Ashish Dalal

Inspirational Romance

5.0  

Ashish Dalal

Inspirational Romance

पत्नी

पत्नी

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स्कूल प्रांगन में प्रवेश करने का एक मात्र यही रास्ता था। पिछली रात हुई ज़ोरदार बारिश की वजह से पूरा रास्ता टूट चुका था। रास्ते पर पानी भर जाने की वजह से सभी को इस रास्ते से अन्दर जाने में परेशानी हो रही थी । बच्चों को छोड़ने आए पेरेंट्स बड़ी मुश्किल से संभल कर अन्दर दाखिल हो रहे थे। ऐसे में उस युवती की एक्टिवा उसी रास्ते पर बन्द पड़ गई। अन्दर आने और बाहर निकलने वाले लोगों ने हार्न बजा बजाकर उसे परेशान कर दिया । काफी प्रयास करने के बाद भी जब उसकी एक्टिवा चालू नही हुई तो वह परेशान हो उठी । परेशानी के साथ साथ लोगों की बढ़ती भीड़ देखकर उसकी घबराहट भी बढ़ती जा रही थी। अंततः हार कर एक्टिवा से उतर कर वह उसे धक्का देकर एक साइड ले जाने का प्रयत्न करने लगी। तभी पीछे से वह युवक आया और पीछे की ओर से उसकी एक्टिवा को धक्का देने लगा। उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक क्षण के लिए उसके आगे बढ़ते कदम वहीं थम गए। तभी लोगों की आवाज़े और हार्न का लगातार बढ़ता शोर सुनकर उसने जोर लगाकर अपनी एक्टिवा साइड पर खड़ी कर दी।

वह युवक कुछ देर उसे देखता रहा फिर पीछे से अपने ७ वर्षीय बेटे की आवाज़ सुनकर अपनी बाइक लेकर वह स्कूल प्रांगण में दाखिल हो गया।

अपने बच्चे को अन्दर छोड़ने के बाद उसने अपनी बाइक उसकी एक्टिवा के पास लाकर खड़ी कर दी और उस युवती के अन्दर से वापस आने का इन्तजार करने लगा। इतने में बारिश फिर से शुरू हो गई और उसका वहां और अधिक खड़े रहना मुश्किल हो गया। आते जाते लोग उसे वहां बारिश में भींगता हुआ देख अचरज भरी नज़रों से देखे जा रहे थे। थोड़ी ही देर में वह पूरी तरह से भींग चुका था। उसके वापस आने के आसार नजर नहीं आते मायूस होकर वह अपने घर की ओर रवाना हो गया।

‘आप बेकार ही मेरी वजह से परेशान हो रहे है। धैर्य को दो दिन स्कूल न भेजने से कुछ बिगड़ नहीं जाएंगा।’ उसके घर में दाखिल होते ही उसे पूरी तरह से भींगा हुआ देख उसकी पत्नी ने परेशान होते हुए कहा।

‘बच्चों को शिस्त बचपन से ही सिखाया जाता है। तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है तो मैं तो हूं न। ऐसे में मेरा घर पर रहना ही ठीक है। नौकरी तो सारी उम्र करनी ही है।’ उसने शर्ट के बटन खोलते हुए कहा।

‘बड़े जिद्दी हो तुम। चलो अब भींग ही गए हो तो लगे हाथ नहा भी लो। मैं तब तक चाय बना देती हूँ ।’ उसके हाथ से शर्ट लेते हुए उसने कहा।

‘तुम आराम कर सको इसी वजह से ऑफिस से छुट्टी ली है। चाय मैं नहाकर बना लूंगा। तुम आराम करों।’ कहते हुए वह बाथरूम में चला गया।

अपने बेटे को स्कूल से वापस लाते वक्त उसकी आँखें उस युवती को ही ढूंढती रही पर वह उसे कहीं नजर नहीं आई। यूं तो बेटे को स्कूल छोड़ने और वापस ले आने की जिम्मेदारी उसकी पत्नी के हिस्से आती थी पर कल रात से उसकी तबियत खराब होने से वह ही इस जिम्मेदारी को निभा रहा था। आज अचानक उत्तरा को स्कूल के पास पाकर लगभग भुला दी गई पुरानी यादें उसके जेहन में फिर से ताजा हो गई। बड़ी मुश्किल से उत्तरा को भुलाकर नलिनी से शादी कर वह अपनी जिन्दगी से समझौता कर पाया था। शादी के बाद नलिनी के संग दो साल सहजीवन गुजारने के बाद फिर वह उसे प्यार भी तो करने लगा था। पिछले नौ सालों में उत्तरा उसका अतीत बन उसकी स्मृति से दूर हो चुकी थी।

