प्रिय डायरी तोहफ़े में 'आज'
प्रिय डायरी तोहफ़े में 'आज'


वैश्विक महामारी कोरोना को फैलने से रोकने के लिए हम सभी लॉकडाउन में हैैं। समाज से कटे हुए हैं। लेकिन सोशल मीडिया, व्हाट्सएप, फेसबुक के जरिए हम अपनों से जुड़े हुए हैं।
सभी सामाजिक उत्सव, शादी-ब्याह, सालगिरह आदि टाल दिए गए हैं । जहिर है , जब मेज़बान पार्टी में आने का न्योता नही देगा तो मेहमान आएगा कैसे और मेहमान आएगा नहीं तो तोहफ़ा देगा कैसे ।
इंटरनेट क्रांति ने इस समस्या को भी सुलझा दिया है। लगता है, हम सब बहुत पहले से किसी ऐसे विकट समय के लिए तैयारी कर रहे थे । तभी तो कोरोना काल में भी सालगिरह आदि उत्सवों की हार्दिक शुभकामनाएं और तोहफ़े में कमी नहीं आई है। हां, ये तोहफ़े भौतिक वस्तु ना होकर वर्चुअल जिफ़ी हैैं।
लेकिन हममें से बहुत से लोग तोहफ़े के आशय को नहीं समझते। केवल भौतिक वस्तु मानते हैं और उसका मूल्यांकन करते हैं । ये लोग तोहफ़े के पीछे छिपी भावनाओं को नहीं समझते ।
तोहफ़ा एक ऐसी भावना है जो देने वाले की शुभेक्षा और पाने वाले की संवेदनशीलता को दर्शाती है। तोहफ़े में छिपी संवेदना को अगर हम समझ लें तो यह स्वयं में एक उत्सव बन जाएगा।
तोहफ़ा कुछ भी हो सकता है, कोई वस्तु, शुभकामना, हमारा ज़ीवन और हमारा 'आज'। जी हां, ज़ीवन भी एक तोहफा है, जो ईश्वर ने हमें दिया है और हम 'आज' जीवित हैं जब वैश्विक महामारी के दौर में ना जाने कितने लोग असमय काल के गाल में समा रहे हैं। यह भी ईश्वर का एक तोहफ़ा ही तो है। हमें रोज़ अपने 'आज' को जीना चाहिए और सुबह उठकर सबसे पहले ईश्वर को इस 'आज' रूपी तोहफ़े को देने के लिए शुक्रिया अदा करना चाहिए।
फंडा यह है कि हमारा 'आज' वह सबसे बड़ा तोहफा है जो जीवन में हमें मिल सकता है। इसलिए, ईश्वर का धन्यवाद कीजिए कि हम आज भी जीवित हैं।