Vijay Kumar उपनाम "साखी"

Drama

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Vijay Kumar उपनाम "साखी"

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परिवार की कीमत

परिवार की कीमत

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सूरजपुर में कार्तिक नामक का एक नवयुवक अपने माता-पिता, भाई-बहिनो के साथ खुशीपूर्वक रहता था। कार्तिक एक सरल हृदय का युवक था। उसे रत्तीभर भी दुनियादारी का ज्ञान नहीं था। राज नाम का उसका एक अच्छा मित्र भी था। समय-समय पर वह कार्तिक का दुनियादारी में मार्गदर्शन करता रहता था। कुछ समय बाद कार्तिक का मोहनी नाम की एक युवती से विवाह हो गया। मोहनी, कार्तिक की अपेक्षा दुनियादारी मे बेहद होशियार और आजाद रहने वाली नये ख्यालों की युवती थी। कुछ समय तो उनका अच्छा निकला। पर कार्तिक, मोहनी और परिवार के बीच सामंजस्य नहीं बिठा सका। आये दिन परिवार और मोहनी के बीच लड़ाइयां होती रहती है।

मोहनी, कार्तिक पर अलग होने के लिये रोज-रोज ही दबाव डालती। रोजाना की लड़ाई से कार्तिक बहुत परेशान हो गया। आख़िर उसने परिवार से अलग होने का निर्णय ले ही लिया। कार्तिक ने किराये के लिये कमरा भी देख लिया। अगले तीन दिन बाद उसे परिवार से अलग होकर अपना सामान किराये के मकान में रखना था। पर उसने सोचा क्यों न एकबार अपने दोस्त राज से मार्गदर्शन लिया जाये। वह सपत्नीक राज के घर पहुंचा, राज ने उनका यथोचित आदर-सत्कार किया। अब कार्तिक और मोहनी ने परिवार से अलग होने की बात रखी।

राज ने कहा, ठीक है तुम्हारी समस्या का समाधान कुछ देर बाद करते है। उससे पहले हम बाहर घूमने चलते है। वो एक पहाड़ की तरफ घूमने जाते है। राज के पत्थर को तरफ इशारा करता है और कहता है बताओ मित्र कौन शक्तिशाली है ये पत्थर या पहाड़।

कार्तिक कहता है, ये तो सरल सी बात है पहाड़, पत्थर की तुलना में ज्यादा ताकतवर है। पत्थर का जन्म पहाड़ से ही हुआ। पहाड़ की तुलना में ये बड़ा कमज़ोर है। थोड़ी देर बाद हो एक उद्यान गये। एक गुलाब के फूल को तोड़ते हुए राज बोला, बताइये भाभीजी इस फूल को मैंने तोड़ लिया तो यह कितनी देर खिला हुआ रहेगा। मोहनी बोली कुछ घन्टो तक। और गुलाब के पौधे के लगा हो तो कितनी देर खिला हुआ रहेगा।

मोहनी बोली कुछ दिन तक। इसके बाद वो उद्यान में एक नीम के पेड़ के नीचे बैठकर नाश्ता करने लगे। राज ने पेड़ के नीचे पड़ी हुई नीम की लकड़ी की तरफ इशारा करते हुए कार्तिक से पूंछा, मित्र ये लकड़ी क्यों सुख गई। कार्तिक बोला क्योकि ये अपने पेड़ से अलग हो गई है। राज बोलता है। में समझता हूं, अब आपको अपने प्रश्न का या समस्या का हल मिल गया होगा। मोहनी और कार्तिक एक साथ बोलते है, वो कैसे ?

राज बोलता है, एक पत्थर तब तक मजबूत है, जब तक वो पहाड़ से जुड़ा है। इसी प्रकार एक व्यक्ति तब तक ही ताकतवर है, जब तक वो परिवार से जुड़ा हुआ है। एक फूल तब तक अधिक खिला हुआ होगा, जब तक वो पौधे से जुड़ा होगा। ऐसे ही आदमी तब तक ही अधिक खुश होगा, जब तक वो परिवार से जुड़ा होगा।

जैसे एक लकड़ी पेड़ से अलग होकर सूख जाती है। वैसे ही आदमी परिवार से अलग होकर दुखी और फटेहाल हो जाता है। एक व्यक्ति जिंदगी में तब तक ही उन्नति को प्राप्त करता है, जब तक वो परिवार से जुड़ा होता है।

कार्तिक और मोहनी के हृदय में राज की बाते बड़ी गहराई से उतरती जा रही थी।

दोनों ही अब परिवार का महत्व समझ गये थे।

अब उन्होंने परिवार से अलग होने का निर्णय त्याग दिया था। मोहनी ने भी धीरे-धीरे परिवार से अब सामंजस्य स्थापित कर लिया था। अब कार्तिक और मोहनी परिवार के साथ प्रसन्नतापूर्वक अपना जीवन व्यापन करने लगे।


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