दोपहर को नलिनी और धैर्य के सो जाने के बाद उसने अपने एकेडेमिक सर्टीफिकेट की फाइल निकाली। इस फाइल में उसने उत्तरा के प्रेम पत्र सहेज कर रखे थे। अपने अतीत के प्रेम पत्रों को छिपाने की यही एक सुरक्षित जगह उसके पास थी। वह पूरी तरह से आश्वस्त था कि नलिनी कभी भी इस फाइल पर नजर नहीं डालेगी। वैसे भी एक पत्नी के लिए उसके पति के एकेडेमिक सर्टिफिकेट हमेशा किसी भी आशंका के दायरे से दूर ही रहते है।

उत्तरा का आखिरी बार लिखा गया छोटा सा पत्र निकाल कर वह अपने अतीत को कुरेदने लगा।

मयंक,

जानती हूं पत्र पढ़कर तुम्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगेगा। वैसे भी पिछले पत्र का भी तुमने कोई जवाब नहीं दिया तो नाराज तो तुम अब भी हो मुझसे। मुझसे तुम्हारी यह नाराजगी शायद अब जीवन पर्यन्त बनी रहेगी।

मैं अपने परिवार की इच्छा के विरुद्ध ऐसा कदम कोई कदम नहीं उठा सकती जिससे उन्हें शर्मिन्दा होना पड़े। अगले महीने मेरी सगाई होने वाली है और दीवाली के बाद शादी भी हो जाएंगी ।

तुम्हारा प्यार कभी भी भुला नहीं पाऊंगी पर सामाजिक बन्धनों के चलते तुम्हें स्वीकार न कर पाने का अफसोस सदैव ही बना रहेगा। मुझे बेवफा मानकर भूल जाना और कहीं ओर शादी कर मेरे हिस्से का प्यार उस खुशनसीब लड़की को समर्पित कर देना।

सदैव तुम्हारी

उत्तरा

जिस दिन मयंक को उत्तरा का पत्र मिला उस दिन मानो उस पर बिजली गिर पड़ी हो। वह अब तक उम्मीद लगाकर बैठा था कि उत्तरा अपने मम्मी पापा को मना लेगी । उत्तरा के संग सहजीवन को लेकर उसने कई सपने देख डाले थे और उन सपनों की साक्षी स्वयं उत्तरा भी तो थी।

बतौर अकाउंट असिस्टेन्ट जब उसने दयाल एण्ड सन्स फर्म को ज्वाइन किया तब उत्तरा वहां रिशेप्सिनिस्ट के पद पर कार्यरत थी। नौकरी का स्थल अपने घर से ६० किलोमीटर दूर दूसरे शहर में होने से उसे रोज दो घण्टें आने जाने का सफर करना बिल्कुल पसन्द नहीं आता पर फिर धीमे धीमे उत्तरा से परिचय होने पर यह बात उसके लिए गौण हो गई। उत्तरा पहली नजर में ही उसके मन में बस गई । गोल भरावदार चेहरा, काले लम्बें रेशमी बाल, बड़ी बड़ी आंखें और उसमें समाई चंचलता उसकी आंखों को बिना कुछ कहे सुने भा गई । स्वभाव से वाचाल होने से अपने मन की बात उत्तरा के सामने जाहिर करने में उसे देर नहीं लगी ।

लंच के वक्त हंसी मजाक करते हुए उस दिन स्नेह ने उसे चैलेन्ज फेंकते हुए कहा – ‘मयंक, अगर तू सच्चा मर्द है तो आज सभी को बता दे कौन सी हसीना तेरे दिल पर कब्जा किए हुए है ?’

