Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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परिचय - श्रीनिवास राव दस्त्राला

परिचय - श्रीनिवास राव दस्त्राला

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कुछ व्यक्ति इतने सरल होते हैं कि उन्हें देख कर हम अचरज में पड़ जाते हैं कि कोई इतना भी सरल हो सकता है। जी हाँ! श्रीनिवास राव दस्त्राला ऐसे ही सरल व्यक्ति हैं। 

प्रातः भ्रमण में मैंने, आप (श्रीनिवास राव दस्त्राला, सर) को ड्रेनेज होल के सामने पेड़ों के पत्ते जमा हो जाने के कारण, मार्ग में रुक गया बारिश के पानी की निकासी के लिए अपने पैरों से उन पत्तों को हटाते हुए देखा था। ऐसा करते हुए आपको मैंने पूर्व में भी देखा था। मैंने आपके पास रुककर कहा "सर - आप बड़ा भला काम करते हैं।"

आपका उत्तर था - "अभी इन कार्यों के करने वाले कर्मियों को आने में समय है। मैं भ्रमण के तीन चक्कर लेता हूँ। उसके साथ ही ऐसे कुछ कार्य करते हुए चला चलता हूँ।" 

अब वे मेरे साथ चलने लगे थे। हम दोनों के हाथ में छतरी थी। पानी बरसने की गति अधिक थी। 

मैंने चलते हुए फिर आपसे पूछा - "आप ही हैं, जिन्हें मैंने क्यारियों के पौधों की सूखी पत्तियाँ छाँट कर अलग करते हुए देखा है?"

वास्तव में तेज हवा और बरसात के कारण मफलर से आपके कान सिर एवं मुख का अधिकांश हिस्सा ढँका हुआ था। 

आपने कहा - "यह काम कई बार कहने के बाद ही, यहाँ कर्मियों द्वारा किया जाता है। इसलिए शिकायत करने के स्थान पर मैं ही कुछ समय देकर यह काम कर देता हूँ।" 

मैंने प्रशंसा करते हुए कहा - "आप इस पूरी सोसाइटी को अपने घर की तरह देखते हैं। आप अत्यंत ही अनुकरणीय काम करते हैं।"

आपने कहा - "यह अपने लिए ही तो करता हूँ। अपनी सोसाइटी को सुंदर एवं स्वास्थ्यवर्धक देखना मुझे भी तो अच्छा लगता है।" 

आपके उत्तर से मैं सोचने लगा था, वास्तव में आप सही कह रहे हैं ऐसे काम हम अपने लिए ही तो करते/करवाते हैं। फिर भी कितने व्यक्ति होंगें जो इस दृष्टिकोण से, अपने आसपास को देखते हैं। 

अब आपने मुझसे प्रश्न किया था - "आप क्या जॉब करते हैं?"

मैंने अपने बारे में आपको बताया था। रास्ते में चलते हुए, आप जहाँ भी ड्रेनेज होल ब्लॉक्ड देख रहे थे, वहाँ वहाँ रुककर पत्ते एवं कचरा हटा कर पानी को निकासी का मार्ग देते चल रहे थे। 

मैं सोच रहा था मैं आपके इस कार्य को अच्छा बता रहा था, फिर भी इस कार्य में आपका सहयोग/साथ नहीं दे रहा था। अब आपने मुझे बताया - मैं बीएचइएल में जॉब करता हूँ। 

मैं अभी तक आपको सेवानिवृत्त व्यक्ति मान रहा था। मुझे अब आपके ऐसे कार्य अधिक प्रशंसनीय लग रहे थे। मैं सोचने लगा था, आपको भ्रमण के बाद घर जाकर आराम नहीं करना है अपितु अपने जॉब पर भी जाना है। 

मैंने बताया - "मैं आपके बारे में लिखना चाहता हूँ। क्या आप हिंदी पढ़ लेते हैं? वास्तव में आप तेलुगु भाषी व्यक्ति हैं।" आपने हँसकर उत्तर दिया - "आपसे सीख लूँगा। अभी तो बोल ही पाता हूँ।"

मुझे आपकी सरलता ने फिर प्रभावित किया था। मैंने फिर पूछा - "आप टेबल टेनिस खेलते हैं?"  

आपका फिर सरल उत्तर मुझे मिला था - "आप सिखाएंगे तो खेलने लगूँगा।" 

मैं अब हँस पड़ा था। हँसने में आपने भी मेरा साथ दिया था। 

ऐसी वार्तालाप में हमने लगभग तीन चक्कर साथ लिए थे। मार्ग में कहीं कहीं, हवा तेज चल रही थी, जहाँ छतरी हाथ से छूट जाने को होती थी। तब मैं अपनी छतरी बंद कर ले रहा था। ऐसे में मैंने आपकी सरलता का एक और उदाहरण पाया था। आप अपनी छतरी ऐसी कर लेते थे कि वह मुझे भी पानी से बचा पाए। ऐसे साथ चलते हुए हमने एक दूसरे के नाम एवं परिवार के बारे में जानकारी का आदान प्रदान किया था। 

आपने बताया आपके जॉब को अभी एक वर्ष और शेष है। विशाखापट्नम आपका मूल गृह स्थान है। आपके एक बेटी एवं एक बेटे हैं। बेटे ने अपनी पढ़ाई कनाडा से की है। अभी वह व्यवसाय कर रहा है। साथ ही अच्छा जॉब भी करना चाहता है। बेटी ने आईआईएम बैंगलोर से पीएचडी की है वह भी जॉब तलाश कर रही है। मेरे पूछने पर आपने बताया कि एजुकेशन के जॉब में उसकी रूचि नहीं है। 

जब आपके तीन चक्कर पूरे हुए तो आप अपने (जी) ब्लॉक के सामने जाने के लिए रुक गए थे। मैंने पुनः प्रशंसा करते हुए कहा - आपके विचार एवं कर्म बड़े ही प्रशंसनीय हैं। 

आपका उत्तर पुनः सरल था। आपने कहा - हमारे भगवान, हमसे यही तो चाहते हैं। 

तब हमने अपने मोबाइल नंबर आपस में शेयर किए थे। फिर आपने विदा ली थी। तदुपरांत मैं सोचते हुए आगे के चक्कर लगाने लगा था कि मैं आपसे फिर बात करूँगा। 

यह कल की हमारी भेंट एवं चर्चा थी। कल ही हम फेसबुक फ्रेंड हुए थे। आपके परिचय के इस आलेख से पढ़ने वाले आपके बारे में अधिक जानें, इस आशय से जानकारी हेतु मैंने फेसबुक के आपके अबाउट सेक्शन को पढ़ा है। यहाँ जो विवरण पब्लिक हैं, उनमें से कुछ मैं इस आलेख में लिख रहा हूँ। 

आपका जन्म 24 मई 1964 को हुआ था। आपका गृह स्थान नरसीपत्तनम है। आपने वर्ष 1984 में ज.ने. टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, काकीनाडा से अपना ग्रेजुएशन, बी.टेक. (मैकेनिकल इंजीनियरिंग) में पूर्ण किया था। तत्पश्चात उसी वर्ष बीएचईएल में जॉब के लिए हैदराबाद आ गए थे। 

मैं आपके बारे अधिक जानूँगा-समझूंगा और अधिक लिखूँगा ताकि पढ़ने वालों में आपसे प्रेरणा के माध्यम से थोड़ी कुछ सरलता, सादगी आ सके। 

 



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