प्रकाश स्तंभ
प्रकाश स्तंभ
आस्था 10 साल की लड़की जो शुरू से ही लेखन का शौक रखती थी वह कभी किसी कॉपी के पीछे ,कभी किसी किताब के पीछे, कभी किसी डायरी में लिख कर छोड़ दिया करती!धीरे धीरे समय बढ़ने लगा और आस्था कॉलेज में आ गई। आज भी वह कॉलेज के रजिस्टर के पीछे जो महसूस करती उस पर कविता, शायरी, लघु कथा लिख दिया करती थीउसके मन में यह कभी नहीं आया कि मैं अच्छा लिखती हूं या मैं उसको आगे तक पब्लिश करा सकती हूं। उसको जो महसूस होता है वह लिख डालती।धीरे-धीरे समय व्यतीत हुआ अब तो आस्था की शादी भी हो गई शादी के बाद वह घर गृहस्थी में उलझ गई। फिर बच्चों में लग गई।
आस्था के चाचा ससुर कथा संग्रह के नाम से एक किताब छपवा रहे थे। उन्होंने आस्था के पति सुरेश से कहा एक छोटी सी कहानी लिखकर उन्हें दे।आस्था का पति सुरेश को यह पता था आस्था को लिखने का शौक है उसने उसकी पुरानी डायरिया भी देखी थी ।
सुरेश -"आस्था एक लघु कथा लिख दो चाचा जी के कथा संग्रह के लिए।"
आस्था- "नहीं सुरेश मुझे समय नहीं मिल पाता और चाचा जी ने तुम्हें लिखने के लिए कहा है मैं बच्चों में व्यस्त रहती हूं और अब तो मेरी लिखने की आदत खत्म सी हो गई है।"
सुरेश -"आस्था समय निकालने से निकलेगा और तुम अपनी पुरानी डायरियो के पन्ने देखोगे तो तुम्हें लिखना याद आ जाएगा कला कभी भूली नहीं जा सकती।"
उसने आस्था को प्रेरणा देना शुरू किया।इधर बच्चों ने भी मम्मी से कहना शुरू कर दिया कि मम्मी आपकी कहानी हम भी पढेगे।फिर क्या था आस्था ने डायरी व कलम उठा ली और कथा संग्रह के लिए कहानी लिखना शुरू कर दिया। जब कहानी कथा संग्रह में छपी तब आस्था को सम्मान पत्र से नवाजा गया। जब उसकी डायरी के पन्नों को प्रेरणा मिली तो आस्था ओर अब लिखती चली गई। आज उसने लेखन के क्षेत्र में कई उपलब्धियां प्राप्त कर ली है।बड़े-बड़े साहित्यकारों के लेखन में उसके लेखन को भी लेखक के रूप में अस्तित्व मिला।उसे साहित्य की दुनिया में एक नया प्रकाश मिला जिस का प्रकाश स्तंभ सुरेश व उसके अपने बच्चे हैं।
