Manju Rani

Tragedy

4.0  

Manju Rani

Tragedy

पति को एक पत्र

पति को एक पत्र

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आज़ जब पत्र लिखने बैठी तो समझ नहीं आया क्या संबोधित करूँ।जीवन के इस मोड पर ऐसा भी समय आयेगा सपने मेंं भी नहीं सोचा था। एक सीधी सच्ची सरल सी जीन्दगी ,जहाँ किसी भी बात को लेकर कोई शोर न हो,बस इतना ही चहा था।पर जो चाहते हैं वो मिलता कहाँँ है।

 आज़ से छबीस साल पहले शादी हुई वो भी घर से बिल्कुल विपरीत वातावरण में,पर फिर भी उसे ही अपना घर मानते हुए ,जल्दी ही उस परिवार को अपना लिया।वो बात अलग है उन्होंंने अभी तक मुझे अपना नहीं माना।

औरत की यही विडंबना है वह सब के लिए होती है पर सुुसराल मेंं वो हर मोड पर अकेली होती है।शायद इसलिए आज की  बटियों का जीने काअंंदाज़ बदल 

गया है।वो अपनी शर्तों पर जीना सीख रही हैं।पर हम इस उम्र के पडाव पर क्या अपने पास रखें ,क्या छोड़े।जिंदगी की टेढ़ी-मेढ़ी,उँची-नीची,उबड-खाबड राह पर इनका हाथ कसकर पकड चली ही जा रही थी,चली ही जा रही थी, दुनिया से बेेखबर अपने ही आशयाने को जन्नत मान ,उसे ही पूूूजे जा रही थी,अपनी वफा, समर्पणप्यार के फूल चढाए जा रही थी। पता ही नहीं चला कब हाथ की पकड़ ढीली पड गयी और वो अटूट विश्वास की डोर  टूट गई। हाथ पकड कर चलने की इतनी बुुरी आदत हो गई है कि एक भी कदम आगे रखा ही नहीं जाता।पर उन्हें इस बात का एहसास तक नहीं क्योंकि अब उन्होंने

किसी के कोमल-कोमल हाथोंं को थाम लिया है।मेरे खुरदरे हाथ उन्हें भाते नहीं। पर कहाँ से लाउँ कोमल-कोमल  हाथ छबीस साल से घिस रही हूँ।

जिंदगी के इस मोड पर मैं, मैं रही नहींं , सिर्फ और सिर्फ तुम बनकर रह गई हूँ। जो ,सपने बुुुने थे वे अभी आधे अधूरेे हैं उनकी की अर्धांंगिनी हूँँ तो उन्हें पूरा भी करना है। पर अकेले कैसे ? वो तो अपना अस्तित्व व मान बचाने के लिए हर बात से नकार रहे हैं और मेरी राह मेंं

 नुकीले पत्थर बिछायेे जा रहे हैं।जो एक  ठोकर नहीं खाने देते थे ,वो आज़ क्या कर रहे हैं खुुद नहीं  जानते।आज़ ये ही बताने के लिए कि जो भी उन्होंने किया  उसेे स्वीकारने से वे छोटे नहीं हो जायेंगे । पर उनके झूठ बोलने से सब अन्दर से टूट रहा हैै बिखर रहा है।सच बोलने से मेरे मन मेंं इज्जत रहेगी पर शायद मैं उनकेदिल मेंं वो जगह ही नहीं बना पाई, जहाँ वे मेरे बारे मेंं सोचे।पर एक सच से हम सब  जी सकते हैं एक - दूूूसरे को सम्मान के साथ दिल मेंं रखते हुये अपने कर्म कर सकते हैं। ये ही अंतर है हम  मेंं और आज़ के बच्चों मेंं वे जो करतेेंं हैं वो बोलते हैं दिल मेंं ज्यादा छुपा कर नहीं रखते शायद इसलिए खुुुश रहने  की कोशिश करते ही रहते हैं।बस ये सब पत्र में लिखना  चाहती थी पर उन्हें सम्बोधित ही नहीं कर पाई।आज़ की औरत होती तो शायद एक्स लिखकर काम चला लेती पर मैंं ऐसा भी न कर पाऊँगी क्योंकि अभी भी वो ही दिल मेंं बसे हैं और  सदा बसे रहेंगे।



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