परछाईं - भाग २
परछाईं - भाग २
राहुल की चेतना किसी की आवाज़ सुनकर लौटने का प्रयास करने लगी। कोई उसका नाम बार - बार पुकार रहा था।
"राहुल--रा ---हुल ---हु--"
"माँ ?"
"राहुल --"
आवाज़ सुनकर राहुल ने आँखें खोने का प्रयास किया। थोड़ी सी आँखें खुली तो ढेर सारी रौशनी के एक साथ आँखों में भर जाने से वह कुछ चुंधिया गया। कुछ और प्रयासों के बाद जब उसे ठीक - ठीक दिखना शुरू हुआ तो उसने देखा उसकी माँ सामने खड़ी थी, वह अस्पताल में था और उसके हाथ पलंग से बंधे थे। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर उसके साथ हो क्या रहा था।
उसके होश में आते ही कुछ ही क्षणों में एक भीड़ ने बहुत तेज़ी से उसे घेर लिया। पुलिस, उसके परिवार के लोग, दरवाज़े पर इकट्ठे पत्रकार, कौन नहीं था वहाँ ?
"पर क्यों, आखिर ऐसा क्या हो गया ? " राहुल दुविधा में पड़ गया।
"तुम दो दिनों से बेहोश थे। " पुलिस इंस्पेक्टर ने कहना शुरू किया।
"उस रात क्या हुआ था --क्या तुम्हें कुछ याद है ?" उसने आपने साथी को इशारा किया और वो एक छोटी सी डायरी में कुछ लिखने लगा।
"नहीं --क्या हुआ --?"
"तुमने उस रात आठ लोगों को मार डाला,-- अगर ठीक - ठीक कहें तो आठ बहुत खूंखार अपराधियों से तुम अकेले भिड़ गए और एक लड़की की जान बचाई। अभी वो कोमा में है। तुम्हें जब यहाँ लाया गया तब तुम बिल्कुल आपे से बहार थे, हमें डर था कि कहीं तुम खुद को कोई नुकसान न पहुँचा लो इसलिए तुम्हें बाँधना पड़ा।"
"एक दुबले लड़के के लिए तुम काफी शक्तिशाली हो। तुम दस लोगों के भी काबू में नहीं आ रहे थे ----क्या तुम्हें ऐसा कुछ याद आ रहा है की वो तुम ही थे ? " डायरी बंद करते हुए दूसरे व्यक्ति ने पूछा।
"अगर सच कहूँ तो उस अवस्था में तुम्हें मानव कहना कठिन होगा ,अगर अपनी आँखों से न देखा होता तो मैं भी शायद यकीन नहीं करता। " पुलिस ऑफिसर ने राहुल को गौर से देखते हुए कहा।
राहुल को विश्वास नहीं हो रहा था कि इतनी बड़ी बात उसे याद नहीं थी, बहुत सोचने के बाद उसे उस परछाईं का विकराल रूप , अपना दम घुटना और अंततः बेहोश हो जाने तक की बात याद आ गई। राहुल के सर से पैरों तक सिरहन सी दौड़ गयी। वह समझ चुका था उस रात जो कुछ भी हुआ वह उसी लड़की की आत्मा ने किया था। वह उलझन में पड़ गया कि उसे यह बात लोगों को बतानी चाहिए या नहीं।
तभी कोई उसके पलंग से बंधे हाथों को खोलने लगा। वह हॉस्पिटल की नर्स थी।
वह लड़की उसे कान में फुसफुसाई -"मैंने तुम्हें ज़रा भी चोट नहीं लगने दी-- ज़िंदा रही तो तुम्हें मिलकर, अच्छे से धन्यवाद ज़रूर करूँगी।"
राहुल ने नर्स की तरफ देखा तो उसकी साँस कहीं अटक गयी। उस लड़की का चेहरा राहुल नहीं देख पा रहा था उसे बस एक काली परछाईं ही दिखाई दे रहे थी। यह कैसे संभव था ?
उसने जल्दी से और लोगों की ओर नज़र दौड़ाई पर वो सभी उसे बिलकुल ठीक दिखाई दे रहे थे। उसी क्षण राहुल को समझ आ गया कि वह कौन थी, भय के मारे उसका शरीर पथरा गया।
"जाने अब कौन सी मुसीबत का सामना करना पड़ेगा ? क्या ये सबके सामने मुझे मार देगी ?" राहुल का शरीर जितना जड़ था उसका दिमाग उतनी ही तेज़ी से सवाल - जवाब कर रहा था।
"जल्दी मिलेंगे। " उसने फिर से राहुल से कहा।
और देखते ही देखते अज्ञात लड़की दूसरों को हटाती हुई पीछे की और जा खड़ी हुई। राहुल के परिवार वालों ने उसे फिर से घेर लिया पर राहुल को किसी की बात सुनाई नहीं दे रही थी। उसकी दृष्टि तो उस लड़की पर ही टिकी थी जिसके चेहरे पर उसे अब भी परछाईं के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
"जल्दी ---- मिलेंगे ? उसने यही कहा, है ना --?" राहुल उस अज्ञात लकड़ी को घूरता ही जा रहा था।
"वहाँ क्या देखे जा रहा है बेटा, तुझे कोई दिखता है क्या ?" राहुल की माँ उसका सर सहलाते हुए उससे पूछ रही थी, क्योंकि जिस तरफ वह देख रहा था वहाँ कोई भी नहीं था।
(.......अंत )