चोरी
चोरी
“पिताजी, आप जानते हो कि राजू चोर है । उसने दुकान पर चोरी की है फिर भी आपने उसे सजा देने की बजाय क्षमा कर कल से दुकान पर नौकरी पर रख लिया । अपने पिताजी के फैसले से नाराज बेटे ने गुस्से से कहा-
‘बेटा, वो चोर नही है। “
“तो फिर उसकी कमीज में छिपी रोटी ...क्या चोरी नही थी?”
लाला जी की आँखों के सामने भूख की मजबूरी, पेट की आग और जमाने की दुत्कार से डरी- सहमी दो आँखें मौन याचना कर रही थी और उसे सजा देने का मतलब था अँधेरे में धकेलना ..
“नही, ये चोरी उसका नवजीवन है ।“
लालाजी की पारखी आँखें बोल रही थी ।