Ranjana Jaiswal

Others

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Ranjana Jaiswal

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संपोला

संपोला

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माँ कहती थी संपोले साँप से कम खतरनाक नहीं होते। हालांकि उनमें विष साँप से थोड़ा कम होता है पर उनके काटने से भी लहर आती है। संपोले इस माने में साँप से ज्यादा खतरनाक होते हैं कि वे इतने छोटे होते हैं कि कहीं भी छिप कर बैठ जाते हैं आसानी से नजर नहीं आते। दिखने पर भी लोग उन्हें छोटा  समझ कर मारना नहीं चाहते, इस तरह उन्हें अपनी उम्र का उसी तरह लाभ मिल जाता है, जैसे हमारे देश में किशोर अपराधियों को मिल जाता है। भले ही उनका अपराध कितना भी संगीन हो।

विद्यार्थी जीवन में अज्ञेय की कविता पढ़कर मैंने भी आदमी को साँप के समानान्तर देखना शुरू किया-

साँप तुम सभ्य तो नहीं हुए

नगर में रहना नहीं सीखा

विष कहाँ पाया डँसना कहाँ सीखा।

वैसे तो आजकल आदमी को साँप से ज्यादा खतरनाक माना जाने लगा है। आस्तीन का साँप जैसा मुहावरा आदमी के लिए ही गढ़ा गया। कृतघ्न पुत्र के लिए माँ कहती है-मैंने तो साँप को दूध पिलाया था। यानि जैसे साँप को कितना भी दूध पिलाओ वह डँसना नहीं छोड़ता, उसी तरह कृतध्न पुत्र भी। हमारी संस्कृति में सर्प का स्वप्न धन-संपत्ति व पुत्र का सूचक माना जाता है। वर्ष में एक बार नाग-पूजा भी की जाती है। हमारे त्रिदेवों में सबसे लोकप्रिय देव शिव के गले का आभूषण है सर्प। शिव शुभ और मंगलकारी भी हैं तो विनाशकारी भी। उन्हीं की तरह उनका प्रिय सर्प भी। लोग उससे डरते भी हैं और उसकी पूजा भी करते हैं। शायद डरते हैं, इसलिए पूजा करते हैं। अब जो कहानी मैं लिखने जा रही हूँ, उसे पढ़कर साँप -पूजा करने वालों के सीने पर साँप लोटने लगेगा।

