Sarita Kumar

Children

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Sarita Kumar

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आजादी

आजादी

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आजादी का सीधा सा अर्थ हुआ "ज्यादती से निजात " मतलब यह हुआ कि जबरदस्ती किसी के इच्छा के विरुद्ध उसे कैद कर के रखना। कैद में रखना एक "सज़ा" है =। जो मुजरिमों और गुनाहगारों को दी जाती है। अब यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया कि हर किसी की "आजादी " उसका अधिकार है। हम यूं ही किसी को कैद में नहीं रख सकते हैं। 

एक अबोध बच्चा भी बहुत देर तक हमारे गोद में नहीं रहना चाहता है उसे भी अपने मन की आजादी चाहिए होती है। कुछ देर बाद कसमसाने लगता है और हमारी पकड़ से छुटकारा पाने कोशिश करता है और निकलने में कामयाब हो जाता है तब उसके चेहरे पर सुकून के जो भाव परिलक्षित होते हैं वही "आजादी " है। बंदिशें हटा देना आजादी हुई। 

इस आजादी को लेकर मेरे कुछ व्यक्तिगत विचार हैं।  कुछ अनुभव हैं जिसे औरों के साथ साझा करना चाहती हूं। मानव मन किसी के प्रेम में, ममता में और आसक्ति में आकर मूढ बन जाता है। चाहें वो व्यक्ति हो पेड़ पौधे हों या कोई निर्जीव वस्तु।  अत्यधिक लगाव किसी से भी हानिकारक सिद्ध हुआ है।  खूबसूरत फूल के पेड़ पौधों पर मुग्ध होकर उसे अपने घर लाते हैं उसे गमले में लगातार अपने पास रखना चाहते हैं।  कुछ दिनों तक तो चलता है लेकिन उसके बाद वो मुरझाने लगता है क्योंकि पेड़ पौधों को चाहिए हवा , रौशनी और खुली आजादी।  उस गमले को अगर कमरे से निकाल कर थोड़ा बाहर कर देते हैं तो उसकी रंगत बदल जाती है।  फिर से लहलहा कर खिल उठता है।  मानवीय रिश्ते भी ऐसे ही होते हैं।  हम अगाध प्रेम वश या लगाव वश किसी को उसके इच्छा के विरुद्ध अपने पास कैद करके रखना चाहते हैं तो उसका मानसिक विकास, शारीरिक विकास और बौद्धिक विकास अवरूद्ध हो जाएगा।  अपनी संतान के समुचित विकास और उन्नति के लिए थोड़ी आजादी देनी पड़ती है खुद से थोड़ी दूरी बनानी पड़ती है। बच्चों को एक अपना स्पेस मिलना ही चाहिए। 

मेरे बच्चे जब छोटे थे उन्हें कोचिंग में पढ़ने के लिए बहुत दूर भेजना पड़ता था। आने जाने में किसी कारण वश देरी हो जाती तो मैं बेचैन हो जाती थी। बच्चों को मोबाइल फोन दे रखा था ताकि कोचिंग पहुंच कर फोन कर दें।  किसी दिन फोन नहीं आए तो उनके टीचर को फोन कर देती थी।  सिर्फ अपनी बेटी के लिए ही नहीं बेटा के साथ भी यही करती थी।  बच्चों के दोस्त उनका मज़ाक भी उड़ाने लगते थें।  बच्चों को कभी कभी शर्मिंदगी उठानी पड़ती थी मेरी इस हरक़त से।  धीरे धीरे मैंने महसूस किया बार बार फोन करने पर और यह पूछने पर की "कहां तक पहुंचें ?" और *कितना टाइम लगेगा " ऐसे सवालों से बच्चे परेशान होने लगे और कभी कभी मैसेज कर देते या फिर मेरा काॅल इग्नोर कर देते। फिर मैंने अपने मन को समझाया और बच्चों को थोड़ी छूट दी सांस लेने के लिए .... थोड़े बड़े हुए तब आजाद कर दिया उन्मुक्त गगन में उड़ान भरने के लिए।  आज परिणाम बहुत अच्छा निकला। बच्चें अपने अपने मंजिल की ओर अग्रसर है और तय कर लिया है।  बच्चों को बचपन में अच्छी शिक्षा , उच्च संस्कार और दुनियादारी समझाने की जरूरत पड़ती है उसके बाद सबसे अहम होता है भरोसा अटूट भरोसा।  आप अपना कर्तव्य पूरी ईमानदारी से कीजिए और अपनी संतान पर अटूट भरोसा रखिए।  यकीन मानिए अगर गलती से भी गलत संगत में पड़ जाता है तो उस वक्त उसे आप नहीं बचा सकते हैं आपका दिया हुआ संस्कार और वह "अटूट विश्वास " बचा लेगा। इस बात का बहुत अच्छा अनुभव है मेरा। अगर मेरी दी हुई शिक्षा दीक्षा और परवरिश से ज्यादा प्रभावशाली और आकर्षक अनैतिक कर्म दिखाई देने लगे उस भटकाव के खतरनाक मोड़ पर भी आपका बच्चों पर किया गया विश्वास बचा लेगा। 

सिर्फ बच्चों की ही बात नहीं है हर मानवीय संबंधों में थोड़ी सी आजादी और ढेर सारा प्यार और सबसे जरूरी है अटूट विश्वास। हजारों मील की दूरी आपको आपके अपनों से दूर नहीं कर सकती है।  दूर चाहें मीलों की रहें या सदियों की कोई फर्क नहीं पड़ेगा। दिलों में दूरियां नहीं आएंगी। 

पहली बात आप अपनी संपूर्ण भावनाओं से समर्पित रहिए।  अटूट विश्वास रखिए और अपने कर्तव्यों का निर्वाह ईमानदारी से कीजिए।  छोड़ दीजिए अपने अपनों को आजाद कर दीजिए। चौबीसों घंटे की पहरेदारी और हर कदम पर आपकी दखल अंदाजी आपका अगाध प्रेम नहीं कैद हैं क़ैद। 


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