पत्ता गोभी
पत्ता गोभी
आज अनीता को न जाने क्या हो गया अच्छी भली सब्जी काटते काटते न जाने किन खयालों खो गई। मौसी उसको बार बार टोकती "अरे बेटी जल्दी कर किस सोच मे पड़ी है।"
अनीता ने मौसी की तरफ ऐसे देखा जैसे वो नींद से जागी हो, बोली मौसी तूने मुझे इस पत्ता गोभी की तरह कई तहों में क्यों नहीं रखा।
इतना कहते ही वो फफककर रोने लगी। मौसी को पिछले महीने की वो काली रात याद आ गई जब उसने पड़ोस की दुकान से अनीता को नमक लाने को कहा था। पंसारी ने नमक अंदर रखा है यह कह कर अनीता को अंदर जाने के लिए कहा और चुपके से दरवाज़ा बंद कर दिया। उसके बाद उसने अनीता के साथ दुराचार किया। वह रोती रही, बिलखती रही मगर उसको चींटी की तरह कुचल दिया गया।
जब वह घर आई तो उसके कपड़े फटे हुए थे शरीर पर कहीं निशान थे। मौसी ने जब यह देखा तो उसके पैरों तले से धरती निकल गई उसकी माँ मरते समय अपनी बेटी, उसको दे कर गई थी, अब वह उसकी माँ को क्या मुंह दिखाएगी।
मौसी ने जल्दी से चादर में लपेट कर उसको अंदर लिया और सब पूछा। उसने रो-रो कर सब बताया। मौसी ने डर के मारे किसी को क्या घटा कुछ नहीं बताया। आस पड़ोस वाले लेकिन गिद्ध की नजर की तरह अनीता पर नजर गड़ाए रखते, कि ऐसा क्या हुआ कि अब अनीता घर से बाहर भी न निकलती।
मौसी की आँखों के सामने वह मंजर आ गया। जब वह सब हुआ था और वह खुद को भी कोसती है कि "मैं अपनी अनीता को इस पत्ता गोभी की तरह परतों में न रख पाई। उस जलील पंसारी ने एक-एक करके सारी परत खोल दी और मेरी अनीता की इज़्ज़त ले ली। अनीता गुमसुम बैठी रहती है न जाने अपने इस सदमे से कैसे बाहर आएगी और मुझ में इतनी ताकत नहीं थी कि मैं समाज से लड़ सकूँ क्योंकि मैं खुद एक अकेली नारी थी।
समाज एक अकेली नारी को कभी भी खड़े रहने नहीं देता। जहां एक अकेली नारी होगी उसके पीछे न जाने कितने राक्षस। यह दुनिया नारी के रहने की नहीं रही, जो है वह राक्षसों के रहने के लिए ही है।