इस उम्र में
इस उम्र में


वंदना अपनी कैमरामैन निलीमा को फोन पर समय से कैब यानी टैक्सी लाने को बोलती है और समय पर अंम्बिका देवी के घर पहुंचना है याद दिलाती है।
नीलिमा कैैैब लेेे वंदना के घर पहुंच जाती है।वंदना कैब मेें बैैठते हुए पूछती है-"मम्मी कैसी हैं अब?"
निलीमा- "ठीक ही हैं।मैं कल उन्हें अंंम्बिका जी के बारे मेे बता रही थी कि एक नब्बे साल की विधवा औरतने अपनी जीवनी लिख हिंदी साहित्यिक पुरस्कारइस वर्ष का जीत लिया है।
वंदना उतसाहित होते हुए बोलती है, वो उनकी पहली पुस्तक है और पहली किताब ने ही कमाल कर दिया।
तूने पढ़ी है? हाँ, निलीमा उत्तर देती है।मुझे जो उन्होंने मुहावरे अपनी जीवनी मेंं लिखे हैं बहुत अच्छे लगेे हैं हाँँ, मुझे भी पसंद आये क्योंकि उनके मुहावरों के अर्थ उनकी कहानी मेेंं ही स्पष्ट हो जाते हैं । वंदना भी हाँ मेंं
हाँ मिलाकर बोलती है।पर उन्हें प्ररेणा कहाँ से मिली।
निलीमा बोलती है उसे ये तो नहीं पता पर इतना पता है कि उनके पति दो वर्ष पहले ही गुजरे थे और वो किसी स्कूल मेंं नहीं गई थींं।उन्हें बस हिंदी मेंं बस पढ़ना-लिखना आता था जो उनके पति ने सिखाया था।
वंदना बताती है कि उसने कहीं पढ़ा था कि पति की मृत्युु के बाद उन की तबीयत खराब रहने लगी तब उनकी डाक्टर बेेटी उनके पास आकर रही।तब उसने उन्हें एक टैबलेट खरीद कर दिया। उस पर लिखना सिखाया।एक दिन अचानक से बोली, माँ आप नेे अपने दोनों बच्चों को कामयाब बनाया है देखो भैैया इतनी बडी़ कम्पनी का डायरेक्टर है आप ने ये सब कैसे किया वो सब लिखो।
माँ ने पहले मना किया उन्हें लगा हर माँ-बाप अपने बच्चों को कामयाब बनाना चाहता है।फिर बेटी ने समझाया पर हर माता -पिता का तरीका अलग होता हैै।आप ने अपनेे परिवार को कैसे चलाया बस वो लिख दो, हो सकता है किसी को कुछ सीखने को मिल जाये और इस बहाने समय भी कट जाएगा।
तभी ड्राइवर बोला मैैैडम आप पहुंँच गए। वंदना और निलिमा कार से उतर कर लेखिका की घर की ओर चल दिये।