Moumita Bagchi

Inspirational

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Moumita Bagchi

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पति परमेश्वर

पति परमेश्वर

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मीरा तो बस नाम से ही लड़की थी परंतु काम हमेशा उसके लड़कों जैसे ही होते थे। उसकी दादी को हमेशा यह चिंता सताती थी कि उनकी इस पोती से शादी कौन करेगा?!! वह न केवल लड़कों के संग खेलती थी वरन् उन्हीं के जैसे पोशाक भी वह पहनती थी। उसकी उमर की लड़कियां जहाॅ घर-घर खेला करती थी, गुड्डे गुड़ियों का ब्याह रचाया करती थी वहीं मीरा को गिल्ली-डंडा, तैराकी, पेड़ पर चढ़ना, गली क्रिकेट जैसे खेल भाॅते थे। 

अगर घर पर कभी वह न मिलती तो उसका पता वह उससमय फॅलाना पेड़ पर अपने हमउम्र लड़को के साथ हुआ करता था। उसके पिताजी के बचपन में ही मृत्यु हो गई थी । और माॅ और दादी माॅ उसे काबू में रखने को अक्षम थे। 

अगर किसी से वह दबती थी तो वह थे उसके ताऊजी। उनके आगे वह बिलकुल भीगी बिल्ली बन जाती थी।परंतु उन्हें भी काम पर जाना होता था। शेष समय वह लड़कों की टोली की सरगना बनी घूमती थी। घर के कामकाज उसे एक भी न आते थे---न उसकी सीखने की कोई इच्छा ही थी और न माॅ ही उसे सीखा पाई थी। फिर बिन बाप की बच्ची पर सब तरस खाते थे। इसलिए कोई उसे ज्यादा रोकता टोकता नहीं था।

इतने सारे ऐबों के बावजूद अगर उसमें कई खूबी थी तो यह कि उसके लंबे, घने और सुंदर रेशम से बाल! जो भी उन बालों को देखता तो तुरंत उसके कायल हो जाते थे। उस व्यस्त बाला के पास इनके परिचर्या के लिए समय ही कहां था? आधे दिन बालों में तेल डालना, कंघी करना वह भूल जाती थी फिर भी उसके बाल ज्यों के त्यों सुंदर बने रहते थे । नैन नक्श भी बुरे नहीं थे उसके। इतने सुंदर बालों के कारण उसका गोरा मुखरा बादलों से घिरी किसी शरत् पूर्णिमा की चाॅद समान लगती थी। अतः उसे जो भी एकबार देख लेता था उसके रूप से प्रभावित हुए बिना न रह पाता था।

हर एक प्रकार की शैतानियों के साथ-साथ उसका दिमाग भी बड़ा तेज दौड़ता था। इसलिए वह पढ़ने में भी तेज थी। लोगों को यह सोचकर आश्चर्य होता था कि वह अपना पढ़ाई करती कब थी? परंतु रिजल्ट उसका हमेशा अव्वल रहता था। गाॅव की स्कूल की पढ़ाई पूरी करके उसे अनायास ही शहर के काॅलेज में एडमिशन मिल गया। वह अपने पूरे इलाके में अव्वल रही इसलिए उसे छात्रवृत्ति मिलने में भी कोई असुविधा न हुई। जिससे उसकी पढ़ाई और होस्टल में रहने का पूरा खर्चा निकल आया।अतः उसकी माॅ को उसके पढ़ाई के खर्चे के लिए ज्यादा सोचना न पड़ा। वे वरन् कुछ निश्चिंत होकर उसके शादी के लिए पैसे जोड़ने लगीं।

जिस उम्र में हर लड़की को यदि एक बायफ्रेंड मिल जाए तो वे खुशी से सातवें आसमान पर पहुंच जाती थी तो उसी उम्र में मीरा तीन-तीन बाॅयफ्रेंड्स के साथ घूमा करती थी। आखिर वह मीरा थी। उसकी हरबात तो निराली होनी ही थी। वह लड़कों को खिलौनों से ज्यादा न समझती थी और एक से मन भर जाता था तो तुरंत ही दूसरा बदल लिया करती थी। काॅलेज के सारे लड़के उहके दीवाने थे। उसकी एक नजर, कृपा के लिए उसके आगे पीछे वे घूमा करते थे। शादी के बारे में मोहतरमा का ख्याल बिलकुल नायाब था। कहती थी कि वह तो नौकरी करेगी, शादी कभी नहीं करेगी। क्योंकि जिन्दगी में नौकरी करना ज्यादा अहम है, पतियों का क्या? एक गया तो दूसरा मिल ही जाएगा!!

