अपना ध्यान स्वयं
अपना ध्यान स्वयं


छोटीसी रोबिन चिडिया को उसके मम्मी-पापा प्यार से उठा रहे थे। मीनी रोबिन उठ ही नहीं रही थी।
मम्मी रोबिन बोली- जल्दी उठ नहीं तेज धूप मेंं उड़ नहीं पाएंगे। यह सुन कर मीनी उठ गई।
मीनी बोली- हम सच मेंं पास वाले गांव में रहने जा रहे हैं।
पापा रोबिन परेशान से बोले - और क्या करें? यहाँ तो तू ठीक ही नहीं हो रही। रोज़ तेरे पेट मेंं दर्द होता है। बन्दर मामा बोल रहे थे शायद तुम कूडे के ढेर से खाते समय थोडा बहुत पोलिथीन खा लेती हो।
मीनी तुनक के बोली - मैं पोलिथीन नहीं खाती। वहाँ कूडे में पोलिथीन ही पोलिथीन होता है,इसलिए थोड़ा बहुत मुहँ में चला जाता है। मम्मी आप तो कह रही थी पोलिथीन पर बैन लगा हुआ है।
मम्मी रोबिन बोली - लगा तो है पर यहाँ सुनता कौन है। वैसे ही तेरे चार भाई -बहन तो रहे नहीं। अब हम तुझे नहीं खो सकते। इन लोगों का क्या। कुछ भी करते हैं। इस संक्रांति वाले दिन नहीं देखा ,कैसे तोते के पैर मेंं पतंग का मांझा फस गया था। वो कितना चिल्ला रहा था आखिर उस का पैर कट गया। उनका क्या चला जाता अगर वो लोग प्लास्टिक की जगह सादा मांझा इस्तेमाल कर लेते। चलो हम जल्दी निकलते हैं। वो तीनों उड़ने लगे। मीनी बार-बार पीछे मुड कर अपना प्यारा-सा घोंसला देख रही थी। तभी पापा बोले - आगे देख कर उडान भरो।
वो तीनों उड़ रहे थे। थोड़ी देर बाद मीनी को प्यास लगी। वो एक तालाब के पास पानी पीने नीचे आ गए। तभी मीनी चीं -चीं कर चिल्लाने लगी - वो देखो
एक बगुला उसकी चोंच मेंं कुछ फंसा है।
तभी मम्मी बोली शायद पोलिथीन।
मीनी चिल्लाई - पानी में भी पोलिथीन। तु पूछ मत कहाँ नहीं पोलिथीन। तभी किसी आदमी ने बुगले को परेशान होते देखा और उसकी चोंच से उसे हटाया। वो भी उड़ चले।
थोड़ी देर उड़ने के बाद बहुत सारे खेत नजर आए और वो वहीं उतर गए।
मम्मी बोली - अब आराम से खाना । मीनी इधर - उधर उड़ने लगी। फिर मम्मी-पापा को चोंच से खींचने लगी। मम्मी -पापा ने देखा वहाँ तो जगह-जगह छोटे- छोटे खाली प्लास्टिक के रैपर पड़े हैं।
मीनी के मम्मी- पापा ने आव देखा न ताव और बोले- मीनी वापस उड़ चल। अब बस तुझे अपना ध्यान स्वयं रखना है।