पिछले ६ महीनों के दौरान अपने साथ काम करते स्नेह के साथ उसकी काफी अच्छी दोस्ती हो चुकी थी। स्नेह उसकी हरेक बातों से वाकिफ था ।

‘अबे साले । नौकरी से निकलवाएगा क्या ?’ मयंक ने स्नेह को आँखें दिखाते हुए कहा ।

‘भोला मत बन। तू बताए या न बताए, हमें पता है हमारी होने वाली भाभी कौन है ।’

‘मेरे बाप। तू चुप कर। उसने अगर सुन लिया तो कम्प्लेन कर देंगी।’ मयंक ने आजू बाजू नजर डालते हुए कहा । केन्टीन में उन दोनों के अलावा उनसे एक टेबल छोड़ उत्तरा कुछ महिला सहकर्मियों के संग बैठी थी। बाकी के लोग खाना खाकर जा चुके थे। मयंक और स्नेह जानबूझकर उत्तरा के लंच टाइम के साथ अपना लंच टाइम सेट करते थे ।

‘कौन ? कोई भी तो नहीं है यहां।’ स्नेह ने इधर उधर देखते हुए कहा ।

‘उधर पीछे देख। उत्तरा यहीं बैठी है ।’ मयंक ने कहा ।

‘कौन ? उत्तरा भाभी ।’ स्नेह ने जानबूझ कर इतने ऊंचे स्वर में कहा कि उत्तरा सुन सके ।

उत्तरा ने सुना भी और मयंक की ओर मुस्कुराकर नजरें झुका ली।

‘देखा, आग उधर भी लगी हुई है। तेरी तो निकल पड़ी यार।’ सारा नजारा देखते हुए स्नेह ने धीमे से मयंक से कहा ।

इस घटना के बाद मयंक ने खुले दिल से उत्तरा के सामने प्रेम का इकरार कर लिया ।

ऑफ़िस के अलावा दोनों का बाहर मिलना कम ही हो पाता था। उत्तरा रोज ठीक ६ बजे ऑफ़िस से निकल जाती पर मयंक अकाउन्ट डिपार्टमेन्ट में होने से अक्सर देर से ही निकल पाता । लंच टाइम में दोनों कभी कभी बाहर निकल जाते और अपने प्यार की नींव पर सजाएं जाने वाले भविष्य की बातें किया करते । उस दिन वे दोनों लंच लेकर उस रेस्टारेन्ट से बाहर निकल रहे थे तभी किसी काम से उस ओर आए उत्तरा के भाई की नजर उन दोनों पर पड़ी। किसी भी भाई के लिए उसकी बहन का किसी अनजान पुरुष के साथ यूं हाथों में हाथ डाले घूमते देखना असहनीय होता है । उस शाम उत्तरा के घर पर उसका मयंक के साथ प्रेम प्रकरण उजागर हो गया ।

उत्तरा रुढ़िवादी राजपूत परिवार से थी जबकि मयंक कुलीन ब्राह्मण परिवार से सम्बन्ध रखता था। उत्तरा के पिता अपने समाज के आगेवानों में से एक थे और पूरी जाति में उनका नाम आदर के साथ लिया जाता था । अपनी बेटी का किसी अन्य जाति के लड़के के साथ सम्बन्ध उनकी प्रतिष्ठा पर प्रश्न चिन्ह था । वे किसी भी कीमत पर अपनी प्रतिष्ठा धूमिल नहीं होने देना चाहते थे इसी से उस दिन उन्होंने उत्तरा को उसके मयंक के साथ के सम्बन्ध का यहीं अंत ला देने के लिए समझाने की कोशिश की । जवाब में उत्तरा मौन ही रही । उसके मौन को उन्होंने उसकी सहमति मानकर बात को वहीं खत्म कर दिया ।

मात्र ८ महिनों में ही उनके प्रेम को जातिवाद का ग्रहण लग गया। उत्तरा का अब ऑफिस के बाहर मयंक से मिलना लगभग बंद ही हो गया । उस शाम मयंक ने ऑफिस से छूटने के बाद काफी आग्रह और मिन्नतें कर उत्तरा को बस स्टैंड तक अपने साथ चलने को मना लिया । बस स्टैंड उत्तरा के घर के रास्ते के बीच ही पड़ता था तो मयंक को वहां तक साथ देने में उसे वैसे कोई आपत्ति नहीं थी पर उसे डर था कि कहीं उसका भाई या भाई के दोस्त उसे मयंक के साथ देख न ले । मयंक ने सोचा था कि बस स्टैंड तक उत्तरा के साथ होने से वह उससे बात कर शादी के लिए मना लेगा पर उसके बात छेड़ने से पहले ही उत्तरा के भाई ने सामने से आकर दोनों को रोक लिया । अपने भाई को यूं अचानक बीच रास्ते में देख उत्तरा सहम गई । उसकी गुस्से से लाल हुई आंखों से इशारा पाकर उत्तरा मयंक को वहां अकेला छोड़कर आगे निकल गई । उसने मयंक की कॉलर पकड़कर उसे सख्त शब्दों में उत्तरा से फिर कभी न मिलने की हिदायत देकर छोड़ दिया ।

