रंजना उपाध्याय

Drama

2.5  

रंजना उपाध्याय

Drama

पटाखा बहू !

पटाखा बहू !

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केसरी जी की बहू बहुत ही हँसमुख थी। अपने देवर का नाम ही रख दिया था "पटाखा देवर"। देवर भी क्या करें! अपनी माँ से कहकर अपनी भाभी जी का नाम "पटाखा बहू" रखवा दिया।

"सासू माँ पुराने जमाने की थी उनको लम्बे बाल, बदन पर साड़ी, माथे पर बिंदी, हाथों में कांच की चूड़ी यही पसंद था। खुद तो वो यह पहनती थीं और बहू को भी पहनाती थीं। केसरी जी की बहू शहर में रह चुकी थी और गाँव में भी, तो सिम्मी को दोनों जगह का माहौल बखूबी से पता था।

"सिम्मी की सासू माँ का स्वभाव बहुत ही सरल था। सरल स्वभाव की वजह से अपनी बड़ी बहू की बताई गई हर बात को आसानी से समझ लेती थी। जिसमें सुनने और समझने की कला होती है उसके लिए हर काम आसान हो जाता है।

"अपने देवर की शादी में उसने अपने बाल कटवा लिए, पूरी तरह से अपना लुक बदल ली। अब सासू माँ परेशान की अब ये आज बाल कटवा डाली कल को जीन्स न पहन कर बैठे, गाँव घर में बड़ी बदनामी होगी। अब गाँव से सटा शहर होने के नाते कोई न कोई आ ही जाता था, लखनऊ पास में पड़ता था। जब छोटी बहू आयी तो पूरी तरह से शहरी थी। उसे साड़ी भी नहीं पहननी आती थी। फिर भी पाँच सात सेफ्टीपिन लगाकर बेचारी पहनती थी। एक दिन सिम्मी ने कहा कि उपासना जरा इधर आना।

"उपासना अपनी जेठानी के पास किचन में गयी। सिम्मी ने बोला जाकर अपने कपड़े बदल लो। साड़ी में तुम्हे परेशानी हो रही है, तुम जाकर आज से सूट पहनो।"

उपासना मन ही मन खुश भी हो रही है कि मेरी जेठानी कितनी अच्छी है, मेरा कितना सपोर्ट करती हैं। सबको ऐसी ही जेठानी मिले और तेज कदमों में अपने कमरे में जाकर सूट पहनकर अपनी जेठानी के पास गई और गले लग गयी।

"दीदी आप कितनी अच्छी हो, आप कितना सबका ख्याल रखती हो।"

तब तक बाहर से सासू माँ की आवाज आती है "अरे बहू ?"

"जी मांजी"

"कहाँ हो तुम लोग ? आवाज नहीं आ रही है।"

सासू मां से दोनो लोग डर रही हैं, लेकिन बड़ी हिम्मत और जिम्मेदारी से सिम्मी ने बोला उपासना तुम चुप रहना मैं बात करूँगी माँ जी से। बस सर से दुपट्टा नहीं उतारना, माँ के सामने सर ढक कर रखना।"

"अरे बहू ये क्या हालत बना रखा है तुमने ?"

"हे भगवान! अब क्या होगा ? अब तो दुनिया भर में जग हँसाई होगी।"

बहुत ही प्यार से सिम्मी ने समझाया "माँ सूट और साड़ी में क्या रखा है ? बल्कि सूट में पूरा बदन ढका रहता है और साड़ी में थोड़ा बहुत बदन दिखता है। आप इतना परेशान न रहिये, उपासना की आदत नहीं है। धीरे-धीरे सब सीख जाएगी। घर में ही तो पहनी है, बाहर साड़ी में ही जाती हैं। अभी मान लीजिये वो बाहर पढ़ाती है। मां मान लीजिये कल को यही अपने शहर लखनऊ में ही ट्रांसफर हो गया तो क्या करेंगी ? आप आदत डालिये हम लोग कभी भी आपके मान सम्मान में कमी नहीं आने देंगे।"

बहुत समझाने पर माँ जी समझी।

एक दिन सिम्मी अपनी सास को पार्लर ले गयी और बाल कटवा कर कलर करवा दी।

सासू माँ बहुत चिल्लाई कि कार्टून बना डाला, तुमने तो कहा कि बालों में मसाज करवाओगी, ये क्या हाल बना डाला ?

अब धीरे-धीरे वो सासू मां को अपने रंग में रंग डाली। अब किसी बहू को कोई रोक टोक नहीं थी, बल्कि सासू माँ खुद भी सूट पहनने लगी और पॉर्लर भी जाने लगी।

एक दिन दोनों बहुएं और सासू मां बैठी थीं। अचानक मोनू (सिम्मी का देवर) आया, देखा माँ भी सूट में देख चौंक गया।"मां अपनी पटाखा बहुओं के साथ खुद भी पूरी तरह बदल गयी हो!" देवर ने मुस्कुराते हुए अपनी भाभी माँ को देख कर बोला।"शाबाश मेरी पटाखा बहू" तुमने तो पूरा घर ही बदल डाला। सब एक दूसरे को देखकर हँसने लगे।घर का अच्छा माहौल बड़ी बहू सिम्मी की वजह से बना रहा था। अगर अपनी सास की तरह विचार सिम्मी के ही होते तो शायद घर में इतनी खुशियां न होती।दूसरी बात, परिवार में एकता होनी चाहिये। यदि परिवार में एकता है तो हर काम हर मुश्किल रास्ता आसान हो जाता है। सोच बदलने पर भी निर्भर करता है। सिम्मी ने अपने साथ पूरे घर वालों की सोच बदल डाली और बड़ी बहू होने का फर्ज भी बखूबी निभाया।


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