Sarita Kumar

Classics Inspirational

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Sarita Kumar

Classics Inspirational

परिवार

परिवार

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परिवार के जिस प्रारूप की परिकल्पना की थी कभी आज वो पूर्णतः प्राप्त हो गई है। वर्तमान समय में यह बड़ा ही दुर्लभ कल्पना था जिसका हकीकत बनना नामुमकिन था लेकिन मैं नाउम्मीद नहीं हुई और हमेशा प्रयत्नशील रही। यह काम बहुत कठिन था। हिंसा भड़काना या दिलों में नफ़रत पैदा करना पल भर का खेल है लेकिन प्रेम पैदा करना और वो भी समर्पण के साथ दूसरे दूसरे के दिलों में और दूसरे-तीसरे के लिए ......? यह तो कल्पना भी बेहद उलझा हुआ है फिर इसका हकीकत में रूपांतरण .... ओह .... ये नामुमकिन है क्यों ऐसा काम शुरू करूं जिसके सफलता का एक प्रतिशत भी उम्मीद नहीं है मगर पति का मुझ पर अटूट विश्वास और उम्मीद ... मुझे सोचने पर विवश कर दिया। उन्होंने एक उदाहरण दिया था कि थोड़ा सा "जामन " बड़े बड़े पतीले का दूध जमा कर दही बना सकता है तो आप पंद्रह लोगों को क्यों नहीं एक सूत्र में बांध सकती हैं ? यह बात मुझे जंच गई और मैंने संकल्प लिया इस परिवार में भी एक दूसरे के प्रति स्नेह, प्रेम, अपनापन, निष्ठा और समर्पण का भाव उत्पन्न करना है। बहुत मुश्किल है क्योंकि दोनों परिवार के रहन सहन, सोच विचार, खान पान और मानसिक स्तर में जमीन आसमान का अंतर था।

मैं उस परिवार से आई थी जहां अगर एक सदस्य से कोइ गलती हो जाए तो बाकी लोग उस गलती के लिए अपने को जिम्मेदार बताते थे। मुझे बहुत अच्छे से याद है आचार का मीरतबान जो मुझसे गिर कर टूट गया था और शोर होने पर जब दादी मां ने पूछा था कि किसने तोड़ा ? बड़े भैया ने कहा मैंने, दीदी ने कहा लेकिन आचार मैंने मांगा था, छोटे भैया ने कहा मैंने ठीक से पकड़ा नहीं था, और इस बात की असली गुनहगार मैं गुमसुम सी खड़ी थी ... पापा की पारखी नज़र ताड़ गई और उन्होंने कहा ठीक है तो लाइन से तीनों लोग खड़े हो जाओ दीवार से नाक सटा कर दो घंटे तक और रात का खाना तीनों भाई बहन का बंद रहेगा। यह ऐलान सुनते ही मैं तड़प उठी मैंने कहा नहीं मिरतबान तो मुझसे टूटा है इसलिए सज़ा सिर्फ मुझे मिलेगी। लेकिन दोनों भैया और दीदी तो दीवार से नाक सटा कर खड़े हो चुके थे और आत्मग्लानि से मैं मरी जा रही थी। गेहूं साफ करने में तल्लीन मेरी मां को अब फुर्सत मिली थी। गेहूं को बोरी में रखकर उसमें से जो छोटे-छोटे दाने सरसों, राई और जौ मिलें थें उसे मुझे थमाते हुए आदेश दिया कि छत्त पर डाल आओ कबूतरों के लिए। फिर भाई बहनों से कहा तुम तीनों गुड़िया की तरफदारी क्यों कर रहे हो ? मुझे तो पता है कि उससे टूटा है फिर हमसे झूठ बोलने की गलती क्यों कर रहे हो ? सभी ने एक सूर में कहा कि गुड़िया कमजोर है पतली दुबली है और बहुत देर तक भुखे नहीं रह सकती .....। तब दादाजी बहुत जोर से हंसने लगे थें और आशीर्वाद दिया था कि जिस परिवार में सदस्यों के बीच आपस में इतना प्रेम है कि एक-दूसरे का गुनाह अपने सर लेकर उसकी सज़ा भुगतने को तैयार हैं। इस परिवार में कभी अलगाव की भावना नहीं पनप सकती हमेशा हमेशा यह परिवार खुशहाल रहेगा। पापा मुझे देख कर मुस्कराने लगे मैं झेंप गई मुझे ऐसा लगा कि पापा कहीं यह तो नहीं समझ लिए की मैं अपना गुनाह छुपा रही थी ....?

