पतझड़
पतझड़


"रीना, ओ रीना कहां है ? कितनी देर हो गई आवाज़ देते हुए। वहीं बरामदे में खड़ी होगी एक किनारे, उस गुलमोहर को तकती। पता नहीं क्या जादू फेर रखा है उस पेड़ ने इस पर। दिन में ज़रा सी फारिग होती नहीं कि उस पेड़ को निहारने चली जाती है।", मां रीना को आवाज़ मारते हुए खुद से बड़- बड़ करे जा रही थी।
तभी रीना उनकी आवाज़ सुनकर वहां चली आई और बोली,"हां मां, बताओ क्या काम है ? आप यूं ही मुझ पर गुस्सा करती हो। सारे काम करने के बाद ही तो देखती हूं अपने पेड़ को। आपको पता तो है कि अपने पेड़ से मिले बिना मुझे अधूरा सा लगता है और अब तो उस पर कितने फूल भी आए हुए हैं। आप बस काम बताया करो, मुझे अपने गुलमोहर के साथ समय बिताने से मत रोको करो। आप तो मुझे उसके फूल भी अब नहीं लाने देती। बचपन में झोली भर के ले आया करती थी मैं।"
"तो कैसे लाने दूं तुम्हें उसके फूल। गली के बीचों बीच है वो पेड़। अच्छी लगोग क्या तुम नीचे गिरे फूल चुगती या बंदर की तरह उछल कूद करके फूल तोड़ती। तुम्हें खुद समझ नहीं आई तभी तो डांट कर समझाना पड़ा", मां फिर से लड़ पड़ी रीना को और उसे रसोई में अपनी मदद करने को कहा।रीना ने मां के साथ मिलकर रात के खाने की तैयारी की और फिर बाहर बरामदे में जाकर बैठ गई। अपनी पढ़ाई वो पहले ही कर चुकी थी।
तभी गेट से उसका भाई नीरज अंदर आया और साथ में नीरज का दोस्त विनय भी था। रीना विनय को देखकर खुश हो गई। वो पढ़ने बाहर गया हुआ था, अभी पढ़ाई पूरी करके लौटा था और अपने पिता जी के साथ उनके बिजनेस में हाथ बंटा रहा था।रीना को बरामदे में बैठे देखकर विनय ज़ोर से हंसा और बोला," आदत गई नहीं तुम्हारी उस गुलमोहर को देखते रहने की। अब भी झोली भरके रोज़ उसके फूल लाती हो क्या ?"
मां के बाद विनय के भी हंसी उड़ाने से रीना का मुंह बन गया। वो बोली, " पता नहीं क्या दिक्कत है सबको मेरे गुलमोहर के पेड़ को प्यार करने से। अब मां फूल भी नहीं लाने देती।"उसकी बात सुनकर और उसका बना हुए मुंह देखकर नीरज और विनय दोनों हंस पड़े और फिर अंदर चले गए।अगले दिन रीना को अपने कॉलेज बैग के पास गुलमोहर के फूल रखे मिले। वो खुशी से चहकती कमरे से बाहर निकली नीरज से पूछने कि ये फूल कौन लाया पर बाहर विनय को देख ठिठक गई। विनय उसके हाथ में फूल देख कर हंसा और बोला," अब से तुम्हें इन फूलों के लिए दुखी नहीं होना पड़ेगा। जब तक पेड़ पर फूल आएंगे तब तक तुम्हारे पास उन्हें लाने की जिम्मेदारी मेरी। और ये जिम्मेदारी मैं खुशी खुशी सारी उम्र उठाने को भी तैयार हूं। "
विनय की बात सुन रीना बुरी तरह शरमा गई और जल्दी से अपने कमरे में वापिस चली गई। अब उसे रोज़ बिना नागा गुलमोहर के फूल मिलने लगे थे। विनय ने उस दिन के बाद दुबारा उससे कोई बात नहीं की थी पर उसकी आंखें हर वक़्त रीना का पीछा करती थी।
