पुरूष -वेश्या
पुरूष -वेश्या
मुम्बई के एक आलीशान होटल के बड़े हॉल में संगीत का शोर है |वहां कोई पार्टी हो रही है।पार्टी में सिर्फ स्त्रियाँ हैं |उनके बीच एक बीस- बाइस साल का स्मार्ट लड़का नाच रहा है |उसने चमकीले व आसानी से खुल जाने वाले कपड़े पहन रखे हैं ।वह एक उत्तेजक गाने पर उत्तेजक नृत्य कर रहा है।उसे स्त्रियों ने धेरे में लिया हुआ है
नृत्य करते हुए वह एक-एक कर अपने कपड़े उतारता जाता है |औरतें सिसकारियाँ भर रही हैं |उससे लिपटी जा रही हैं |उसके नग्न शरीर को नोंच-खसोट रही हैं | अंत में वह अपना आखिरी अधोवस्त्र भी उतार देता है। रोशनी कम हो जाती है |औरतों में उसके खास अंग को छूने की होड़ लग जाती है |थोड़ी देर में रोशनी का एक घेरा बनता है,जहां मैनेजर खड़ा है।सबका ध्यान उसकी तरफ केंद्रित हो जाता है। मैनेजर लड़के की बोली लगाता है ।जो औरत सबसे अधिक मूल्य देने को तैयार हो जाती है,वह उस रात के लिए उसका हो जाता है |कभी-कभी उसे एक ही रात में एक के बाद एक तीन-चार औरतों को निबटाना पड़ता है |ज्यादा पैसे न दे पाने वाली ग्राहिकाओं को मैनेजर कल का आश्वासन देकर जबरन विदा कर देता है |वे दुखी होकर चली जाती हैं।
शुरू में वह सोचता था कि ये स्त्री की यौन रूचि की कैसी अभिव्यक्ति है ?ये कैसी स्त्रियाँ हैं?आजादी के नाम पर ये किस दलदल में जा गिरी हैं ?और क्यों इसका इन्हें कोई अपराध- बोध नहीं है?,पर बाद में वह समझ गया कि यहाँ स्त्री -पुरुष,शोषक- शोषण की बात ही नहीं है ।यह एक बाज़ार है जिसमें कोई बिक रहा है कोई खरीद रहा है ।दोनों की यही मर्जी है।सामर्थ्यवान खरीदते हैं चाहे वो स्त्री हों या पुरूष,जरूरतमंद बिकते हैं चाहे स्त्री हों या पुरुष।न किसी को कोई धोखा दे रहा है न कोई जबरदस्ती है।मांग और पूर्ति का सिद्धांत है।यहां सब कुछ अर्थशास्त्र के नियमों के आधार पर चलता है।संवेदना, लगाव,प्रेम,नैतिकता,मानवता का यहां कोई मोल नहीं ।
वह मुंबई नौकरी की तलाश में आया था |अपने घर का एकमात्र लड़का है तीन भाई तीन बहन और बूढ़े माता -पिता उसी पर आश्रित हैं।वह पढ़ा -लिखा है पर नौकरी इतनी आसानी से कहां मिलती है?बिजनेस करने के लिए भी पूंजी चाहिए,जो उसके पास नहीं थी ।कुछ दिन एक कंपनी में काम भी किया |मगर वहाँ सेलरी बेहद कम थी ,वह बोर और परेशान हो गया |एक दिन उसकी मुलाक़ात एक ऐसे ही धंधे वाले लड़के से हुआ |उसने इसे भी अपनी तरह ‘जिगोलो’ बना दिया |पहले तो वह शाम के समय मरीन ड्राइव की एकांत सड़क पर अपने दाहिने हाथ में रूमाल बांधकर खड़ा हो जाता | वहाँ कोई कार रूकती जिसे कोई स्त्री चला रही होती ,वह उसे बुलाती उनमें कुछ बात होती, फिर वह भी उस गाड़ी में बैठ जाता |रात-भर उस स्त्री के साथ रहता बदले में उसे पाँच से सात हजार तक नगद और कुछ उपहार मिल जाते|पर वहाँ कभी-कभी पुलिस आकर तंग करती थी और उसे अपनी आय का कुछ हिस्सा पुलिस को रिश्वत के तौर पर देना पड़ता था |
