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Anita Jain

Abstract

2.8  

Anita Jain

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प्रोजेक्ट

प्रोजेक्ट

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प्रोजेक्ट

 

'जितना सुना था उससे तो बेहद उम्दा है आशु, तुम्हारा ये एनजीओ |"

तुम इंजिनियरिंग के छात्र कहाँ इस चक्कर में पड गये" | मीरा ने पूछा ||

दोनों दिसम्बर की कड़कडाती ठंड में एक संस्था में लाचार बेसहारा सडकों पर रहने वालों के त्रासद जीवन स्तर को सुधारने पर काम कर रहे थे |

"मीरा कहने को तो यह एक प्रोजेक्ट था  कोलेज का | पर काम करते समय  एक वृद्धा को देखा जो मजबूर थी |  रोटी तक नही बना सकती थी और पति जो रिक्क्षा चलाकर दोनों का जीवन चला रहा था मगर एक दुर्घटना में बुरी तरह घायल हो लाचार पडा था |”

"प्रतिदिन होटल से उनके लिये चाय और खाना ले जाना शुरू किया धीरे-धीरे दूसरे छात्र भी जुडते गये और इलाज़ के लिये चंदा इकट्ठा किया  | इलाज़ कराया ताकि वे अपना काम कर सकें |

फ़िर तुम भी आई और आज तुम खुद नही रोक पाती हो खुद को इनके आँसू पोंछने से ..."

"आशु ,यही निस्वार्थ प्रेम तो इन्सानियत से स्नेह का गठबंधन है वरना स्वार्थ के बंधन में तो सब जकडे हुए है|"

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 


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