पत्थर की लकीर
पत्थर की लकीर


रेडियो में बजते अपलम चपलम चपलाई रे गाने को सुनकर वह भी गुनगुनाने लगी।
कभी यह गाना उसे बेहद पसंद था।लेकिन घर गृहस्थी और बच्चों में रमने के बाद वह कितनी सारी चीजों को भूल गयी थी।आज इस गाने ने वह फिर उन सारी चीजों में खो गयी।
उसके हाथ से बनायें वह ढेर सारे पोट्रेट्स, स्कल्प्चर्स,पेंटिंग्स और न जाने क्या।वह अच्छी क्लासिकल डाँसर भी रही थी।माँ बाबा की इकलौती बेटी होने से उसको उन दोनों का ढेर सारा प्यार मिलता गया।
बाद में उसने क्लासिकल डाँस में करियर बनाने के लिए मास्टर्स में एडमिशन ले लिया था।वर्मा अंकल के कहने पर बाबा ने अपने रिटायरमेंट की बात कहते हुए अच्छे रिश्ते की दुहाई देकर उसकी शादी करा दी।पति एक बहुत बड़ी फर्म में CA थे।उनको रुपए पैसों के कैलक्यूलेशन के अलावा और किसी काम मे इंटरेस्ट नही था।
एक दिन सारे काम खत्म करके घुँघरू बाँध के डाँस की प्रैक्टिस करने लगी।बेटी भी क्लास से आकर
देखादेखी में कुछ डाँस स्टेप्स करने लगी और सारा माहौल बड़ा ही मज़ेदार हो गया था।
अचानक डोर बेल बजी।घड़ी की तरफ निगाहे जाते ही पैरो में बँधे घुँघरूओं को भूलकर झट से वह दरवाजा खोलने गयी।
पति की सर्द निगाहें उसके घुँघरू पर अटक गयी।उन्होंने कहा,"हमारे घर मे घुँघरू बाँध कर नाचगाना नही चलेगा।मत भूलो की यह भले लोगों का घर है।"
उसने कुछ कहने की कोशिश की।लेकिन बात को बीच मे काटते हुए वे कहने लगे,"मेरी यह बात पत्थर की लकीर मान कर तुम इसे गाँठ बाँध लो।"कोई पत्थर दिल कैसे हो सकता है, आज उसके दिल ने जान लिया।
कभी स्कूल के फिजिक्स की किताब में पढ़ा था, Energy can neither be created nor destroyed. Energy can only be changed from one form to another.
सच किताबें कभी झुठ नही कहती है।
आज उसने क्लासिकल डाँस को बिना किसी शोर के कठपुतली के डाँस में बदलते हुए देख लिया....