|| प्रेम की शीतलता ||
|| प्रेम की शीतलता ||
शीतल अपने नाम की तरह शांत सरल स्वभाव , सुंदर और किसी के प्रति द्वेष भावना नही रखने वाली थी | उसकी शादी एक मेहनती लड़के कमल से हो गई जो सरकारी कर्मचारी था शीतल एक अच्छे धनी परिवार से थी लेकिन लड़के के स्वभाव और व्यवहार पर उसके पिता को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने ने तो कह दिया कि तनखा अभी कम है बाद में बढ़ जाएगा और मै क्या विषम परिस्थिती में नही देखूंगा ? शीतल अपने पति के साथ ख़ुशी –ख़ुशी रहने लगी उसे पैसे से नही बस पति का साथ चाहिए था वह प्रत्येक परिस्थिती का सामना वीरांगना के समान करती थी लेकिन पैसों की किल्लत महीने के बीसवें दिन से शुरू हो जाती थी यह देखकर शीतल छोटे- छोटे काम करके उन कमियों को पूरा करने में लगी रहती थी लेकिन कभी संघर्ष से भेंट नही था अब तो हर पल उन्ही परिस्थिती से गुजरना कि कहीं इन कारणों से ऊब कर उसके पति पैसों के लिए दूर न चला जाए और पति के बिना जीवन की कल्पना उसके लिए मृत्यु के समान थी इसी लिए वह अपनी परवाह किए बिना एक साथ कई काम शुरू कर दी उसे तो जीवन में अपने पति का खिलखिलाता चेहरा और साथ चाहिए था लेकिन भाग्य तो कुछ और हीं सोच रखा था पति मेहनती तो थे उन्होंने नौकरी के साथ व्यापार भी शुरू किया शुरूआत में शीतल को लगा कि ठीक हीं है लेकिन दिन प्रतिदिन कमल की व्यस्तता ने उसे अकेलेपन का अहसास दिलाने लगा लेकिन घर की स्थिती के कारण चुप रही कुछ समय बाद तो कमल को पैसे कमाने की ऐसी लत लगी कि सुबह से शाम कब हो जाता उसे पता हीं नही चलता था एक माफी के साथ रात समाप्त फिर रोज की तरह दिन की शुरुआत अब तो यह आलम हुआ कि काम हीं काम में इस तरह खो गए की मोबाईल उठाना ,वह साथ में चाय पीना ,दिन का खाना सब सपना हो गया | उन दीवारों के बीच शीतल मुरझाने लगी और गुमसुम रहने लगी | खोई रहती उन दिनों में लेकिन अकेलेपन के सिवाय कोई हमसफर नही बचा था कमल से कुछ कहने पर वह झुंझला कर कहता यह मै तुम्हारी खुशी के लिए कर रहा हूँ लेकिन शीतल की खुशी प्रेम भरा साथ था जो पैसे से पूरा नही हो सकता था अब प्रेम की दीवानी प्रेम की तड़प में बेसुध -सी हो गई लेकिन प्रेम के भूखे को प्रेम मिल हीं जाता है एक दिन बेचैनी के कारण अपने क्वार्टर का दरवाजा खोलकर बार -बार कमल को मोबाईल लगा रही थी कि अचानक कुछ बच्चों की आवाज ने उसे जैसे नींद से जगा दिया हो आंटी हमलोग पास के अनाथालय से आए हैं पैसे इकट्ठा कर रहे हैं जिससे किताब , कापी खरीद सकें |शीतल सहसा पूछ उठी बच्चों आपलोगों को कौन पढ़ाता है | उत्तर मिला कोई नही
शीतल :फिर खुद
बच्चे :हाँ
शीतल ने कहा अभी जाओ इस व्यवहार से बच्चे के कोमल हृदय को तनिक ठेस लगी लेकिन बच्चे तो बच्चे होते हैं आगे निकल गए | दूसरे दिन आंटी को अनाथालय में देख बच्चों को आश्चर्य और ख़ुशी भी हुई उनके दोनों हाथ किताब कापी और चाकलेट से भरे हुए थे।
शीतल ने कहा कल जब मैने खाली हाथ आपलोगों को भेजा तो अवश्य बुरा लगा होगा लेकिन मैने कल हीं सोच लिया था कि आज से मेरा खाली समय आपलोगों को दूँगी वहाँ खड़े बच्चे और वहाँ के सदस्य उसके व्यवहार से आश्चर्यचकित भी थे और खुश भी।
शीतल ने कहा इसके बदले मुझे सिर्फ इन नन्हें बच्चों का प्यार और साथ चाहिए क्या देंगे आपलोग
बच्चों ने हाँ कहते हुए शीतल में लिपट गए और शीतल को भी जिस प्रेम की तलाश थी मानो वह मिल गया हो |प्रेम की राह में आगे बढ़ते हुए वह जीवंत हो उठी।