इस घटना के बाद मयंक फिर कभी उत्तरा से नहीं मिल पाया। अगले ही दिन से उत्तरा का ऑफिस आना बंद हो गया । उत्तरा किसी न किसी तरीके से पत्र के द्वारा मयंक को अपनी प्रेम भरी संवेदनाएं पहुँचाती रही । उसके प्रेम भरे पत्र धीरे धीरे उसकी बेबसी को व्यक्त करने लगे और उसके लिखे इस पत्र के साथ ही उनकी प्रेम कहानी पर विराम लग गया ।

तभी बैडरूम से कुछ आहट उसके कानों में पड़ते ही उसने उस पत्र को वापस फाइल में रख दिया ।

अगले दिन नलिनी की तबियत ज्यादा खराब होने से अपने बेटे को स्कूल छोड़ आने के बाद वह उसे लेकर पास के ही एक प्राइवेट अस्पताल में चैकअप के लिए ले गया । संजोग बार बार उसके अतीत को उसके सामने लाकर खड़ा कर दे रहे थे। यहां रिशेप्सन डेस्क पर उत्तरा को पाकर वह ठिठक गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि पिछले ८ वर्षों से इसी शहर में रहने के बावजूद कभी भी उत्तरा से उसकी मुलाकात नहीं हुई और अब अचानक ऐसा क्या हो गया जो उत्तरा बार बार उसके सामने आ रही है । अपने आप को संयत कर नलिनी का चैकअप करवा कर वह वहां से निकल गया। आज उत्तरा को फिर से देखकर उसके मन में खलबली मच गई । समय मिलते ही उसने अस्पताल के नम्बर पर फोन कर उत्तरा से एक बार बात कर लेने का मन बना लिया ।

‘हैल्लो, स्पर्श हॉस्पीटल । हाऊ मे आय हेल्प यू सर ?’ फोन लगाते ही सामने से सुनाई देता स्वर पहचानने में उसे क्षण भर की भी देर नहीं लगी ।

‘जी, क्या मैं उत्तरा जी से बात कर सकता हूं ?’ औपचारिकतावश उसने पूछा ।

‘मयंक ?’ उत्तरा ने भी उसकी आवाज पहचानने में भूल नहीं की ।

‘उत्तरा । मैं एक बार तुमसे मिलना चाहता हूं , प्लीज मना मत करना ।’ मयंक ने साफ साफ शब्दों में कहा ।

‘नहीं मयंक । हम दोनों ही अलग अलग राहों पर काफी दूर जा चुके है। अब जानबूझ कर न मिलने में ही हमारी भलाई है ।’

‘प्लीज, एक बार उत्तरा । जब संजोग यूं अचानक इतने वर्षों बाद हमें आमने सामने ला रहे है तो कुछ तो संकेत होगा इसके पीछे ।’ मयंक ने आग्रह किया ।

जवाब में उत्तरा चुप रही ।

‘सिर्फ एक बार। तुमसे मिलकर जब तक एक बार बात नहीं कर लेता मुझे चैन नहीं मिलेगा ।’

‘ठीक है । कल सुबह जब मैं प्राची को स्कूल छोड़ने आऊंगी उसी वक्त मिल लेना ।’ उत्तरा जानती थी मयंक जब तक उसके मुंह से हां नहीं कहलवा लेगा तब तक फोन नहीं रखेगा ।

नलिनी अब पहले से बेहतर महसूस कर रही थी पर अगली सुबह नलिनी को आग्रहपूर्वक आराम करने की हिदायत देकर धैर्य को लेकर वह स्कूल की ओर निकल गया । उत्तरा स्कूल गेट के बाहर ही खड़ी थी । धैर्य को अन्दर छोड़ने के बाद उत्तरा के पास लाकर उसने अपनी बाइक खड़ी कर दी ।

कुछ देर दोनों ही एक दूसरे को चुपचाप देखते रहे फिर मयंक ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा – ‘मैं ८ साल से इसी शहर में हूं पर पहले कभी भी तुमसे मुलाकात नहीं हुई । शादी के बाद तो तुम दिल्ली चली गई थी न ?’

