प्रकृति के लिए सुधर जाओ
प्रकृति के लिए सुधर जाओ
मैं अपने रास्ते चला जा रहा था। बहुत धूप थी, प्यास से गला सूख रहा था। बैग में हाथ डालकर देखा तो पाया कि पानी की बोतल ख़ाली हो चुकी है। थोड़ी दूर चलने के बाद एक घर नज़र आया।
गाँव पूरी तरह विकसित नहीं था, थोड़ी थोड़ी दूर पर ही घर मिल रहे थे। काफी चल चुका था, बुरी तरह थक भी गया था। अब मेरे पास ओर ऑप्शन भी नहीं थे। मैने दरवाज़ा खटखटाया, धीरे से दरवाज़ा खुला ओर मैने पाया कि...
अंदर का माहौल बिल्कुल अलग सा है। सभी लोग दवाइयों में लगे हुए है। बहुत गंदगी है। चारों तरफ प्लास्टिक फैला है। बहुत गंदी बदबू आ रही है। अरे सबने मास्क पहने है। और ऑक्सिजन के लिए भी सिलिंडर लगे है। मैने पानी मांगा तो किसी ने नहीं सुना, मैने बोतल दिखाई कि मुझे पानी पीना है। वो सब पानी की एक घूंट देखकर ऐसे हतप्रभ हो गए जैसे कभी देखा ना हो। तभी एक औरत ने मुझे वॉटर कैप्सुल दिया जिसे खाकर मेरी प्यास बंद हो गई। और उसने बोला इस दरवाज़े के अंदर आने से आप 25 साल आगे आ गए है। मैं घबरा गया भागकर दरवाज़े से बाहर निकल गया।