Rajesh Chandrani Madanlal Jain

Inspirational

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Rajesh Chandrani Madanlal Jain

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परिचय - शेफाली जायसवाल

परिचय - शेफाली जायसवाल

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परिचय - शेफाली जायसवाल शेफाली जी ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन बी.ए. (विषय इतिहास, भूगोल एवं राजनीति शास्त्र) करने के बाद लखनऊ से टूरिज्म में एम.बी.ए. किया था। तभी सन 2010 में शेफाली जी के पापा-मम्मी ने उनका विवाह (Arranged marriage) विवेक जी के साथ संपन्न करवाया था। 

इस बात से शेफाली जी का स्वभाव परिलक्षित था कि वे लखनऊ जैसे शहर से एम.बी.ए. करने के बाद आधुनिका लड़की होकर भी इतनी सरल थीं कि जीवन भर के साथ के प्रश्न पर भी उनका अपने बड़ो पर विश्वास था। वे इतनी आत्मविश्वासी भी थीं कि उनके लिए चुने वर को, अपने प्रेम से अपना बना लेना उन्हें कोई चुनौती नहीं लगा था। 

स्पष्ट है कि आज के महत्वपूर्ण संवर्ग (Tourism - with specialism in Hospitality & event management) में मैनेजमेंट पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाली शेफाली जी, जॉब अपने विवाह के बाद ही कर पाईं थीं। 

23 सितंबर 1988 को जन्मी, शेफाली जी अपने भाई बहनों में सबसे बड़ी हैं। उनकी छोटी बहन और एक भाई, दोनों इस वर्ष एम.एस. होकर डॉक्टर बन गए हैं। एक छोटा भाई ट्रिपल आई टी प्रयागराज से बी. टेक. पूर्ण करने के पश्चात, आगे की शिक्षा इंग्लैंड में ले रहा है।  

उन्होंने नोएडा में एक वर्ष जॉब किया था। तब उनके नाजुक कांधों पर अपना गृह निर्माण अर्थात आशियाना सजाने (Homemaker) की जिम्मेदारियाँ आ गईं थीं। 

सामान्य दांपत्य में जैसा होता है, तीन वर्षों में (2013 में) उनकी गोदी में “वाणी”, उनकी नन्हीं बेटी आ गई थी। नारी सहज वात्सल्य का रंग तब उनके जीवन में हर दिन को रंगने लगा था। दो वर्ष बाद 2015 में पुनः उनकी गोदी में नव प्रसून, उनका बेटा “शर्व” आया था। उनके दिन बच्चों एवं गृहस्थी के दायित्वों की व्यस्तता में पंख लगा कर बीत रहे थे। शेफाली भूल चुकीं थीं कि कभी वे भी जॉब करतीं थीं। कह सकते हैं 2011 से 2016 के समय में वे शुद्ध गृहिणी (Homemaker) हो गईं थीं। 

यह समय था, जब विवेक मुंबई में जॉब कर रहे थे। शेफाली अपने पति-बच्चे एवं गृहस्थी में तन्मयता से समर्पित थीं। ऐसे में एक दिन एक परिचित से बातों में प्रसंगवश, शेफाली जी ने उन्हें बताया कि बनारस में उनके दादा, नंबर एक के दाल व्यवसायी थे। परिचित ने उनका नाम पूछा था। शेफाली को सुखद आश्चर्य हुआ था, जब परिचित ने बताया कि (दादा) श्री अनंतलाल जायसवाल जी (दाल वाले ) की ख्याति वे जानते हैं। 

बाद में किसी दिन शेफाली ने विवेक से कहा - मेरे दादा एक व्यवसायी थे। वे बनारस में रहते थे लेकिन उनका नाम मुंबई में कुछ व्यक्तियों के लिए भी अपरिचित नहीं है। क्या कभी, ऐसी ख्याति किसी होममेकर गृहिणी को मिल पाती है? 