‘पिछले ६ महीने से यहीं हूं ।’ कहते हुए उत्तरा के चेहरे पर एक उदासी छा गई।

‘तुम यहां नौकरी कर रही हो । सबकुछ तो ठीक है न ?’ मयंक उत्तरा को लेकर अपने मन में चल रही सारी जिज्ञासाओं को खत्म कर देना चाहता था ।

‘तलाक हो जाने के बाद अपनी बेटी को लेकर इसी शहर में रह रही हूं ।’ उत्तरा ने कुछ भी छुपाना ठीक नहीं समझा ।

‘ये क्या कह रही हो उत्तरा तुम ? यह अब कैसे हो गया ?’ सच्चाई जानकार मयंक दुखी हो गया ।

‘मयंक, आते जाते लोग हमें ही देख रहे है । वैसे भी मुझे देर हो रही है । ९ बजे अस्पताल पहुंच जाना पड़ेगा ।’ मयंक की बात सुनकर उत्तरा ने कुछ असहज होते हुए कहा और एक्टिवा लेकर वहां से चली गई ।उत्तरा के बारे में जानकार मयंक और भी व्यथित हो गय । अपने जिस अतीत को पीछे छोड़ अपने जीने की एक अलग ही वजह बना ली थी आज वही अतीत उसके वर्तमान के सामने आकर उसे उलझा रहा था । वह उत्तरा की हर संभव मदद करना चाहता था । अब आये दिन नलिनी से अतिशय प्यार जताकर मयंक ही धैर्य को स्कूल छोड़ने जाने लगा । इसी बहाने वह उत्तरा से दो घड़ी बातें करने का मौका दूंढ लेता ।

नलिनी मयंक के स्वभाव अचानक आये परिवर्तन को देखकर खुश थी। मयंक नलिनी की छोटी से छोटी जरूरतों का बड़ी ही सावधानी के साथ ध्यान रखने लगा था । शादी के आठ सालों बाद वह मयंक को अपने प्रति प्यार व्यक्त करते देख रही थी । उत्तरा से मिलने के बाद से उसकी जीने की दिशा ही बदल गई । मयंक अच्छी तरह समझता था कि नलिनी से उत्तरा के बारे में छिपाकर वह उसे धोखे में रख रहा है पर उसके अतीत का प्यार वर्तमान पर हावी हो रहा था ।

उस दिन दोपहर को खाने के वक्त पर जब वह घर आया तो उत्तरा को अपने घर में मौजूद पाकर वह सकपका गया। वह कुछ प्रतिक्रिया व्यक्त करता उससे पहले ही नलिनी ने जैसे उसे असमंजस की स्थिति से उबार लिया ।

‘ये प्राची की मम्मी है। मेरी नई सहेली । इनकी बेटी प्राची और धैर्य एक ही क्लास में है । इनकी एक्टिवा चालू नहीं हो रही थी । मैकेनिक को बताया तो १ घंटें के बाद आने को कहा । मैं आग्रह कर इनको घर ले आई । बहुत जिद्दी है बड़ी मुश्किल से मेरे साथ आने को तैयार हुई ।’

मयंक के चेहरे पर फीकी सी मुस्कान आ गई । वह कुछ बोलने ही जा रहा था कि धैर्य के पीछे प्राची अन्दर से दौड़ते हुए आई । मयंक को देखकर वह खुशी से उछल पड़ी ।

‘अंकल ये आपका घर है ? कितना बड़ा है !’

‘हं ... हां ।’ प्राची के सिर पर हाथ फेरते हुए मयंक ने कहा ।

‘अब आप सन्डे को जब मुझे और मम्मी को गार्डन में घुमाने ले जाओ तो प्लीज धैर्य और आंटी को भी ले लेना । बड़ा मजा आएगा ।’ नन्हीं प्राची की बात सुनकर मयंक घबरा गया । वह नलिनी और धैर्य के हिस्से के कई रविवार उत्तरा और प्राची पर न्योछावर कर चुका था । उसने एक नजर नलिनी पर डाली । वह समझ नहीं पा रहा था कि अपनी सफाई किस तरह से दे ।

