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Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

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Vibha Rani Shrivastava

Tragedy

परिहार्य

परिहार्य

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सम्पादक :-"अ र् र् रे! अरे, देखिए! वे साहित्यकार महोदय राज्यपाल के अंगरक्षकों के द्वारा कितनी बेदर्दी से रपेटे गये! ओह्ह! घसीटाते हुए भी राज्यपाल के संग अपनी तस्वीर खिंचवा लेने की तृष्णा की डोर नहीं काट पाए।"

पत्रकार :- आप दर्शक दीर्घा में उपस्थित थे और मंच पर आपकी पुस्तक का राज्यपाल के हाथों लोकार्पण हो रहा था। द्वी सम्पादक, तो दोनों की उपस्थिति होनी चाहिए थी।आपका मंच पर नहीं जाने की कोई खास वजह?"

सम्पादक :- "क्या इस लोकार्पण से पाठक की संख्या में बढ़ोतरी हो जायेगी या अधिक रॉयल्टी मिलने लगेगी!"

पत्रकार :- "किसी एक विशेष लिंग के लेखन पर पुस्तक निकालने के पीछे की मंशा क्या हो सकती है?"

सम्पादक :- आप इस पुस्तक के मेरे द्वारा लिखी गयी सम्पादकीय में पायेंगे, धर्म-जाति-लिंग के आधार पर बाँटकर लेखन से मेरी निजी सहमति नहीं है।"

पत्रकार :- धर्म-जाति-लिंग के आधार पर बाँटकर लेखन से तो समय-श्रम लगाकर कागज की बर्बादी है।"

सम्पादक :- "सृजक के विलीन होने का गवाह बनना त्रासदी है। इसलिए तो लेखनी की यात्रा आरम्भ ही होनी चाहिए जीवन के पक्ष से, मृत्यु के विरोध में...!"


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