Sarita Kumar

Romance Inspirational

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Sarita Kumar

Romance Inspirational

"वो बीस दिन क्वारेंटाइन के "

"वो बीस दिन क्वारेंटाइन के "

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पहली दफा सुना था "क्वारंटाइन" शब्द इसका अर्थ बहुत भयानक नहीं था मगर भयावह प्रतीत होता था क्योंकि जिसे भी क्वारंटाइन करते थे उसके हाथ पर मोहर लगा दी जाती थी। उसके दरवाज़े पर पर्ची चिपका दी जाती थी और पहरा लगा दिया जाता था। दो सरकारी मुलाजिम तैनात कर दिया जाता था जो उसे बाहर निकलने नहीं देता था और ना ही किसी बाहर वाले को अंदर जाने दिया जाता था। मानो जैसे वह खूंखार मुजरिम हो जिस पर कड़ी निगरानी रखी जा रही हो। यूं तो यह दुखद स्थिति है किसी के लिए भी मगर हमारे लिए तो यह क्वारंनटाइन बेहद सुखद और खुशनुमा साबित हुआ। 20 दिनों के लिए हम दोनों क्वारंटाइन हुए थे। मेरे जीवन का वो बीस दिन "गोल्डेन टाइम " रहा। दीन दुनिया से बेखबर हम सिर्फ एक-दूसरे में मगन रहें। पहरा लगा था तो तीसरे-चौथे के लिए यह तो सबसे अच्छी बात हुई थी। जीवन भर का संजोया अपनी तमाम भावनाओं और संवेदनाओं को प्रकट होने का फलने-फूलने का सुनहरा अवसर मिला था। निर्बाध रूप से हम अपने दिल में दबाएं हुए उल्फत को हवा देने लगें और उन्मुक्त गगन पर लम्बी लम्बी उड़ान भरते रहें। उन तमाम अनछुए पहलुओं पर नज़र डाली और हर एक विषयों को बारिकी से जाना समझा। सृजन किया हम दोनों ने मिलकर एक अद्वितीय अद्भुत काव्य का।

इजाद किया एक ऐसे यंत्र का जो मीलों की दूरियां और सदियों के फासले मिटाने में सक्षम हो। एक कीर्ति स्थापित किया सौ जन्मों को जिया बीस दिनों में। वो तमाम इंद्रधनुषी रंगों से सजाया हमने एक-दूसरे का जीव। बाल्य अवस्था से लेकर वृद्धावस्था तक का सुहाना सफ़र तय किया । पल पल जिया और हर पल में सौ सौ साल जिया । बाकी कुछ भी न रहा । हर शिकवा शिकायत, प्यार मनुहार, रूठना मनाना इल्ज़ाम और दोषारोपण भी लेकिन यह दूसरे पर नहीं बल्कि दोनों अपने को ही दोषी मानते रहें और यही बस यही एकमात्र वजह बनी हमारे अटूट संबंध , एक-दूसरे के प्रति भरोसा और समर्पण का। क्वारंनटाइन जो एक तरह की सज़ा होती है मगर हमारे रिश्ते का रिनीवल था। अभी फुर्सत में सोचती हूं तो लगता है उन बीस दिनों के अलावा भी कोई जीवन था .......? शायद नहीं बस चंद स्मृतियां हैं उन बीस दिनों से पहले की मगर जीवन तो बस वहीं बीस दिनों का था जब हम सिर्फ एक-दूसरे के लिए समर्पित रहें अपनी सम्पूर्ण भावनाओं के साथ। हमारी दुनिया अचानक से कितनी छोटी हो गई थी सीमित दायरे में रहकर विस्तृत जीवन जिया था हमने। नितांत निरीह ऐसा की हम सांसों का स्वर और उतार चढ़ाव गिन सकते थे। यह भी ईश्वर की मर्जी रही होगी हमें हमारे लिए इससे पहले कभी वक्त ही नहीं मिला था। सुबह की चाय से लेकर तकिए तक का रोमांचक सफ़र ...... । सूरज और चांद ने भी दखल नहीं दिया हवाओं ने भी खलल नहीं डाली हमारे मिलन में .... । बादलों और बिजलियों ने भी खूब साथ निभाया असमय गरज कर चमक कर और बरस कर ..... एक और शै रह गया था बाकी वो भी जी लिया हमने ...... फिर से तमन्ना जागी है एक बार फिर हम दोनों क्वारंनटाइन हो जाएं इस बार तो बस दो दिन ही काफी होगा । हम फिर से बेखबर होकर बिताएंगे सुकून के दो चार पल ...... । मैं तुम क्वारंटाइन स्टीकर के साथ सबसे दूर बहुत दूर बहुत दूर बादलों के पार अनंत आकाश में सिर्फ हम मैं और तुम ।


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