मैं बचपन से ही इस जीव से डरती हूँ इनपर कविता-कहानी जितना भी लिख लूँ। आदमी मुझे इनसे कम खतरनाक लगते हैं। शायद इसलिए कि इनके जैसे गुणों से युक्त आदमियों से निपटना मुझे आता है। किशोर सपोलों से भी मेरा सामना कई बार हो चुका है और मैं बड़ी आसानी से उनसे बचती रही हूँ पर जब सच्चे सपोलों से मेरा सामना हुआ तो मेरे होश उड़ गए। उनके खौफ के मारे इस गर्मियों की छुट्टी में मैं कहीं भी बाहर नहीं जा पाई क्योंकि घर से कई सपोले निकले थे। जाने कैसे वे घर में घुसे थे ?एक किचन में, दो बेडरूम में और आठ-दस एक-दूसरे से लिपटे आँगन के हैंड पाइप के बगल में खड़े किए गए टाइल्स के बीच में। इतने दिनों से वे घर में पल रहे थे और मुझे इसका पता ही नहीं थी। अनुमान लगाया गया कि नाली के रास्ते में सापिन ने आकर घर के एक कोने में अंडा दिया होगा जो अब इतने बड़े हो गए थे कि घर में स्वतंत्र रूप से घूम सकें। वह तो संयोग से सफाई के क्रम में एक दिखा और फिर तो एक-एक कर सब दिखे। मैं बदहवास घर से बाहर भागी और पड़ोसियों की मदद मांगी पर किसी ने कोई मदद नहीं की। सबके अनुसार उनके घर साँप की पूजा होती है। पर मैं उस घर में कैसे रहती जिसमें इतने संपोले हों। मदद के लिए कई परिचितों को फोन किया, पर कोई नहीं आया। सबके अनुसार इसकी जिम्मेदार मैं ही थी। कोई मेरे सफाई पर प्रश्न उठा रहा था, किसी को मेरे नास्तिक होने से शिकायत थी। मलमास का महीना शिव का महीना माना जाता है और दिन वृहस्पतिवार था, इसलिए कुछ लोगों को यह कोई दैवी कोप लग रहा था। मुझे बस यही दिख रहा था कि इन संपोलों को घर से कैसे निकालूँ। अंतत: संपोलों पर मिट्टी का तेल, ब्लीचिंग पाउडर, फ़िनायल एक साथ डाला, वे अधमरे से हो गए तो उन्हें एक-एककर चिमटे से पकड़कर बाहर पार्क में फेंक दिया। अब पड़ोसी कनफूसियाँ करने लगे कि अधमरे संपोलों को पार्क में फेंका है अब ये घर-घर घुसेंगे। मैं बिगड़ी कि कोई सहयोग नहीं कर रहा तो क्या करूं?कोई बोरा पकड़ लेता तो उन्हें उसी में डालती जाती और कहीं दूर उन्हें फेंक दिया जाता, पर सब तमाशबीन बने हैं। जैसे यह मेरी अपनी व्यक्तिगत समस्या है। यह घटना तो किसी के भी साथ घाट सकती है। मेरे घर में संपोलों की फैक्टरी तोलगी नहीं है। घर में आए तो वे बाहर से ही होंगे। मेरे रौद्र रूप को देखकर सारे पड़ोसी अपने-अपने घरों में जा दुबके। उन्हें निकालकर मैंने पूरे घर को फ़िनायल से धोया और बाघर से साँपों के पुन:घुसने के सारे संदिग्ध रास्ते बंद कर दिए। मुझे यह ध्यान ही नहीं रहा कि घर में छिपे संपोले बाहर कैसे निकलेंगे ?नहा-धोकर मैंने फेसबुक पर दाल दी ताकि मित्रों की राय मिल सके क्योंकि पड़ोसियों के अनुसार संपोलों की माँ उन्हें ढूंढेगी और उन्हें न पाकर मुझसे बदला लेगी। फेसबुक पर फड़ैत टाइप कुछ लोगों ने मुझे डराया कि माँ अपने बच्चों के दुश्मन को नहीं छोड़ती। मैं रात भर जगी रही, फिर उस पूरे महीने रात को नहीं सो पाई। मेरा घर दोमंजिला है। गर्मियों में मैं नीचे ही रहती हूँ। ऊपर का कमरा बहुत गरम हो जाता है। घटना के बाद दो-तीन रात तो तड़प-तड़पकर ऊपर कमरे में ही काटी। गर्मी भी अपने भीषण रूप में थी। फिर हिम्मत करके नीचे कमरे में बैठने-सोने लगी। दिन में तो थोड़ा-बहुत सो भी लेती पर रात को बाथकर काटती। अपनी अधूरी कहानियों को पूरा करती मुझे पता नहीं था कि मेरे पढ़ने वाली मेज-कुर्सी के पास वाली आलमारी के निचले हिस्से में दो संपोले हैं। हालांकि मैं उनके जैसे जीवों को भगाने वाली दवा पूरे घर में डाल चुकी थी। आलमारी के उस हिस्से में कुछ ज्यादा ही दवा डाली थी। पर उनके बाहर निकलने का रास्ता बंद होने से वे नहीं निकल पाए होंगे। घटना के ठीक सातवें दिन बृहस्पतिवार था। मैंने सोचा आलमारी के उस हिस्से में रखा डिब्बा हटा दूँ डब्बा हटाते ही संपोला दिखा जो एक हफ्ते में काफी बड़ा हो गया था। मैंने बाहर का दरवाजा खोल दिया और डंडे से उसे फटकारते हुए बाहर की तरफ ले चली। बाहर सूरज की तेज रोशनी थी, इसलिए वह बाहर की तरह नहीं जा रहा था। बड़ी मुश्किल से उसे निकाला पतली छड़ी से उसे सड़क पर उछाल दिया। एक और डब्बे में छिपा बैठा था। डिब्बा मैंने सड़क पर ले जाकर खोला था। वह वहीं से भाग गया। इस तरह मैंने उन संपोलों से छुटकारा पाया। फिर भी उनका खौफ बना रहा। रात को सोती तो बार-बार नींद उचट जाती। कभी अजीब सी आवाज सुनाई पड़ती कभी सरसराहट।