गुलमोहर का लाल रंग रीना की आंखों में भी दिखने लगा था अब।नीरज को भी इसकी खबर हो गई थी। उसे इस रिश्ते से कोई ऐतराज़ नहीं था। विनय उनकी ही जाति का जो था और उसका घर परिवार भी उनके बराबरी का ही था। उसे पूरा यकीन था कि मां पापा इस रिश्ते के लिए कभी मना नहीं करेंगे।इसलिए उसने कभी विनय को इस बारे में कुछ नहीं कहा। वो बस रीना की पढ़ाई पूरी होने के बाद, जिसमें अब बस दो महीने ही रह गए थे, इस रिश्ते की मां पापा से बात करता।
तभी एक दिन मां ने उसे एक लड़के निर्वाण की तस्वीर दिखाई। वो रीना के लिए निर्वाण का रिश्ता लगभग फाइनल कर चुके थे। निर्वाण एक अच्छी कम्पनी में एक ऊंचे ओहदे पर था। नीरज को बड़ा धक्का सा लगा। उसने मां को विनय और रीना के मूक प्यार के बारे में बताया।
मां इस बारे में सुनकर हत्थे से उखड़ गई। उन्होंने नीरज को बड़ा लताड़ा और कहा," इतना बड़ा हो गया पर अक्ल तुझमें रती भर की भी नहीं है। माना विनय हमारी जाति का ही है पर हमारी जाति में भी ऊंच और नीच का हिसाब होता है और विनय का परिवार हमसे थोड़ा नीचे का है। तुम्हारी दोस्ती तक तो ठीक था पर हम अपने से नीची जाति में अपनी बेटी की शादी नहीं करेंगे। "
"पर मां, वो बाकी हर तरीके से तो हमारी बराबरी के ही हैं और ये भी तो सोचो कि हमारी रीना की खुशी कहां है", नीरज बोला।"रीना वहां भी खुश रहेगी जहां हमने उसका रिश्ता तय करने का सोचा है। इस इतवार को वो लोग रीना को देखने आ रहे हैं। आज के बाद ना विनय इस घर में दिखना चाहिए और ना ही उसके बारे में कोई बात होनी चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो तुम मेरा मरा मुंह देखोगे। मैं नीची जाति में अपनी बेटी की शादी करने से पहले मरना पसंद करूंगी", ये कहकर मां कमरे से बाहर निकली तो कोने में खड़ी आसूं बहाती रीना पर उनकी नज़र पड़ी। वो उस से बोली," अच्छा हुआ तूने सब अपने कानों से सुन लिया। अब तू देख तुझे अपनी मां का मरा हुए मुंह देखना है या नहीं", और ये कहकर वो चली गई।नीरज ने बाहर निकलकर रीना को गले से लगा लिया पर रीना सिवाय रोने के कुछ नहीं बोली। मां की इतनी बड़ी धमकी के बाद वो बोलती भी तो क्या।
इतवार को उसका रिश्ता पक्का हो गया। उस दिन के बाद ना तो उसके लिए कभी गुलमोहर के फूल आए और ना ही उसने कभी गुलमोहर के पेड़ को दुबारा देखने की कोशिश की। महीने भर बाद ही उसकी शादी हो गई।निर्वाण वैसे तो एक अच्छा इकलौता लड़का था पर बहुत घमंडी था। उसकी नज़रों में रीना का कोई खास महत्व नहीं था। शुरू में तो रीना को विनय की बहुत याद आई कि कैसे वो उसकी छोटी सी फूलों की इच्छा का भी ध्यान रखता था पर धीरे धीरे उसने उसे भूलना ही सही समझा और अपनी घर गृहस्थी में वो खो गई।
