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Laxmi Dixit

Inspirational

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Laxmi Dixit

Inspirational

प्रिय डायरी उत्तम दान

प्रिय डायरी उत्तम दान

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महाभारत में एक प्रसंग आता है, कौरवों से युद्ध जीतने के बाद युधिष्ठिर ने एक के बाद एक तीन अश्वमेघ यज्ञ किए और बहुत दान किया। इस कारण युधिष्ठिर को गर्व हो गया और उन्होंने भगवान कृष्ण से कहा -' केशव आज संसार में मुझसे बड़ा दानी कोई नहीं है।'


तभी यज्ञ भूमि में एक नेवला आया जिसका आधा शरीर सोने का था। वह नेवला यज्ञ भूमि में बिखरे अन्न के दानों पर लोटने लगा। यह देख कर युधिष्ठिर ने उस नेवले से उसके इस अजी़ब व्यवहार का कारण पूछा।


नेवला बोला तुमसे बड़ा दानी तो वो ब्राह्मण था, जो कुछ वर्ष पूर्व इस कुरुक्षेत्र में रहता था। एक बार इस क्षेत्र में भीषण अकाल पढ़ा था। ब्राह्मण के घर में खाने के लिए केवल एक मुट्ठी सत्तू ही बचा था, जिसका उसने चार भाग किए और अपनी पत्नी, पुत्र और पुत्रवधू में बांट दिया।


 तभी उसके द्वार पर एक भिक्षु आया और भोजन की याचना करने लगा। ब्राह्मण और उसके परिवार ने अपने-अपने भाग का सत्तू उस भिक्षु को दे दिया और भूख के कारण उनकी मृत्यु हो गई। उस ब्राह्मण ने जो सत्तू दान किया था उसके कुछ दाने भूमि पर गिर गए थे। उन दानों पर लोटने से मेरा आधा शरीर सोने का हो गया। तब से मैं संसार के हर दानी के पास जाता हूं और उसके दान किए हुए अन्न के दानों पर लोटता हूं ताकि मेरा बाकी का आधा शरीर भी सोने का हो जाए। लेकिन अभी तक मेरा पूरा शरीर सोने का नहीं हुआ ।

इसलिए मेरी नजर में संसार का सबसे बड़ा दानी वह ब्राह्मण था क्योंकि उसके दान में त्याग था।


दान का महत्व संख्या से नहीं त्याग से होता है। कोरोना काल में जहां खुल कर दान करने वालों की कमी नहीं है। वही बिलासपुर, बिहार की रहने वाली 72 वर्षीय, सुखमती भीख मांग कर गुजारा करती हैं। उन्होंने भीख से जुटाए दस किलो चावल और पुराने कपड़े दान कर दिए ताकि कोई उनकी तरह भूखा ना सोए। सुखमती की दो नातिनें हैं। बड़ी नातिन 16 वर्षीय, 11वीं में पढ़ती है और छोटी नातिन 10 वर्षीय है और छठवीं में पढ़ती है। इन दोनों की जिम्मेदारी सुखमति पर ही है। घर में कोई और कमाने वाला भी नहीं है। सुखमति भूख को जानती है और उनको अपने जैसे जरूरतमंदों की चिंता है।


लिंगियाडीह इलाके की झुग्गी बस्ती में रहने वाली सुखमति के दान की खबर जब स्थानीय पार्षद को मिली तो वे चौक गए। हालांकि, उन्होंने सुखमति की नातिनों की पढ़ाई की जिम्मेदारी उठा ली है।


फंडा यह है कि जब दान में त्याग की भावना समाहित होती है तो वह दान उत्तम हो जाता है।


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