मैंने अपनी दोस्त को फोन करके दिल हल्का करना चाहा तो पता चला उसे एक मानवीय संपोले ने उसे बुरी तरह डंस लिया है।

अभी दो वर्ष पहले मैंने उस सँपोले को देखा था। इति ने उसे अपना बेटा बनाया हुआ था पर मैंने पहली ही नजर में उन्हें देखकर समझ लिया था कि माँ-बेटे का यह रिश्ता दुनिया को धोखा देने के लिए है। पर मैंने कुछ नहीं कहा क्योंकि इति के मायके, ससुराल के लोग और उसके जवान बच्चे तक उनके रिश्ते को स्वीकार चुके थे। इति मुझसे आँखें चुराकर बातें कर रही थी। वह अच्छी तरह मेरी गहरी नजरों को पहचानती थी जो सीधे दिल तक उतर जाती हैं। इन दो सालों में वह मुझसे कटी-कटी रही थी। वह तो इस बार मैं अचानक उसके घर आ धमकी थी। मुझे विचित्र लग रहा था कि वह लड़का इति पर राज कर रहा था। उसे अपने इशारे पर नचा रहा था। इति किशोरी नहीं थी तीन जवान बच्चों की माँ थी उसके सबसे छोटे बेटे की उम्र का था वो लड़का।

स्त्री के लिए चालीस पार की उम्र बेहद खतरनाक होती है। शारीरिक आकर्षण चुक रहा होता है। बच्चे बड़े होकर अपनी दुनिया में गुम हो चुके होते हैं। पति उसमें पहले सी रूचि नहीं लेता। घर-गृहस्थी, नात -रिश्तेदारी की जिम्मेदारियों को निभाते वह खुद को भूल चुकी होती है। वह मानसिक रूप से पूरी तरह अकेली होती है ऐसे में कोई उसे उसके पुराने रूप में ले जाता है तो वह सब कुछ भूल जाती है। नए प्रेम का आमद उसे गुमराह कर देता है। उसे दीन -दुनिया, पाप-पुण्य, सही-गलत कुछ भी नहीं दिखता। वह बची हुई ज़िंदगी को भरपूर जी लेना चाहती है। इति इन दो वर्षों में पूरी तरह बदल गयी है। उसके कपड़े किशोरी की तरह हो गए हैं लंबे घने बाल छोटे हो चुके थे उसने अपने आप को इतना स्लिम कर लिया था कि पीछे से वह किशोरी ही नजर आती थी। मैं उसे देखकर चौक गयी थी ....इतना बदलाव ...पर लड़के को देखते ही मैं बदलाव का कारण समझ गयी। मुझे वह उलझी हुई लगी। मुझे आश्चर्य था कि उसके पति और बच्चे तक उसके इस परिवर्तन को नहीं समझ पा रहे हैं। जो मुझे साफ-साफ नजर आ रहा है, उन्हें इसका शक तक नहीं है। सारे नाट –रिश्तेदारी में वह उसके साथ जाती है और सभी जगह उन दोनों को माँ -बेटे की तरह डील किया जाता है।