उत्तरा इस परिस्थिति का सामना नहीं कर पाई और प्राची का हाथ पकड़कर घर से बाहर जाने लगी । उत्तरा को इस तरह जाते देख हड़बड़ाहट में उसके कदम उसके पीछे जाने को उठे पर फिर नलिनी का ख्याल आते ही उसने अपने पर संयम रखकर अपने आप को रोक लिया । नलिनी उसे घूर रही थी पर वह उससे नज़रें नहीं मिला पा रहा था ।

‘रुक जाओ उत्तरा ।’ तभी नलिनी की आवाज़ सुनकर मयंक और उत्तरा दोनों चौंक गए ।

‘धैर्य, प्राची को अपने कमरे में ले जाकर तुम्हारें नए खिलौने दिखाओ ।’ नलिनी की बात सुनकर दोनों बच्चें चहकते हुए अन्दर चले गए ।

‘मयंक, क्या है ये सब ?’ नलिनी के स्वर ने कमरे में छाये मौन को तोड़ते हुए पूछा ।

‘उस दिन जब धैर्य को स्कूल छोड़ने गया था, तब पहली बार लगभग ८ साल बाद उत्तरा फिर से इस शहर में देखा ।’ मयंक ने सच्चाई बयान करते हुए कहा और पास ही रखे सोफे पर बैठ गया । उत्तरा अपराधी की भांति वहीं दरवाजे के पास खड़ी रह गई ।

‘तुम दोनों एक दूसरे को पहले से जानते हो यह बात अब तक क्यों छिपा रखी तुमने मुझसे ?’ नलिनी के स्वर में रोष था ।

‘मुझे डर था कि तुम सब कुछ जानकर न जाने कैसे रिएक्ट करोगी । वैसे भी शादी हो जाने के बाद उस बात पर पूर्णविराम ही लग चुका था तो उसे कुरेद कर यादों में जी कर तुम्हारे संग अन्याय नहीं करना चाहता था मैं ।’ मयंक ने अपनी बात पूरी की ।

‘मयंक, ईश्वर ने भले ही पुरुष को स्त्री से ज्यादा बलवान बनाया है पर स्त्री को भी एक शक्ति दी है जिसके जरिये वह अपने पुरुष साथी के मन में उठते भावों को उसके व्यक्त किए बिना ही जान सके और वह धोखा न खा सके ।’

‘तुम कहना क्या चाहती हो ?’ मयंक नलिनी के कहने का मतलब नहीं समझ सका ।

‘तुम्हारे साथ सात फेरे लेकर इस घर में तुम्हारी पत्नी बनकर आई हूं मैं । क्या कमी रह गई मयंक मेरे प्यार में ? तुमने मुझे इस काबिल भी नहीं समझा कि अपने मन की बात मुझसे कह सको ? क्यों तुम अपने अतीत की बातें मुझसे छिपा गए ?’

‘नलिनी सच कहूं तो तुम्हारे जैसी पत्नी को पाना मेरा भाग्य ही है । तुम्हे पाने के बाद मैं अपनी पिछली जिन्दगी पीछे छोड़ आया था पर फिर वर्षो बाद उत्तरा से फिर मिलकर उसके बारे में सब पता चला तो मैं खुद को उसका गुनाहगार समझने लगा । उसके तलाक का कारण कुछ हद तक मैं ही रहा हूं । पीछे छूट चुकी हमारी प्रेम कहानी उसकी शादीशुदा जिन्दगी में शंका के दायरों से गुजरते हुए तलाक तक पहुंच गई । मैं कुछ नहीं चाहता उत्तरा से – बस उसे थोड़ी खुशी दे देना ही मेरा उद्देश्य था उससे बार बार मिलने का ।’ मयंक ने खड़े होकर खिड़की के पास जाते हुए कहा ।

‘मैंने तुम्हें अपने पूरे मन से ही प्यार किया है मयंक । पर मुझे हमेशा ही तुम्हारे प्यार में कुछ कमी नजर आई क्योंकि तुम्हारा प्यार बंटा हुआ था उत्तरा और मेरे बीच । तुम्हारे और उत्तरा के प्रेम पत्र मैं काफी पहले ही पढ़ चुकी थी । माफी चाहती हूं इसके लिए पर शादी के बाद तुम्हारी घुटन और बेबसी मुझसे छिपी न रह सकी, इसी से मुझे तुम्हारा अतीत कुरेदना पड़ा था ।’ नलिनी ने विस्तार से बोलते हुए कहा ।

‘तुम्हें सब पता था फिर भी ....’ नलिनी की बात सुनकर मयंक आगे कुछ न बोल पाया ।

‘हां, स्त्री अगर कुछ बोले न तो इसका मतलब यह नहीं होता कि वह अनजान है । शादीशुदा स्त्री कुछ कड़वे घूंट अपनी गृहस्थी की ख़ातिर ही सहन कर जाती है । तुम्हारे मन में अब भी उत्तरा के लिए चाहत है न ?’