शादी के दो साल बाद ही उसे जुड़वां बच्चे हुए और उनके बाद उसकी ज़िन्दगी बहुत व्यस्त हो गई थी। अपने सास ससुर के एक एक करके गुज़र जाने के बाद बस वो अपने बच्चों का मुंह देखकर खुश हो लेती थी कि निर्वाण की नज़रों में उसका आज भी कोई महत्व नहीं था।अभी बच्चों का स्कूल में एडमिशन करवाया ही था उन्होंने कि जिस कम्पनी में निर्वाण काम करता था उन्होंने अपने कर्मचारियों की छंटनी करनी शुरू कर दी और निकलने वाले लोगों में से एक निर्वाण भी था। निर्वाण और रीना ठगे से रह गए। अभी कुछ समय पहले ही उन्होंने घर खरीदा था जिस कारण उनके पास कुछ जमा पूंजी भी नहीं बची थी और बच्चे भी दोनों अच्छे स्कूल जाते थे तो उनका हाथ एक दम तंग हो गया।निर्वाण नई नौकरी के लिए हाथ पैर मारने लगा पर आर्थिक मंदी के कारण सब तरफ यही हाल था।
रीना ने निर्वाण को कहा कि इतने उसे अच्छी नौकरी नहीं मिलती तब तक वो दोनो किसी स्कूल में पढाना शुरू कर देते हैं और साथ में थोड़ी ट्यूशंस भी पढ़ा लेंगे। इस से हाथ थोड़ा खुल जायेगा। पर निर्वाण ने साफ मना कर दिया कि वो इसलिए इतना नहीं पढ़ा था और ना ही वो अपना स्टेटस इस लेवल पर लाने को तैयार था । रीना ने जब ज़िद की तो निर्वाण ने उस पर हाथ उठा दिया ।
हार कर रीना ने खुद एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया और साथ में वो कुछ ट्यूशन भी लेने लगी।नौकरी, ट्यूशन, घर का काम और उसपर दो बच्चों को संभालना और पढ़ाना, रीना इतने काम के कारण बीमार सी दिखने लगी और हमेशा थकी सी रहने लगी। निर्वाण उसके कमाई करके लाने से चिढ़ गया और उसकी बिल्कुल मदद नहीं करता था। जैसे तैसे रीना अपने बच्चों को देख सब संभाल रही थी।
जैसे ही गर्मी की छुट्टियां शुरू हुई, वो थोड़े आराम के लिए बच्चों सहित अपने मायके आ गई। उसकी मां तो उसकी शक्ल देख कर ही हिल गई और बोली, " ये क्या हुआ तुझे ? ऐसे लग रहा है जैसे अरसे से बीमार हो। क्या हुआ, सच्ची सच्ची बता।" रीना फीकी सी हंसी हंस कर बोली," कुछ नहीं हुआ मुझे मां। बस इतने सारे काम से थक गई हूं। अब यहां आ गई हूं तो अच्छे से आराम करूंगी।"
मां बोली," तू अकेली क्यों थक रही है। कहती क्यों नहीं निर्वाण को कि वो भी तेरे साथ नौकरी और ट्यूशन करे और तेरा हाथ बटाएं। ऐसे कब तक चलेगा। अच्छी नौकरी नहीं मिलेगी तो क्या खाली बैठा रहेगा ? काश तेरी ससुराल में कोई होता जो उसे समझा सकता। अब वहां कोई नहीं है तो तू ही समझा उसे।"
रीना बोली,"मां वो ऊंची जाति के हैं ना, नीची नौकरी नहीं करेंगे। अपने स्टेटस का उन्हें बड़ा मान है।"उसकी बात सुन मां के चेहरे का रंग सा उड़ गया। बात को संभालने के लिए वो बोली," आ चल बाहर बरामदे में बैठते हैं। तू भी अपने गुलमोहर को देख ले जरा।"रीना मां का हाथ पकड़ कर बोली, " रहने दो मां , अब गुलमोहर को देखने का क्या फायदा। उस पर तो हमेशा के लिए पतझड़ आ चुकी है।"
मां नम आंखों से बेटी को ऊंची जाति का अपना पिलाया हुआ ज़हर पीते देखती रही। आज उन्हें अपनी गलत सोच और पसंद पर बड़ा दुख हो रहा था पर उनका दुख बीता समय थोड़े ही वापिस ला सकता था। उनके एक गलत फैसले ने उनकी बेटी की ज़िन्दगी में हमेशा के लिए पतझड़ का मौसम लाकर छोड़ दिया था।