प्रिय डायरी लक्ष्मणरेखा
प्रिय डायरी लक्ष्मणरेखा


जब-जब मनुष्य बेलगाम हो जाता है प्रकृति उसे संयमित करती है। इंसान चाहे कितना भी प्रयास कर ले प्रकृति को अपनी दासी बनाने का, लेकिन प्रकृति उसे सिखा ही देती है कि, मालिक कौन है और किराएदार कौन।
प्रकृति ने पेड़-पौधे, पशु-पक्षी ,कीट- पतंगों सबको अपने-अपने आवास दिए हैं, जिनके अपने-अपने दायरे हैं । लेकिन जब कोई चौखट लांघकर अपनी लक्ष्मण- रेखा को पार कर देता है तो प्रकृति उसे सबक सिखा देती है, अपने तरीके से ।
आज से 62 साल पहले मार्च सन् 1958 में चीन के शासक माओ जेेेडोंग ने एक अभियान चलाया ,जिसका नाम था फोर पेसट् कैंपेन। मच्छर, मक्खी चूहे और गौरैया को मारने का फैसला किया गया। चीन के शासक के अनुसार गौरैया लोगों का अनाज खा जाती थी और किसानों की मेहनत बेकार हो जाती थी।
मच्छर, मक्खी और चूहे तो छिपने में माहिर होते हैं, इसलिए इन्होंने तो अपनी रक्षा कर ली । लेकिन गौरैया तो इंसानों के पास ही अपने घोंसले बनाती है, खुद को बचा नहीं पाई। इंसानों ने उन्हें बेरहमी से ढूंढ- ढूंढ कर मारा। गौरैया किसी भी हालत में बैठने ना पाए इसलिए वे उसे उड़ाते रहते। गौरैया उड़तेे-उड़ते थक जाती और ज़मीन पर गिरकर मर जाती। गौरैया के घोंसलों को ढूंढ-ढूंढ कर उज़ार दिया गया, अंडों को फ़ोड़ दिया गया और उनके बच्चों की निर्मम हत्या कर दी गई ।
फिर क्या हुआ, चीन को गौरैयां की निर्मम हत्या की सजा भुगतनी पड़ी। गौरैया को मारने का अंजाम यह हुआ कि धान की पैदावार बढ़ने की बजाय घटने लगी। महज़ 2 साल में, अप्रैल 1960 आते-आते ऐसा भयंकर अकाल पड़ा, जिसमें ढाई करोड़ लोग मारे गए।असल में गौरैयां केवल अनाज़ नहीं खाती बल्कि उन कीड़ों और टिड्डी को भी खा जाती हैं, जो पैदावार को खत्म करते हैं। गौरैया के खातमें से कीड़ों अौर टिड्डी की संख्या तेजी से बढ़ी और उन्होंने सारा अनाज नष्ट कर दिया।
फ़डां ये है कि जब -जब इंसान अपनी लक्ष्मण-रेखा लाघेंगा, प्रकृति उसे याद दिला देगी कि लगाम किसके हाथ में है।