‘ये तुम कैसी बात कर रही हो नलिनी ?’ नलिनी की बात सुनकर मयंक सकपका गया ।

‘मेरे प्रश्न का उत्तर केवल हां या ना में ही हो सकता है मयंक ।’ नलिनी मन ही मन शायद एक फैसला ले चुकी थी ।

‘झूठ नहीं बोलूंगा । हां, मैं अपने पहले प्यार की दास्तान पीछे ही छोड़ आया था पर फिर अचानक ही उत्तरा........ । ’

‘ठीक है । मयंक, स्त्री पुरुष के नाम बिना के सम्बन्ध हमेशा ही बदनाम हुए है समाज में । इस सम्बन्ध को कोई नाम दे पाओगे ? अपना पाओगे उत्तरा और प्राची को ?’ मयंक की बात पूरी होने से पहले ही नलिनी ने लगभग फैसला सुनाते हुए कहा ।

‘नलिनी । ये क्या कह रही तो तुम ?’ मयंक घबरा गया ।

‘तुम्हारी घबराहट ही कह रही है कि तुम समाज और दुनिया से डरते हो । अगर उस वक्त डरे नहीं होते तो आज हम तीनों यूं अधूरी जिन्दगी नहीं जी रहे होते मयंक । मैं जानती हूं तुम्हारे इरादे नेक है पर उत्तरा से चोरी छिपे मिलने से तुम अपने आस पास शंका की एक दीवार खड़ी कर रहे हो । बेहतर यही होगा कि तुम इस रिश्ते को एक नाम दे दो ।’

‘नलिनी ?’ नलिनी की बात सुनकर मयंक की घबराहट और भी बढ़ गई । उत्तरा इस परिस्थिति का सामना नही कर पा रही थी ।

‘ठीक है । तुम उत्तरा को दुनिया के सामने अपनी जिन्दगी में शामिल नहीं कर सकते पर मैं तो कर सकती हूं न ?’ मयंक और उत्तरा नलिनी के कहने का मतलब समझ पाते इससे पहले ही उसने उत्तरा का हाथ थामकर उसे अपने पास लाते हुए कहा ।

‘उत्तरा आज से मेरी बहन हुई । तुम बेशक मिलोगे उत्तरा से । प्राची को एक खुशहाल जिन्दगी देने के लिए तुम्हें हर सम्भव प्रयास करने की छूट है पर वादा करो तुम आइन्दा मुझसे कुछ भी छिपाकर नहीं रखोगे ।’

नलिनी की बात सुनकर उत्तरा की आंखों में आँसू आ गए ।

‘नलिनी, मैं समझ नहीं पा रहा हूं तुम्हें । अजीब सी पत्नी हो तुम । पत्नी हमेशा अपने पति को अधिकार की भावना से बांधकर रखती है पर तुम तो मुझे खुली छूट दे रही हो ।’ मयंक के चेहरे से घबराहट दूर हो चुकी थी ।

‘तुम मुझे अभी भी नहीं समझ पाए मयंक । प्यार को बांधने से वह एक दायरे में सिमट कर रह जाता है और फिर घुटन भरी जिन्दगी के अतिरिक्त कुछ भी हासिल नहीं होता । बेहतर है प्यार बहता रहे ।’ नलिनी ने भावुक होते हुए कहा ।

‘हां और मैंने तुम्हें खुली छूट नहीं दी है। तुम मेरी बहन और भांजी से मिलोगे ज़रुर पर अकेले कतई नहीं । मैं और धैर्य भी साथ होंगे।’ नलिनी ने मुस्कुराते हुए मयंक के नजदीक जाते हुए कहा ।

‘अच्छा, पर अगर अकेले मिल भी लिया तो तुम्हें पता कैसे चलेगा ?’ मयंक ने उसे चिढ़ाते हुए कहा ।

‘तुम पर पूरा विश्वास है मयंक । तुम ऐसा अब कभी नहीं करोगे ।’ कहते हुए नलिनी ने उसके कन्धे पर सिर रख दिया ।


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