विवेक सिर्फ मुस्कुराए थे। वे समझ गए थे, जीवन संगिनी शेफाली के मन में क्या चल रहा है। 

तब 2016 में विवेक का जॉब हैदराबाद में हो जाने से, शेफाली हैदराबाद आईं थीं। यहाँ आकर उनमें पुनः जॉब करने की इच्छा जागृत हुई थी। उन्होंने टीचिंग जॉब के लिए आवेदन किया और उन्हें शेमरॉक स्कूल, कोकापेठ में कला और शिल्प (Art and craft) की टीचर का जॉब मिल गया था। 

उस समय शेफाली जहाँ रह रहीं थी वहाँ रोड पर आते जाते हुए शेफाली को, उसकी सामने की सोसाइटी बाहर से देखने में बहुत अच्छी लगती थी। जिज्ञासावश एक दिन उस सोसाइटी के गेट पर जाकर, उन्होंने पूछताछ की थी। फिर प्रसाद अंकल की हेल्प से, उस सोसाइटी में विवेक जी ने अपना एक घर क्रय कर लिया था। 

शेफाली बताती हैं कि ‘यहाँ ना केवल सोसाइटी अपनी बनावट से सुंदर है, अपितु यहाँ के निवासी भी बहुत अच्छे हैं। इस सोसाइटी में आने के बाद उन्हें यहाँ एस्पेरंजा (Esperanza day care) का पता चला था। तब उन्होंने शेमरॉक का जॉब छोड़ कर एस्पेरंजा में जॉब आरंभ कर दिया। 

इसके उपरान्त कुछ माह में कंपनी द्वारा कहे जाने पर विवेक को जॉब हेतु बंगलौर जाना पड़ा था। ऐसे शेफाली जी बैंगलोर चलीं गईं थीं। वहाँ उन्होंने किड्स कैसल (Kids castle) में अपना टीचिंग जॉब जारी रखा था।  

कोविड के समय में जब विवेक का जॉब घर से किए जा सकने वाला (Work from home) हो गया तब अपना घर विक्रय करके, शेफाली सपरिवार बनारस चलीं गईं थीं। बात आई गई सी हुई थी। 

दो वर्ष कोविड19 का समय ऐसा था, जब गृहिणी तो क्या अधिकांश जॉब करने वाले युवक युवतियाँ भी गृह सीमाओं में सिमट गए थे। दिन सामान्य जीवन से कुछ अलग तरह से व्यतीत हो रहे थे। विवेक अब घर में अधिक होते थे इससे वे शेफाली के मन की अनकही भी अच्छे से समझने लगे थे। 

जब कोविड के गंभीर खतरे का समय किसी तरह बीत गया तब विवेक की कंपनी ने उन्हें पुनः हैदराबाद पदस्थ किया। इससे ऐसा प्रतीत हुआ था कि शेफाली के परिवार का दाना-पानी हैदराबाद में ही लिखा था। 

शेफाली बताती हैं कि उन्होंने हैदराबाद में रहते हुए कई सोसाइटी देखीं थीं। इस सोसाइटी से इक्कीसी उन्हें कोई दूसरी नहीं लगी थी। शेफाली जी को सोसाइटी के मनोरम वातावरण एवं यहाँ रहने के अनुभव ने उनके मन को लुभाया हुआ था। 

इस कारण सपरिवार हैदराबाद वापसी पर, शेफाली ने घर इसी सोसाइटी में ही तलाशा और 1 जून 2022 को, विवेक-शेफाली पुनः यहाँ के बी ब्लॉक में रहने आ गए हैं। 20 जून से शेफाली ने अपने (पूर्व) शेमरॉक स्कूल में ही टीचिंग भी पुनः आरंभ कर दी है। 

पहले उन्होंने देखा हुआ था कि सोसाइटी की प्रायः सभी युवतियाँ जॉब करतीं थीं। कोविड के समय में वे सभी घर से ही कार्य (Work from home) कर रहीं थीं। उन्होंने यह भी देखा था कि जो जॉब नहीं कर रहीं थीं, ऐसी होममेकर गृहिणियाँ भी यहाँ अपनी सुविधा अनुसार कोई न कोई काम करते हुए व्यस्त थीं तथा महिला सशक्तिकरण (Women empowerment) के मार्ग में चल रहीं थीं। 

अब पुनः यहाँ आने पर यहाँ शेफाली की घनिष्टता “श्रुति जी” से हुई है। जी हाँ! श्रुति, जिनकी आँखों में बहुत कुछ कर गुजरने के अनेक सपने तैरते रहते हैं। उनकी उत्कण्ठाएं एवं योजनाएं कुछ विशेष कर गुजरने की है। दोनों ही सखियाँ अपने परिवार के साथ साथ समाज की भलाई भी चाहतीं हैं। 