हाँ ,वह मेरे घर इस बीच एक बार भी नहीं आई थी। वह जानती थी कि मुझसे नहीं छिप पाएगी । मैं उसको व्हाट्सप और फेसबुक पर देखती। दोनों की एक साथ फोटो भी होती। मोबाइल से कपड़ों तक में मैचिंग। बिलकुल नव-ब्याहता सी रौनक, हाव-भाव। दोनों साथ बुरे भी नहीं लगते थे पर बुरा लगता था टाइटिल जिसमें माँ-बेटा की उद्घोषणा होती थी। इति ने हाल ही में बेटी का ब्याह किया है बेटा बाहर पढ़ता है। पति अपनी नौकरी और रंगेलियों में मस्त हैं ऐसे में सभी सोच रहे थे कि लड़का उसका अकेलापन बांटता है उसकी मदद करता है तो कुछ भी बुरा नहीं है। कोई यह नहीं समझ पा रहा था कि शेर का बच्चा भी हाथी का सिर फोड़ सकता है। मर्द की उम्र चाहे कितनी भी कम हो, वह होता शिकारी ही है। लड़का इति का तन-मन, धन  सबका दोहन कर रहा था। वह उसकी पड़ोस में ही रहता था और उसे योगा सिखाने आता था। उसके बहुत ज्यादा आने-जाने उसके घर वालों को भी एतराज नहीं था क्योंकि उसके नाश्ते-खाने से लेकर जेब खर्च तक इति देती थी। किसी को उम्मीद नहीं थी कि वह अपनी उम्र से दुगुनी स्त्री से प्रेम भी कर सकता है। इति की बेटी की शादी में वह 'ये दिल संभाल जा जरा कि मुहब्बत करने चला है तू'–पर इति से मुखातिब होहर डांस करने लगा तभी मुझे शक हुआ। उसके बारे में पूछने पर पता चला कि पड़ोस का ही लड़का है इति डांस और योगा सीखाता है। । मैं हर बार उसके बारे में पूछती रही। उससे भी पूछा उसकी पढ़ाई, नौकरी व भविष्य के बारे में। वह हंस कर गोल-गोल जवाब देता रहा। मेरे पास उसे देखते ही इति सशंकित हो उठती। इति हमेशा से रूप गर्विता रही है। उसका रहन-सहन, पहनाव-ओढ़ाव भी अल्ट्रा-मार्डन रहा है। पैसे की कोई कमी है नहीं। अब तो लगभग सभी जिम्मेदारियों से वह मुक्त भी हो चुकी है, इसलिए उसने सोचा कि बची हुई इच्छाओं को भी जी ले। वह कम पढ़ी-लिखी होकर भी इतनी आगे सोच सकती है,जितनी मेरी कवि-कल्पना भी नहीं जा सकती। लोग उसका साथ इसलिए भी देते हैं की वह सबके लिए कुछ न कुछ करती रहती है। रिश्तेदारों का मुंह तोहफों से बंद रखती है इसलिए बहुत कुछ गलत देखकर भी सब चुप रहते हैं।

पर सच कब तक छिपता है ? लड़के ने इति के साथ अपने आपत्तिजनक फोटो, वीडियो, आडियो सब बनाकर घर में छिपा रखे थे और उसे ब्लैक मेल कर रहा था। इति ने उसे अपने घर में एक कमरा दे रखा था। कहीं जाती तो घर की चाबियाँ उसे दे जाती। उसकी व्यक्तिगत आलमारी तक वह खोलता था। इतना विश्वास उस पर करती थी। इधर पूजा-पाठ, तंत्र-मंत्र भी करने लगी थी। सुबह-शाम घंटों पूजा करती रूद्राक्ष पहनती थी। काला जादू भी शायद लड़का उसे सिखाता था। धर्म की आड़ में अपनी काली करतूत छुपाने की इस देश में परंपरा भी है। मैंने कई पुजारी लोगों को चरित्र से गिरा पाया है। वे भगवान की आड़ लेकर संसार को धोखा देते हैं। इति थोड़ा-बहुत नशा भी करती रही है। हो सकता है इधर लड़का उसे ड्रग्स की देता रहा हो, जिसके नशे में वह सारी मर्यादाएँ भूल गयी।

लड़के की बहन ने एक दिन वे सारी चीजें देख लीं और हंगामा कर दिया। इति के सारे रिश्तेदारों, पति, बेटी सभी को वे आडियो वीडियो भेज दिए, जिसमें दोनों की अश्लील बातचीत थी। उनका रिश्ता अब जगजाहिर था। इति घर से भागकर एक दोस्त के यहाँ छिप गयी। कई दिन बाद उसका पता चला। ससुराल से मायके तक हड़कंप मच गया। उसका पति-रो-रोकर हलकान था। इति का फेसबुक अकाउंट बंद करा दिया गया। वह मुझे मिली नहीं है पर मैं उसकी हालत समझ सकती हूँ। उसको ढूँढने के लिए मुझे फोन किया गया था, तब मुझे स्थिति पता चली।

मुझे आश्चर्य हो रहा था कि वे लोग भी इति को बुरा कह रहे हैं जो अब तक आँखें बंद किए हुए थे। इति को सँपोले ने डंस लिया है, इसका उसे अब तक विश्वास नहीं है।

मेरे घर में निकले संपोलों से यह सँपोला ज्यादा खतरनाक निकला था।



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