Anita Sharma

Classics Inspirational

4.5  

Anita Sharma

Classics Inspirational

परिवार से बढ़कर कुछ नहीं।

परिवार से बढ़कर कुछ नहीं।

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"मम्मी आप फिर से ताऊ जी के घर क्यों गई थी? जब वो ठीक थे तो उन्होंने आपका और पापा का कितना अपमान किया था।अपना हिस्सा भी बेईमानी करके हथिया लिया।अब जब तबियत खराब हो गई है तो सेवा के लिये हमीं दिख रहे है।"

पंद्रह साल की रूही चिढ़ते हुये अपनी माँ सुमन से बोली। तो सुमन उसके गुस्से को देख प्यार से उसके बाल सहलाते हुये बोली.....

"रूही चलो आज तुम्हे तुम्हारे नाना जी की वो बात बताती हूँ जो उन्होंने मुझे सिखाई थी।"

रूही बहुत छोटी थी जब जब सुमन के पिता का स्वर्गवास हो गया था। पर वो अपनी बेटी को उनकी बातें सुनाती रहती थी तो आज भी रूही खुश होकर अपने नानाजी की बातें सुनने के लिये तैयार हो गई। तो सुमन ने बताना शुरू किया...... 


"बिटिया तुम तो जानती हो कि तुम्हारे नाना हम दोनों भाई बहन और चाचा की तीनों बेटियों में कोई फर्क नहीं करते थे। पापा जहाँ टीचर थे वहीं चाचा की माली हालात कुछ ज्यादा ठीक नहीं रहती थी। दादा जी के कुछ खेत भी थे जो पापा ने उन्हे ही दे रखे थे। पर उन खेतों में ज्यादा अच्छी फसल नहीं होती थी। इसलिये मेरे पापा ने ही उनकी दोनों बेटियों की बहुत अच्छे घरों में शादी की थी वो भी उन्हे अपना समझ बिना किसी भेदभाव के। 

अब चाचा और उनकी छोटी बेटी ही घर में बचे थे । इधर पापा अब मेरी शादी और भाई की नौकरी के लिये भी चिंतित थे। तो चाचा जी को मोहल्ले पड़ोस के लोगों ने बहकाना शुरू कर दिया था कि तुम्हारी छोटी बेटी की शादी के बाद बड़े भाई तुम्हारी सारी खेती और ये घर अपने बेटे के नाम कर देंगें। 

बस उसी बहकावे में आकर उन्होंने मेरे पापा से एक दूरी बना ली और बिना उन्हे बताये अपनी बेटी का रिश्ता पक्का कर लिया।सगाई में भी उन्होंने मेरे पापा को नहीं बुलाया। वो बहुत दुखी भी थे और खुश भी की चलो उनका छोटा भाई अपने दम पर कुछ तो कर रहा है। छोटे भाई से इतना अपमान सहकर बहुत रोये थे वो। उस समय मुझे भी चाचा जी पर बहुत गुस्सा आ रहा था। 

शादी की डेट फिक्स हो गई,पर चाचा जी पैंसों का इंतजाम नहीं कर पाये, जिन्होंने उन्हे बहला कर पापा के खिलाफ भड़काया था वो भी मदद के नाम पर पीछे हट गये। अंत में चाचा जी मेरे पापा के पास ही आये। और पापा ने उन्हे माफ करके पूरी शादी का जिम्मा अपने सर ले लिया। तब मैने भी अपने पापा से यही सवाल किया था कि..... 

"पापा चाचा जी ने आपका इतना अपमान किया और आपने उन्हे एक बार में ही माफ क्यों कर दिया? "

तब पापा ने समझाया ...

."बेटा परिवार से बढ़कर कुछ नहीं होता। परिवार में अगर कोई गलती करके माफी मांगता है तो हमें भी सब कुछ भूलकर उन्हे माफ कर देना चाहिये। आज मैने भी वही किया आखिर छोटे की बेटी भी तो मेरी बेटी जैसी है। और सोचो अगर शादी में कोई कमी रह गई और कोई ऊंच नीच हो गई तो क्या हम चैन से रह पायेंगें। आखिर हम एक परिवार है तो छोटे की इज्जत हमारी भी इज्जत है। 

यही परिवार होता है, जिसमें हम कितना भी लड़ झगड़ ले खुशी भले ही अकेले मना ले पर मुसीबत में हमेशा साथ और एक जुट होना चाहिये। बिटिया आज में तुम्हे भी यही सीख दूंगा कि अपनी ससुराल में तुम अपने परिवार के साथ हर मुसीबत में खड़ी रहना।"

पापा ने चाचा की बेटी की शादी बहुत धूम-धाम से की बदले में चाचा जी को मैने हमेशा अपने किये व्यवहार के लिये शर्मिंदा देखा। उससे मुझे एक और सीख मिली की दूसरों की बातों में आकर कभी अपने परिवार के लोगों का अपमान नहीं करना चाहिये।"

बोलते बोलते सुमन एक लंबी साँस लेकर फिर से रूही को समझाते हुये बोली..... 

ये सीख मेरे पापा ने मुझे दी, और मैने उस पर अमल भी किया यहाँ मैने अपनी तरफ से परिवार में कोई गलती नहीं की इसीलिये आज तेरे ताऊ जी हमारे साथ गलत करने के लिये शर्मिंदा है।आज उनके व्यवहार की वजह से उनकी खुदके बहू बेटे उन्हे अकेला छोड़कर चले गये। तो ले देकर हमीं बचे है उनकी देखभाल करने के लिये। आखिर वो है तो हमारा परिवार ही और मुसीबत में परिवार ही काम आता है। 

रूही आज मैं भी तुम्हे यही सीख दूँगी कि हमेशा अपने परिवार का मुसीबत में साथ देना।भले ही वो तेरी इस अच्छाई को भूल जाये। पर ऊपर वाला सब देखता है। हमें हमारे अच्छे बुरे कर्मों का फल यही मिलता है।"

" जी माता श्री,,,,ये सीख भी आपको आपके पापा से मिली है। और आपने उसे अपनी जिन्दगी में हमेशा अपनाया और मुझे भी आप यही सीख देकर जिन्दगी में आगे बढ़ना सिखा रहीं है। मैं समझ गई मेरी माँ अब मैं आपको कभी नहीं रोकूंगी ताऊ जी की सेवा करने से।"

रूही अपनी माँ से लिपटते हुये बोली तो सुमन ने भी उसे अपने आँचल की छाँव में लेकर चूम लिया।


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