प्रायः नित दिन शेफाली एवं श्रुति दोनों आपस में चर्चा करतीं हैं। इनके विचार मंथन का परिणाम निकला है। विवेक ने भी शेफाली के बिना बताए, शेफाली की टीचिंग के साथ ही व्यवसाय करने की ललक को भाँप लिया है। 

कुछ दिनों पूर्व विवेक ने एक रात्रि कहा - शेफाली, तुम अपने सपनों में पंख लगाकर इस विशाल आकाश में एक नन्हीं चिड़िया की भांति एक उड़ान भर लेने का प्रयास क्यों नहीं करती हो?

तब शेफाली ने अचरज से कहा - मैं आपके कहने का आशय समझ नहीं पा रही हूँ 

विवेक ने सप्रेम कहा - वैसे तो मेरी अर्निंग पर्याप्त अच्छी है। फिर भी क्योंकि तुम एम.बी.ए. हो, मैं चाहता हूँ कि तुम टीचिंग के साथ और भी कुछ कार्य करो। तुम्हारी समाज भलाई के कार्य की ललक भी मुझे अनुभव होती है। अपने कार्य से तुम जो भी धन अर्जित करो उससे तुम अपनी भावनाओं अनुरूप, उसे परोपकारों में लगाकर हमारे लिए संतोष एवं आनंद अर्जित करो। 

यह शेफाली के लिए आनंददायी बात हुई है। उन्हें लग रहा है कि 12 वर्षों के साथ में, अब विवेक उनके मनोभावनाओं को अधिक सरलता से समझने लगे हैं। अब विवेक को इसे समझने के लिए लिखे या कहे गए शब्दों की आवश्यकता नहीं रही है। 

अभी कुछ ही दिन में शेफाली ने “विशालाक्षी कलेक्शंस” नाम की एक व्यावसयिक फर्म बना ली है। अपने विशालाक्षी कलेक्शंस के अंतर्गत अब उन्होंने पावन (सेवा) कार्य का शुभारंभ भी कर दिया है। 

शेफाली जी बताती हैं विशालाक्षी, कामाक्षी एवं मीनाक्षी तीन देवियाँ हैं। जिनमें विशालाक्षी बनारस से हैं। इन्हीं देवी “विशालाक्षी” के नाम से शेफाली ने अब अपने निवास से बनारस (हथकरधा/गृह उद्योग) में निर्मित विश्व विख्यात साड़ियों का व्यवसाय प्रारंभ कर दिया है। 

शेफाली जी ने अपनी योजना मुझे बताई है। इस अनुसार बनारस में रहने वाले व्यवसायी परिवार की होने से उन्हें बनारस की, ये प्रसिद्ध साड़ियां गृह उद्योग की लागत के लगभग कीमत पर ही मिल जाती है। कुछ बुनकर शेफाली जी को लागत कीमत में थोड़ा ही लाभ लेकर ये साड़ियां प्रदाय कर रहे हैं। 

शेफाली जी ने उत्साहित होकर, मुझे यह भी बताया है कि बनारस की साड़ियां ‘शो रूम’ में जिस कीमत पर ग्राहकों को उपलब्ध होती हैं, उससे काफी कम कीमत पर उनके माध्यम से यह साड़ियां “विशालाक्षी” के ग्राहकों को मिल सकेंगीं। 

शो रूम के बाहर अन्य दुकानदारों से साड़ियां क्रय करने में ओरिजनल न होकर बनारसी के नाम पर साड़ी की नकल (डुप्लीकेट) की भी संभावना होती है। शेफाली से लिए जाने पर साड़ियों के ग्राहकों को यह संदेह भी नहीं रहेगा। 

स्पष्ट है कि कम कीमत पर ऑथेंटिक साड़ियां “विशालाक्षी कलेक्शंस” के माध्यम से ग्राहकों को सुलभ होंगीं। 

