राम-लक्ष्मण
राम-लक्ष्मण
चौबीस मार्च दो हजार बीस को लोक डाउन हुआ तब मेरा बड़ा भाई अस्पताल मेंं भर्ती था।मम्मी-पापा बहुत परेशान थे कि अब क्या होगा? डॉक्टर ने आकर बोल दिया कि अभी आप इन्हें घर ले जा सकते हैं, तीस दिन बाद आकर प्लास्टर कटवा लिजिए, फिर ही पैर की हालत का पता चलेगा।
माँ, बोले ही जा रही थी कि "अब क्या होगा?"
मैंने बोला -"माँ, परेशान मत हो, मैं सब सम्भाल लूगा।"
पापा परेशान से बोले- "तू डॉक्टर थोड़े ही है जो सब सम्भाल लेगा,कल डॉक्टर बोल रहेे थे एक हफ्ता अस्पताल में रखेंगे और अब घर ले जाने को कह रहे हैं।
मैंने कहा-- "कोविड-19 से बचने के लिए वे घर लेजाने को कह रहे हैं कमजोरी में जल्दी कोरोना हो सकता है।"
माँ बोली- "हमें ये सब नहींं पता, बस हमारा बच्चा ठीक होना चाहिए ।"
मैं बोला-- "मैैं अपने भाई को कुछ नहीं होने दूूँगा। मैं जो डॉक्टर बोलेगें करूूँँगा उस का हर तरह से ध्यान रखूँगा।"
पापा चिल्ला कर बोले -- "पता है न जेई की परीक्षा है।पिछली बार अच्छे नम्बर नहीं आए थे ,इस बार आई.ए.टी. मेंं जरूर आना चाहिए। ये सुनकर मुझे बहुत तेेेज़ गुस्सा आया कि यहाँँ मेरेे भाई के पैैैर का इतना बड़ा ऑपरेशन हुुुआ है और इन्हें मेरे कैरियर की पड़ी है।"
मैं तुनक कर बोला -"-हो जायेगा ।'
फिर हम भाई को घर ले आए। अस्पताल मेंं भाई कुछ नहींं बोला ,पर घर आकर कहनेे लगा--"तुुुझे पूरी तैयारी से परीक्षा देनी है समझा।"," हाँँ, भाई"--मैं बोला।मैं अपने भाई का हर काम करने लगा, उसे नहलाना -धुलाना,खाना देना आदि। भाई खुद सीवल इंजीनियर था ,उसने रुड़़की से इंजीनियरिंग की थी इसलिए वो मुझे पढ़ाने लगा। पता ही नहीं चला कब तीस दिन बीत गए।
फिर अस्पताल फोन किया तो वो बोले -डॉक्टर से बात करने के बाद बताते हैं। फिर उनका फोन आया कि डॉक्टर आप से बात करना चाहते हैं। डॉक्टर ने बताया --"एक हफ्ते बाद प्लास्टर काट सकते हैंऔर आप घर पर ही प्लास्टर काट लेेना, मैं आप लोगों को गाइड कर दूँगा।"
एक हफ्ते बाद जैसे -जैसे डॉक्टर ने बताया ओन लाइन मैंने वैसे-वैसे काट दिया। भाई को उन्होंने चलवा कर देेेखा और दर्द के बारे मेंं पूछा।भाई को ज्यादा दर्द नहीं था।डॉक्टर ने कुछ पैरों की कसरत बताई। मैं सोच रहा था अगर ओन लाइन नहीं होता तो क्या होता? करोना नेे सब सिखा दिया।
मैं भाई का इतना काम नहीं करता था जितनी वो मुझे तैयारी करवा रहे थे। धीरेे-धीरे भाई का पैैर ठीक हो रहा था।करोना की वजह से हमारी परीक्षा सितम्बर मेंं हुई।भाई भी ठीक से चलने लगे।
भाई बोले -" आज तेरी वजह से मैं ठीक से चल पा रहा हूँ।इतने दिन मेरी बैसााखी बन जो तूने किया है वह कोई भाई नहीं कर सकता।तूने मेरे लिए दिन-रात एक कर दिया।"
मैं बोला--"भाई,ज्यादा मत चढाओ।" फिर हम दोनों मस्ती करने लगे। माँँ,हम दोनों को एसे देखकर हाथ जोड ईश्वर को ध्न्यवाद कर रही थी । थोड़े दिन एसे ही खुशी-खुशी बित गये। भाई का जाने का दिन आ गया और मेरा परिणाम आ गया । मेरी बारहवीं रैैंक आई थी जो सिर्फ भाई की वजह से आई थी।घर मेें सब की आँँखे खुशी से नम थी।
माँ,विभोर हो बोली- "ऐसे ही राम-लक्ष्मण बन सदा रहना।"