प्रतिध्वनी
प्रतिध्वनी
धन और यश के शिखर पर तो वो खड़ा ही था, लेकिन आज अपने सपनों के मकान को साकार देखकर वो बहुत खुश था| देश-विदेश के महंगे से महंगे सामानों से निर्मित इस सुसज्जित मकान के सामने बड़े-बड़े महल भी फीके लग रहे थे|
वो गर्व से अंदर गया, बड़े से चमचमाते कक्ष में लगे विदेशी आईने के सामने खड़ा हो कुछ क्षणों तक स्वयं को आत्ममुग्ध होकर देखता रहा, फिर पीछे खड़े अपने निजी सचिव से कहा, "केवल दस सालों में यह एम्पायर खड़ा किया है| कोई सोच भी नहीं सकता कैसे?" अपने चेहरे पर आई हंसी को वो रोक नहीं पाया|
और अपनी रौ में कहता रहा, "इस बंगले का निर्माण पूरा होने की ख़ुशी में पूरे स्टाफ को दस प्रतिशत बोनस की घोषणा कर दो|" और वो अपने चिरपरिचित अंदाज में तेज़ी से हँस दिया, खाली मकान में उसकी हँसी की प्रतिध्वनी भी सुनाई देने लगी|
उसने फिर धीरे से कहा, "इस सबके लिये मुझे संस्कारों और चरित्र का मोह छोड़ना पड़ा, लोगों को खुश रखना ही पड़ता है, कोई चाहे शराब मांगे, धन मांगे या पत्नी|"
फिर उसने मन ही मन सोचा, "आगे बढ़ने के लिए और भी बहुत कुछ करना होता है, ताजमहल बनने के बाद कारीगरों के हाथ कटते ही हैं और बनने से पहले कितनी ही गर्दनें|"
अपने अंदरूनी विचारों को भटकते देख, उसने नज़रें मकान की भव्यता की तरफ कर दीं, उसकी आखों में ख़ुशी भर गयी, और उसने जोरों से कहकहा लगाया, लेकिन अब जो प्रतिध्वनी आई उसमें कई लोगों रूदन था और उसकी पत्नी की चीख थी|
