Ranjana Jaiswal

Others

4  

Ranjana Jaiswal

Others

अपराध

अपराध

4 mins
243


जिस तरह पुरूष जितना भी पढ़-लिख जाए ,प्रगतिशील हो जाए ,उसमें एक सामंती पुरूष जिंदा रहता है वैसे ही मजबूत से मजबूत स्त्री के भीतर एक कमजोर स्त्री जिंदा रहती है। इस स्त्री को अपने घर ,पति और बच्चों की चाहत होती है। वह गृहस्थ बनने के मोह से कभी मुक्त नहीं हो पाती। इस बात का प्रमाण थी इला ,जिसने एक के बाद एक तीन शादियाँ की पर तीनों टूट गयी ,पर आज भी मैं उसकी आँखों में वही चाहत देखती हूँ। इस बार उससे मिलने पर मैंने कहा –‘अब बस भी करो ,तुम्हारे भाग्य में पति-सु ख नहीं है| क्यों बार-बार खुद की परीक्षा लेती हो ?क्या कमी है तुम्हें ?सुंदर हो स्वस्थ हो समर्थ हो। क्या बिना पुरूष के नहीं जी सकती ?

इला चहकी –वाह मेमसाब,खुद तो मिस्टर राज के बिना एक दिन भी नहीं रह पातीं और मुझे नसीहत दे रही हैं कि गर्मी की तपती दुपहरिया ,जाड़े की लंबी रातें और बरसात के भींगे दिन अकेले काटूँ  वाह जी वाह !

मैंने चिढ़कर कहा –अकेले क्यों ?तुम्हारे कई दोस्त भी तो हैं न !

वह हँसी- वे ....?किनका नाम ले रही है तू ...सबके सब अकेले में पैर पकड़ने वाले और भीड़ में न पहचानने वाले शख्स हैं। उनसे मेरा अकेलापन दूर नहीं होगा। कोई ढंग का साथी हो तो बता …. जो मेरे साथ चलने में शर्मिंदा न हो और मेरी आत्मा में गहरा चुके अकेलेपन को दूर करे।

उसकी हंसी में आंसुओं की धमक थी। मैं समझ गयी कि मैंने उसकी दुखती राग पर हाथ रख दिया है।

मैंने उसे समझाने वाले अंदाज में कहा ---देख इला ,हमारे समाज में ऐसा पुरूष नहीं मिलेगा ,जो तुम्हारा अतीत जानकर भी तुम्हें वही प्यार ,इज्जत व सम्मान देगा जो वह किसी कुंआरी लड़की को देता है। हमारे यहाँ के पुरूष अपनी स्त्री के रूप में अकलंक,अछूती व कुंआरी लड़की चाहते हैं भले ही वे खुद कितनी भी हांडी में मुंह डाल चुके हों। ’

--पर मेरा अपराध क्या है ?मेरे जीवन में कई पुरूष इसलिए आए क्योंकि उनमें से कोई भी मुझसे प्यार नहीं करता था और प्यार विहीन रिश्ता मैं नहीं निभा सकती। सिर्फ देह के रिश्ते सब कुछ नहीं होते और देह भी क्या ,पुरूष की तरह सिर्फ दिखते भर थे। वह तो पहले मैं दूसरी स्त्रियों की तरह देह-रहस्यों व उसके सुख से परिचित नहीं थी ,वरना पहली रात ही उन्हें लात मार देती। अधूरे ...अय्याश ...नपुंसक थे सब के सब ,पर मर्द इगो इतना कि स्त्री पर हल्की ‘रेफ’ भी न हो। यौन –शुचिता क्या स्त्री के लिए ही जरूरी है,पुरूष के लिए नहीं ?अपनाने के समय तो बड़े प्रगतिशील बनकर आए ,पर बाद में इस तरह व्यवहार करने लगे जैसे मैं कोई जूठन हूँ। उनके भीतर का सामंती पुरूष हर बात पर मेरी स्त्री पर कोड़े फटकारने लगा। अब उन्हें छोड़ती नहीं तो क्या घुट-घुटकर मर जाती ?...बोलो ….|

क्रोध..घृणा और अपमान के कारण इला का शरीर काँपने लगा था। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा तो वह फफक कर रो पड़ी। एक मैं ही थी ,जिसने उसके आँसू देखे हैं ...उसकी पीड़ा सुनी है...जानी है आखिर वह मेरी बचपन की सहेली जो है पर इधर मैं परेशान हूँ क्योंकि मेरे ससुराल वाले मुझपर दबाव बना रहे हैं कि उसका साथ छोड़ दूँ क्योंकि वह बदनाम स्त्री है।

कल ही मेरी सास कहने लगी ---उ हमरे घरे काहे आवत बिया 

‘वह मेरी सहेली है माता जी...’

-सहेली जब रहे तब रहे। अइसन औरत ,जवन एक पानी पर नाहीं रहे ,ओकरे साथ मे तू बिगड़ जइबू।

‘कैसी बात कर रही हैं माता जी ?आप भी तो एक औरत हैं। क्या कोई औरत जान बूझकर कई शादी करती है ?

-ओकर पक्ष न ल। छिनार के साथे रहे के बा ...त हमार घर छोड़ द ...हमरे इहाँ रंडीबाजी नाहीं होई। घर के मरद बिगड़ जइहे ओकरे ईला से .....|

सास जी घृणा से काँप रही थीं। मैं चुप होकर अपना काम करने लगी ,पर दिमाग कहीं और था। मैं सोच रही थी ऐसी ही एक सास ने अपनी बहू को अपने पाँच बेटों के बीच चीज की तरह बाँट दिया था पर यह बात किसी को बुरी नहीं लगी ,पर जब एक स्त्री ने स्वेच्छा से कई पुरूषों को अपनाया तो वह गलत हो गया पाप हो गया अधर्म हो गया ....|जब उस बहू की गणना पाँच-कन्याओं में होती है अर्थात वह पवित्र मानी जाती है उसका प्रात:sमरण पुण्यदायक माना जाता है तो फिर इला अपवित्र व छिनाल क्यों कही जा रही है ?क्या इसलिए कि उसने स्वेच्छा से ऐसा किया ?यदि व्यवस्था ने उससे ऐसा करवाया होता ,तो वह ठीक होता ?कितना अन्याय है यह स्त्री के साथ ! स्त्री-देह को अपनी इच्छा से उपयोग करने के लिए व्यवस्था क्या कुछ नहीं करती ?मुझे माधवी की कहानी याद आई ,जिसने पिता के लिए अपनी देह का बलिदान किया था। श्यामकर्णीघोड़ों के बदले कई राजाओं को अपनी देह और संतान देने के बाद उसे वानप्रस्थ अपनाना पड़ा। क्या आज की स्त्री ऐसा करेगी ?कदापि नहीं और इला जैसी स्त्री तो कदापि नहीं। वाह, स्त्री की अपनी देह का उपयोग भी दूसरे अपनी मर्जी से करें तो सही...पुण्य ...धर्म और स्त्री अपनी इच्छा से करे तो गलत.....पाप.....अधर्म !अच्छा इंसाफ है !



Rate this content
Log in