाथ चौधरी अपनी बेटी रागेश्वरी से बोले।
लेकिन पिताजी, मैं सुधीर से प्रेम करती हूं और दिल से उसे अपना मान बैठी हूं, अगर आप मेरा ब्याह किसी और से कर भी देंगे तो ताउम्र मैं उसे अपना नहीं मान पाऊंगी, क्या फ़ायदा ऐसे ब्याह का जिसमें एक-दूसरे के लिए प्रेम ना हो, रागेश्वरी अपने पिता दीनानाथ जी से बोली।
क्या, देखा तुमने उस दो कौड़ी के मास्टर में, जो उससे ब्याह करना चाहती हों, ज़िद मत करो मैं तुम्हारा ब्याह किसी ऐसे लड़के से करूंगा जो हमारी तरह अरबपति हो, बिना पैसे के ज़िन्दगी नहीं चलतीं, तुम्हें एशो-आराम में रहने की आदत है, क्यों अपनी ज़िन्दगी बर्बाद करना चाहती हों, सेठ दीनानाथ बोले।
अब, जो भी हो पिताजी मैं, उसके साथ भूखी भी रह लूंगी, लेकिन ब्याह मैं सुधीर से ही करूंगी, आप चाहें जो कहें, रागेश्वरी बोली।
तो ठीक है, जो तुम्हारा मन करें वो करो, लेकिन याद रखना, मेरी जायदाद में से तुम्हें फूटी कौड़ी भी नहीं मिलेगी, अब भी एक बार सोच लो, तुम मेरी इकलौती बेटी हो, मेरी पूरी जायदाद की अकेली वारिस, मत करो ऐसी बेवकूफी , सेठ दीनानाथ, रागेश्वरी से बोले।
हां!! पिताजी सोच लिया, बहुत सोच समझकर मैंने ये फैसला लिया है, कल ही मंदिर में मैं और सुधीर ब्याह करेंगे, कल के पहनने के लिए उसने ये साड़ी मुझे दी है, मैं आपके घर से कुछ भी नहीं ले जाऊंगी, कृपया, मंदिर में मां के साथ आशीर्वाद देने आ जाइएगा, रागेश्वरी , दीनानाथ जी से बोली।
तुझे, मरना है तो मर, ना मैं आऊंगा आशीर्वाद देने और ना ही तेरी मां करुणा और इतना कहकर दीनानाथ जी चले गए।
करूणा वहीं पास में खड़ी थीं, उसने भी अपनी बेटी को बहुत समझाने की कोशिश की कि मान ले पिताजी की बात, लेकिन रागेश्वरी ने सुधीर से ब्याह करने की ठान ली थी और सुबह-सुबह वो तैयार होकर मन्दिर जाने लगी, जाने से पहले अपने गले की चैन, अंगूठी, हाथों में पहनी सोने की चूड़ियां और पैरों की पायल उतार कर करूणा को देते हुए बोली_
लो! अपनी अमानत रख लो, हो सके तो पिताजी के साथ आशीर्वाद देने आ जाना।
और मां-बेटी एक-दूसरे के गले लगकर खूब रोईं, मंदिर में रागेश्वरी, सेठ दीनानाथ और करूणा की राह देखती रही, लेकिन दोनों नहीं पहुंचे, मंदिर में सुधीर के दो दोस्त और उसकी बूढ़ी मां बस ब्याह में शामिल हुए, सुधीर और रागेश्वरी का ब्याह हो गया।
इसी तरह एक साल खुशी खुशी बीत गया, दिन ऐसे ही गुजरते जा रहे थे, तभी एक दिन सुधीर चक्कर खाकर गिर गया, यूं तो सुधीर के साथ ऐसा कभी कभी बचपन से ही होता आया था लेकिन थोड़ी बहुत दवा करवाने के बाद वो ठीक हो जाता था लेकिन इस बार उसकी तबीयत कुछ ज्यादा बिगड़ गई, सुधीर के दोस्तों ने उसकी बहुत मदद की इलाज में, इलाज करवाने पर पता चला कि सुधीर के दिल में सुराख है और उसके ऑपरेशन के लिए बहुत रुपए चाहिए, इतने पैसे तो अब सुधीर के दोस्तों के पास भी नहीं थे, लेकिन इस बात की जानकारी सुधीर और सुधीर की मां को रागेश्वरी ने नहीं दी।
डॉक्टर ने कहा कि जितनी जल्दी ऑपरेशन हो जाए, उतना अच्छा, नहीं तो सुधीर की जान को खतरा बढ़ सकता है, अब रागेश्वरी के पास और कोई चारा ना था सिवाय दीनानाथ जी से मदद लेने के और वो उनके पास मदद की गुहार लगाते हुए उनके घर पहुंची।
अब क्यों आईं हैं, अपनी मनहूस शक्ल दिखाने, सेठ दीनानाथ, रागेश्वरी से बोले।
पिताजी आपसे मदद चाहिए, सुधीर की हालत बहुत खराब है अगर समय पर इलाज नहीं हुआ तो उसकी जान भी जा सकती है, रागेश्वरी रोते हुए बोली।
तो मैं करूं, मैं कुछ नहीं कर सकता, चली जाओ यहां से, सेठ दीनानाथ बोले।
इतने बेरहम मत बनिए पिताजी, आपको भगवान का वास्ता, रागेश्वरी गिड़गिड़ाते हुए अपने पिता जी से बोली।
तो ठीक है, एक शर्त पर मैं तुम्हारी मदद करूंगा, सेठ दीनानाथ बोले।
ठीक है, पिता जी, मुझे आपकी हर शर्त मंजूर है, बस आप सुधीर की जान बचा लीजिए ।
तो ठीक है, तुम्हें सुधीर को तलाक देकर, मेरे दोस्त के बेटे से ब्याह करना होगा, सेठ दीनानाथ बोले।
लेकिन पिताजी ऐसे कैसे हो सकता है, मैं सुधीर की सुहागन हूं, आप ऐसा कैसे कर सकते हैं, रागेश्वरी बोली।
मंजूर है तो बोलो, सेठ जी बोले।
ठीक है पिता जी, रागेश्वरी बोली।
सेठ दीनानाथ बोले तो ठीक है, शाम तक मैं तलाक के पेपर तैयार करवा देता हूं, तुम जैसे ही उन पर हस्ताक्षर कर दोगी, मैं सुधीर को अस्पताल में भर्ती करवा दूंगा।
और यही हुआ, वहां सुधीर अस्पताल में भर्ती हुआ यहां रागेश्वरी के दूसरे ब्याह की तैयारियां होने लगीं, रागेश्वरी दुल्हन के लाल जोड़े में, गहनों से लदी हुई मण्डप तक आई, सेठ दीनानाथ बहुत खुश थे लेकिन तभी पता नहीं क्या हुआ, रागेश्वरी चक्कर खाकर गिर पड़ी।
सेठ जी ने भागकर रागेश्वरी को उठाया और बोले मैं अभी डॉक्टर को बुलाता हूं।
तभी रागेश्वरी, दीनानाथ जी का हाथ पकड़कर बोली, रहने दीजिए पिता जी अब कुछ नहीं हो सकता, मैंने ज़हर खा लिया है, आप मेरे रिश्ते को ख़रीद नहीं सके, मैं सुधीर की सुहागन थीं और सुधीर की सुहागन ही मरूंगी।
और इतना कहते ही रागेश्वरी ने अपने प्राण त्याग दिए और दीनानाथ सिवाय रोने के कुछ ना कर सके।
रागेश्वरी ने सभी बंधनों को तोड़कर एक पवित्र बंधन बना लिया।