इसके बाद वह पार्टी वाले काम में आया है |यहाँ ज्यादा निश्चिंतता और ज्यादा पैसा है ,पर वह अक्सर निढाल हो जाता है क्योंकि कभी-कभार उसे एक रात में कई ग्राहिकाओं को निबटाना पड़ता है |यहाँ वह 'स्ट्रिपर' कहा जाता है |
पहले उसे बहुत अपराध बोध होता था कि वह गलत पेशे में है।वह भी एक वेश्या है 'पुरूष वेश्या'।वेश्या शब्द उसके समाज की कितनी बड़ी गाली थी और अब वह भी वही कार्य कर रहा है।पैसे के लिए शरीर बेचता है।पर अब उसे इस काम में कोई बुराई नजर नहीं आती है |यह उसके लिए दूसरे धंधों की तरह ही है |मुंबई में उसकी तरह बहुत से लड़के हैं |वे अमीर औरतों की यौन-क्षुधा को शांत करते हैं |उस जैसे लड़कों की आवश्यकता उन औरतों को रहती है जो अकेली हैं या बहुत व्यस्त हैं,जिनके पास अफेयर चलाने का न वक्त है न रूचि |उनमें से कई ऐसी भी हैं जिनके पति या तो नपुंसक हैं या दूसरी स्त्रियों में व्यस्त |कुछ के पति विदेश रहते हैं और वर्ष में एकाध बार ही घर आते हैं |उनकी भी अपनी शारीरिक जरूरतें हैं जिसे वे अपने तरीके से पूरा कर रही हैं।उनके लिए पतिव्रत,नैतिकता,स्त्री धर्म जैसे शब्द बेमानी है क्योंकि उनके अनुसार ये सब स्त्री को गुलाम रखने के लिए पुरूषों द्वारा बनाए हथकंडे थे।पुरूषों ने अपने लिए तो ऐसे नियम नहीं बनाए ।उनके पति क्या उनके प्रति एकनिष्ठ हैं?वे अपनी जिन्दगी जी रहे हैं तो वे क्यों अपनी इच्छाओं की बलि दें?
वह उनकी बातें सुनकर चकरा जाता।धीरे -धीरे उसे भी लगने लगा कि वे गलत नहीं कह रही फिर इन बातों से उसका क्या लेना- देना!
उसका शरीर सुगठित है वह प्रतिदिन नियम से जिम जाता है क्योंकि इसी शरीर की कीमत है |उसे नृत्य तो पहले से आता था पर अब उसने मादक नृत्य भी सीख लिया है,जिसे देखते ही स्त्रियाँ उन्मत्त हो जाती हैं |कई बार उसे उन्मत्त स्त्रियों के हिंसक स्पर्श सहन करने पड़ते है —और उफ़ करने की भी मनाही होती है।वह मन ही मन उन स्त्रियों को गाली देता है पर ऊपर से होंठों पर मुस्कान सजाए रखता है।यही उसके पेशे की शर्त है।
कभी- कभी उसका जी चाहता है कि कुछ दिन का अवकाश लेकर अपने गांव चला जाए।गांव की नदी में अपने देह की सारी मलीनता,सारे कलुष ,सारी थकान धो डालें।माँ के आंचल में मुँह छुपाकर जी -भर सो ले,पर मैनेजर इसकी इजाजत नहीं देता।वह साफ कहता है मेरे पास लड़कों की कमी नहीं ,पर औरतों में तुम्हारी दीवानगी इतनी बढ़ गयी है कि मैं तुम्हें एक दिन की भी छुट्टी नहीं दे सकता।वह मन मसोसकर रह जाता है।
वह सोचता है जब तक उसका शरीर युवा है आकर्षक है अच्छी कमाई कर ले फिर वह अपने गांव लौट जाएगा।तब तक उसकी सारी जिम्मेदारियां भी निबट जाएंगी।पर क्या उसके बाद वह विवाह कर सकेगा? उसका अपना परिवार होगा?उसकी युवा आकांक्षाएं सामान्य जीवन पा सकेंगी। या फिरउसकी आकांक्षाएं अर्थशास्त्र के नियमों के सामने हथियार डाल देंगी।