प्रतिज्ञा (कहानी)
प्रतिज्ञा (कहानी)


नैनीताल की सुन्दर सी झील और चारों तरफ पहाड़ियों का खूबसूरत नजारा रूही की ज़िन्दगी को रोमांचित करने के लिए काफी था। दिनभर सैर करने के बाद शाम की थकान मॉल रोड पर चहलकदमी करने से दूर हो जाती थी। वैसे अभिनव जैसे इंसान का साथ पाकर तो उसके पैर जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। इन खूबसूरत वादियों को छोड़ने को उसका दिल बिल्कुल तैयार नहीं था।वैसे तो अभिनव में सभी अच्छी आदतें थीं लेकिन उसको बार-बार छोड़कर एकांत में सिगरेट पीने जाना और एक दुर्गंध के साथ वापस आना उसे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था। थोड़ी बहुत टोका-टाकी के बाद तो उसने, उसके सामने ही सिगरेट पीना शुरू कर दिया था। उसे बुरा तो बहुत लगता लेकिन अपने को नया-नवेला समझ कर कोई भी कठोर निर्णय देने से परहेज़ किया।एक बार उसने समझाने की कोशिश की थी।-
अभिनव, तुम एक अच्छी पर्सनालिटी के मालिक हो। लेकिन इस तरह सिगरेट पीना तुम्हारी सेहत को कभी भी नुकसान पहुंचा सकता है। आखिर ये बुरी लत तुम्हें लगी कैसे?- अरे यार रूही, बात उन दिनों की हैं जब हमारा कॉलेज में नया-नया एडमिशन हुआ था। सीनियर्स ने एक दिन हम लोगों को रैकिंग के बहाने घेर लिया ।और जो सिगरेट नहीं पीते थे उन्हें सिगरेट जला कर हाथ में पकड़ा दी। पहले दो चार काश में तो जोरदार ठसका लगा। लेकिन उसके बाद तो दोस्त जब भी मिलते सिगरेट ज़रूर पीते। फिर तो एक तलब सी लगने लगी। जब आदत और बढ़ी तो एकान्त में भी पीने लगे। लेकिन तुम टेंशन मत लो।
मैं किसी दिन बिल्कुल से छोड़ दूँगा। तुम मेरा यकीन करो।
नहीं अभिनव, अब तो तुम चैन स्मोकर बन गए हो। कहीं ऐसा न हो कि तुम सोचते रह जाओ और सिगरेट ही न तुम्हें छोड़ दे। कभी हम लोगों के बारे में भी सोचा है? चलो रिहेबिटेशन सेन्टर चलते हैं। वो लोग सिगरेट छोड़ने में तुम्हारी मदद करेंगे।- रूही, तुम मेरा विश्वास करो। देखना एक दिन मैं इसे छोड़ दूँगा।लेकिन वह एक दिन कभी नहीं आया। बल्कि उम्र के साथ इसके साइड इफ़ेक्ट दिखने लगे। मुँह के ऊपर के तालू में एक छाला हो गया।
बहुत इलाज कराने पर भी जब नहीं ठीक हुआ तो डॉक्टरों ने जांचों के साथ बायप्सी भी करवाई। जब तक जांचे आगे बढ़ती केंसर ने अपनी जड़ें जमा ली थीं। आपरेशन के द्वारा जबड़े के उतने हिस्से को काटना ही एक मात्र विकल्प था।ऑपरेशन बहुत रिस्की था। हो तो गया लेकिन कुछ ही दिन बाद अभिनव की दुःखद मृत्यु हो गई।रूही को हमेशा उस बात का पछतावा था कि उसने ज़िद करके ज़बरदस्ती क्यों नहीं की। न वह उसे सिगरेट पीने से रोक पाई और न ही सही समय पर इलाज हो पाया। शायद अभिनव उसके कहने से रिहेबिटेशन चला जाता तो ये दिन न देखने पड़ते।अब तक बच्चे भी बड़े होकर अपने पैरों पर खड़े हो गए थे।उसने देर से सही लेकिन अब एक कठोर फैसला ले लिया था।
उसने प्रतिज्ञा कर ली थी कि अभिनव के फण्ड और दूसरी जमा पूंजी से एक रिहेबिटेशन सेन्टर खोलेगी ताकि किसी भी माँ, पत्नी, बेटी को अपना बेटा, पति और भाई न खोना पड़े।