मां सभी के हलवा बना कर लाई और तीनों भाई बहन को ईनाम दिया था टाफी का डब्बा। 

कुछ दिनों बाद मैंने महसूस किया हमारा परिवार आस पास के लोगों से थोड़ा अलग किस्म का है। हम दिन भर अपने अपने दिनचर्या के हिसाब से काम करते थें लेकिन रात का खाना पूरा परिवार इकट्ठा खाते थे। दादी मां और बाबा एक थाली में खाते थें और बाकी हम पांच भाई बहन और मां पापा अलग-अलग थालियों में लेकिन एक जगह पर ही और उस वक्त सभी लोग अपने अपने कार्यस्थल की घटनाएं बताते थें। आॅफिस, स्कूल और कॉलेज की बातें। मां और दादी मां भी शामिल रहती इस टेबल टॉक में। हम सभी को पूरी आजादी थी अपनी अपनी बात कहने की। 

एक और बात बड़ी अच्छी थी अगर घर में किसी ने कुछ अच्छा काम किया है तो उसका श्रेय भी एक-दूसरे को देने की होड़ लग जाती। पापा को कटहल की सब्जी बहुत पसंद है और मां ने अच्छा बनाया तो पापा बोलते हैं "बहुत अच्छी सब्जी बनाई है मन तृप्त हो गया वाह मन खुश हो गया।" तो मां कहती की अम्मा जी ने कहा था तो उनको धन्यवाद कहना चाहिए और दादी मां कहती की असल में तुम्हारे बाबूजी बहुत खिंचा कटहल लाएं थें और एकदम ताज़ा था तो इसीलिए आज ही बनाना चाहिए था ......।‌ मतलब कटहल की सब्जी अगर बहुत स्वादिष्ट बनी है तो इसका श्रेय भी मां ने दादी मां और बाबा के साथ बांट कर लिया था ..... यही बस यही घटना मुझे बरसों पुरानी घटना को याद दिलाया। हुआ ये कि पौने नौ बज गए थे पन्द्रह मिनट में अंकित जी को आॅफिस जाना है मछली तली जा रही है अभी आधा बाकी है और तरी दूसरे कड़ाई में उबल रहा था जो किसी भी कीमत पर दस मिनट में तैयार नहीं हो सकता था। मगर दस मिनट से भी पहले डाइनिंग टेबल पर लगा दिया गया। खाते समय अंकित जी ने कहा "थैंक्यू पापा जी " उन्होंने कहा पहले चखिए तो फिर बोलिए। अंकित जी ने कहा नहीं स्वाद के लिए नहीं "इस बात के लिए कि अलग बर्तन में थोड़ा सा मेरे लिए जल्दी तैयार करने के लिए क्योंकि जिस तरह बन रहा था मैंने सोचा कि वापस लौटकर आऊंगा तब ही खा पाऊंगा।" झट से उन्होंने कहा कि ये प्योली का आईडिया था, अंकित जी ने प्योली को थैंक्यू कहा तब प्योली ने कहा यह सुझाव तो मम्मी ने दिया था .....।

यह सब सुनकर मैं बहुत निश्चिंत हो गई हूं। यही तो देखना चाहती थी कि अगर किसी एक से गलती हो तो सभी सदस्य उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार हो जाएं और अगर कोई अच्छा काम हुआ हो तो उसका श्रेय भी मिल बांट कर लें। जिस तरह शरण परिवार को समाज में एकता और अखंडता के लिए मशहूर समझा जाता रहा है आपसी प्रेम और सद्भावना का उदहारण दिया जाता रहा। अब कुमार परिवार और आनंद परिवार में भी वही प्रेम, लगाव, समर्पण और सौहार्द्रपूर्ण माहौल कायम हो गया है। मैं रहूं या ना रहूं हमारे परिवार में वो खुशहाली, सुख, सम्पन्नता हमेशा रहेगी क्योंकि यहां लोग अपने लिए नहीं बल्कि दूसरे की इच्छा दूसरे की खुशी पहले चाहते हैं और ऐसे विचार के बड़े लोग नहीं है बल्कि सात साल की छोटी बहन भी है जो अपने भाई को बटर पनीर की सब्जी ज्यादा खिलाने के लिए कहती हैं "मुझे पनीर अच्छा नहीं लग रहा है मॉम इसलिए भैया को दे देती हूं।" भाई KFC से कुछ खाने के लिए लाता है तो कहता है कि "मैं खाकर आ रहा हूं तुम लोग खाओ " प्योली को पता है वो बाहर कभी कुछ नहीं खाता है हमेशा घर पर लाकर ही मिल बांट कर खाता है चाहे छोटा वाला चिकन पॉपकॉर्न हो या बिग बास्केट चिकन पॉपकॉर्न। छोटी के स्कूल में जब किसी बच्चे का बर्थडे मनाया जाता था तो दो टाफी मिलती थी उसे भी लेकर घर आती थी और बट्टे से तोड़कर चारों लोग खाते थें ....जिस घर की सबसे छोटी सदस्य के ऐसे विचार हों उस परिवार के बड़े सदस्यों का क्या कहना। 

मेरे कल्पनाओं का परिवार मेरे सामने है और अब मैं बहुत निश्चिंत हूं। मुझे मेरी तपस्या का फल मिल गया। सुकून की जिंदगी और चैन की मौत यही तो चाहती थी मैं।


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