परंतु शादी के बाद मीरा आमूल बदल गई। जिसे देखकर हम सबको बड़ा ताज्जूब हुआ। वह अपनी पति का बखान करते न थकती थी। और वह जो भी वह कह देता था उसी की हाॅ में वह हाॅ मिलाया करती थी। यह चमत्कार कैसे हुआ -- यह जानने के लिए हम सब सहेलियाॅ एकदिन उसके ससुराल पहुंच गए।

मीरा को काॅलेज पास करते ही एक अच्छी सी नौकरी मिल गई थी। कुछ ही महीने में उसके लिए एक अच्छा रिश्ता भी आ गया। लड़केवलों से मिलने के बाद उसके घरवाले शादी के लिए राजी हो गए थे। लड़का ऊंचे खानदान का था और अच्छा खासा पढ़ा -लिखा था। जीजाजी ने सीए कर रखा था और खुद का एक फाॅर्म था। यों तो उनकी पुशतैनी जायदाद इतनी अधिक थी कि कुछ काम काज करने की आवश्यक्ता ही न थी। परंतु जीजाजी बहुत परिश्रमी मालूम होते हैं।

मीरा ने पहले पहल इस शादी से इंकार कर दिया था। और उसने उन लोगों के साथ काफी बदतमीजी भी की थी कि ताकि उसकी शादी टूट जाए। परंतु दूल्हे से मिलकर उसे अच्छा लगा था और वह शादी के लिए मान गई थी।

बहरहाल, मीरा के ससुराल में हमारी आवभगत बहुत अच्छी तरीके से हुई। हम आखिर बहुरानी के दोस्त जो ठहरे !! उसके सास ससुर से लेकर परिवार के सभी लोग हमे बहुत भलेमानुस लगे। यहाॅ तक कि उनके घर के नौकर चाकर भी हमारी खातिर करने लगे। मीरा अब भी अपनी नौकरी करती थी। उस दिन छुट्टी का दिन था। अतः दोपहर के भोजन के बाद हम सब सखियाॅ जब टेरैस में इकट्ठी हुई तो बातों का सिलसिला चल पड़ा।बैठकर बातें । मीरा कहने लगी कि वह बड़ी किस्मतवाली है कि उसे पति के रूप में देवता मिले हैं। 

जब हमने पूछा कि उसका कायापलट कैसे संभव हुआ। तो मीरा मुस्कराई। फिर थोड़ी देर चुप रहकर अपनी शादी की कहानी सुनाने लगी।

मीरा के पति ने उसे पहले पहल काॅलेज में देखा था। उसीदिन उन्होंने निश्चय कर लिया था कि अगर वे किसी से शादी करेंगे तो सिर्फ और सिर्फ उसी से। हालांकि जीजा जी उसके काफी सिनियर थे मगर काॅलेज फेस्ट में उन्होंने मीरा को एक झलक देखा था और वहीं उसे दिल दे बैठे थे। उन्होंने ही अपने घरवालों को उसके घर रिश्ता लेकर भेजा था। उनकी शादी का सारा खर्चा भी वे ही उठाए परंतु किसी को इस बात की भनक तक न लगने दी। उसकी विधवा माॅ कहाॅ तक सब सामान जुटाती?? यह बात मीराके ससुराल में अब भी किसी को भी नहीं मालूम था।