शेफाली जी ने आज प्रातः भ्रमण में मुझे आगे यह भी बताया है कि उन्होंने यह कार्य अभी हाल ही में आरंभ किया है। ऐसे में सर्वप्रथम क्रयकर्ता से कीमत प्राप्त करने के बाद, शेफाली ने उन्हें अपना प्रॉफिट गिफ्ट (वापस) कर दिया है। शेफाली का कहना है कि उनके द्वारा (कीमत कम लेने पर भी) अगले दस और ग्राहकों को (एक एक साड़ी) का उनका प्रॉफिट गिफ्ट करने की स्कीम है। 

जो मैंने समझा है इसका सार यह है कि शेफाली जी के लिए, कमाई से अधिक महत्व समाज सेवा का है। वे करुणा से भरकर बतातीं हैं कि हथकरधा बुनकर/कारीगरों को उनकी कड़ी मेहनत और साधना के बाद भी, कम ही आय मिल पाती है। जबकि अन्य लोग इन साड़ियों के व्यवसाय से अधिक लाभ अर्जित करते हैं। 

शेफाली जी हथकरधा बुनकर एवं जरी के काम करने वालों तथा अपने ग्राहकों में अपने लाभ का अधिक हिस्सा वितरित करने का आनंद प्रमुख करते हुए यह व्यवसाय करना चाहतीं हैं। 

शेफाली जी को अपने मम्मी-पापा एवं परिवार से व्यावसायिक सहयोग भी अच्छा मिल रहा है। वे अपनी ननद प्रतिभा जी धर्मपत्नी डॉ. अभिषेक जी (SC. commissioner of rpf Varanasi) के साथ ही गुणवत्ता वाली साड़ियों के व्यवसाय में एक सिद्धांत पर चलने का संकल्प रखतीं हैं। 

शेफाली जी (अपने लाभ देने वाले) वृक्ष के फल खाना चाहतीं हैं। शेफाली जानती हैं कि वृक्ष होने पर दशकों तक उसके फल प्राप्त किए जा सकते हैं। जबकि अधिक लालच में वृक्ष ही खा लेने पर, फिर कभी फल प्राप्त नहीं हो सकते हैं। बनारसी साड़ियों के ग्राहक, उनके लिए वह वृक्ष हैं जो बार बार उन्हें लाभ का फल प्रदान करते रहेंगे। 

शेफाली जी की योजना ऑनलाइन सप्लाई के माध्यम से, बनारसी साड़ियों की डिलीवरी विदेशों में भी करवाने की है। उनके आवास में साड़ियों के ग्राहकों के लिए दरवाजे प्रत्येक शनिवार-रविवार को एक डोर बेल पर हर समय खुले रहेंगे। स्कूल वाले दिनों में अपरान्ह 3.30 के बाद भी वे व्यवसाय कार्य के लिए उपलब्ध रहेंगी। 

अगर आप (नारी) बनारसी साड़ियों पहनने की इच्छुक हैं या (पुरुष) अपनी पत्नी/बहन/बेटी को बनारसी साड़ी में सजी संवरी देखना पसंद करते हैं तो अवश्य ही शेफाली जी की सेवाएं लेकर, अपने लिए मन पसंद साड़ियां कम कीमतों पर क्रय कर सकते हैं। 

शेफाली जी की “विशालाक्षी कलेक्शंस ” वास्तव में प्रॉफिट के लक्ष्य से कम अपितु समाज सेवा की दृष्टि से अधिक, कार्य करने जा रही है। शेफाली जी का इससे होने वाला लाभ, समाज के वंचित एवं अभावग्रस्त लोगों में विभिन्न प्रकार से पहुँचेगा। 

आप का सहयोग और साथ मिलेगा तो ( विशालाक्षी कलेक्शंस) वह नाम होगा जिसे एक दिन विश्वसनीयता में दूर तक जाना जाएगा। 

शेफाली जी को, विवेक जी ने उनकी एक वेवसाइट (अभी इसे और भी विस्तारित किया जाना है) बनाकर उपहार में दी है। इस वेवसाइट में ऑन लाइन आर्डर बुक करके भी साड़ी प्राप्त की जा सकती है। 

लिखा जा सकता है कि “विशालाक्षी कलेक्शंस” एक पावन प्रवाह है। यह अभी अपने उद्गम पर छोटी धार में बह रहा है। शीघ्र ही इसका प्रवाह विस्तार लेते हुए दूर तक की यात्रा तय करेगा। 



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