फिर उसके जिन्दगी में वह काली रात आई --जिसे सभी सुहाग रात कहते हैं। इस परिवार की बहुओं के लिए दरअसल वह इम्तिहान की रात है। एक बहुत पुराने रिवाज के अनुसार इसदिन नई नवेली दुल्हन को अपने सतीत्व की परीक्षा देनी होती थी। फिर यदि दुल्हन सती होती तो अगले दिन उसका बड़ा बढ़चढ़कर परिवार के बुजुर्गों के आगे बखान किया जात। और यदि अन्यथा हुआ तो उस बहू को आजीवन एक कलंकिनी की जिन्दगी बितानी पड़ती थी। वह मारे शर्म से किसी को यह कह भी न पाती थी और घुटकर रह जाती। यही उसकी नियति होती थी। इस परीक्षण के लिए सुहाग रात के दिन दूल्हा-दुल्हन के पलंग पर एक सफेद चादर बिछाया जाता था। जिसे ऊपर से फूल के पंखुड़ियों से सछा दिया जाता था। यदि अगले दिन सुबह उस चादर में खून के धब्बे मिलते तो दुल्हन इस भर्जिनिटी टेस्ट में पास हो जाती थी।

जीजाजी को यह बात पहले ही मालूम थी। उन्होंने अपने परिवार के कई भाभियों को सबके सामने जलील होते हुए देखा था। उस समय वे बच्चे थे इसलिए कुछ कर न पाए थे। परंतु वे दृढ़प्रतिज्ञ थे कि मीरा के साथ यह सब होने नहीं देंगे। एक और बहू के आत्मसम्मान की यों सरेआम निलामी का वे किसी भी कीमत में विरोध करेंगे। उन्होंने पहले ही वह सफेद चादर बिस्तर पर से हटा ली थी। और सुबह होते ही ब्लेड से अपनी उंगली काटकर उस चादर पर अपने लहू से निशान बनाकर उसे घरवालों को सौंप दी थी।

जीजाजी की इस आत्मत्याग की बात कहते कहते मीरा रो पड़ी थी। उसने बताया कि वह दुनिया की सबसे खुशकिस्मत पत्नी है जिसे उनके जैसा पति मिला। आखिर एक औरत अपने पति से क्या चाहती है--थोड़ा सा प्यार और इज्जत ही तो? औरत सबकुछ सह जाती है परंतु अपने स्वाभिभान को आहत होते कभी नहीं देख सकती। पति भी वही श्रेष्ठ होते हैं जो पत्नी के इस आत्मसम्मान की कद्र करें। जीजा जी के इस त्याग से एक और नई बात हुई। मीरा के मन में पुरुष वर्ग के प्रति आदर और सम्मान की भावना पैदा हो गई।

बहरहाल, हम सभी सहेलियाॅ मीरा की इस बात से पूरी तरह से सहमत थीं। मन ही मन सबने ईश्वर से प्रार्थना की कि हर लड़की को ऐसा ही पति मिले।

औरतों के शोषण की यह कुप्रथा आज भी कई परिवारों में प्रचलित है। प्रचलित अंधविश्वास के कारण औरत को ही शादी के बाद अपनी वर्जिनिटी की परीक्षा देनी होती है। पुरुषों से यह सवाल कोई कभी नहीं पूछता। बल्कि पुरुषों का अगर कई औरतों के साथ शादी से पहले शारीरिक संबंध हो तो उन्हें इसबात के लिए परिवार की ओर से अखंड प्रश्रय भी मिल जाता है और उनकी गलतियों पर सदैव पर्दा डाल दिया जाता है---- क्या आप बता सकते हैं कि ऐसा हम महिलाओं के साथ ही क्यों किया जाता है?

*** मेडिकल साइंस के अनुसार प्रथम शारीरिक मिलन के समय महिलाओं में हाइमेन नाम की जो झिल्ली होती है वह टूट जाता है और इसी से रक्तपात होता है जिसे समाज किसी महिला के सतित्व परीक्षण की कसौटी मान लेता है।

परंतु मेडिकल साइंस यह भी कहता है कि साइकिल चलाने से, घुड़सवारी करने से, तैराकी आदि कई खेलकूद को करने से भी महिलाओं का यह हाइमेन टूट सकता है।

अब जाहिल समाज के ठेकेदारों को यह कौन समझाए। ये वो ही लोग है जो लड़की पैदा होने पर सबसे पहले माॅ को कोसते हैं !


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