कश्मीर की अंतिम महारानी
कश्मीर की अंतिम महारानी
नायिकाओं की कहानियाँ मुझे सदैव से आकृष्ट करती हैं। साहसी स्त्रियाँ, जो चुनौतियों का सामना कर उन्हें परास्त करती हैं मुझे प्रेरणा देने के साथ - साथ आत्मबल से भी भर देती हैं। तो जहाँ कहीं भी ऐसी किसी वीरांगना की चर्चा सुनने को मिलती है मेरे कान स्वयं ही खड़े हो जाते हैं। यह एक ऐसा विषय है जिसे मैं प्राथमिकता में सबसे आगे रखती हूँ।
एक साक्षात्कार में जब मैंने कश्मीर की अंतिम महारानी " कोटा रानी " के बारे में सुना तो तुरंत मेरी जिज्ञासा जाग उठी। कोटा रानी इसलिए भी खास हो जाती हैं क्यूँकि उस काल में दुनिया के अधिकांश भाग में स्त्री का गौड़ स्थान था। पर इन विपरीत परस्थितियों में कोटा रानी का नाम इतिहास में अंकित हुआ।
आखिर क्यों ? ऐसा क्या अर्जित किया था कोटा रानी ने ? पर कश्मीर की अंतिम महारानी क्यों ? इन्ही सवालों के साथ बड़ी बेसब्री से मैंने इस पुस्तक का पाठन शुरू किया।
रक्तरंजित सिंघासन
पाठक को पहला धक्का तब लगता है जब कोटा रानी आपने आपने पिता के हत्यारे से विवाह कर लेती है। राजकुमार रिनचेन जो एक बौद्ध शरणार्थी था कश्मीर के राजा और उसके सेनापति (कोटा के पिता ) की हत्या कर साम्राज्य पर कब्ज़ा कर लेता है। इन विषम परस्थितियों में रिनचेन से विवाह कर कोटा कश्मीर के सिंघासन पर बैठती हैं।
कुछ समय पश्चात रिनचेन इस्लाम कुबूल कर लेता है ,यहाँ कोटा के लिए दुविधा का मोड़ आता है कि अब वो भी आपने पति का अनुसरण करे या नहीं ? रिनचेन उनके पुत्र को भी शाह मीर को सौंप देता है। बहुत संघर्ष के बाद भी कोटा उसे नहीं रोक पाती। परन्तु रिनचेन का तीन वर्ष के अल्प शाशनकाल में ही निधन हो जाता है। कश्मीर एक बार फिर बहरी आक्रमण ,और आंतरिक संगर्ष के काले बादलों में घिर जाता है।
दूसरा विवाह और चुनौतियां
दूसरे विवाह का विषय सैदव से ही तर्कों में घिरा रहता है। भारतीय समाज दूसरे विवाह के प्रति सहज नही रहा है यही हम सब ने सुना है परन्तु कोटा रानी इस रूढ़ि को भी तोड़ती हैं।
राज्य की स्थिरता और सुरक्षा के लिए कोटा रानी उदयनदेव से विवाह करती हैं। उदयनदेव भले व्यक्ति थे ,पर उनकी रूचि सैनिक अभियानों में नहीं विज्ञान के पठान में ज़्यादा थी। परिणामस्वरुप राज्य की संपूर्ण बागडोर कोटा रानी संभालती हैं। तभी राज्य पर बर्बर आक्रमणकारी अचाला का कहर बरसता है। उस बड़ी सेना का कोटा बड़ी चतुराई से सामना करती हैं। और अचाला को स्वयं से विवाह और कश्मीर को बिना किसी खून - खराबे के आपने अधीन कर उसपर राज करने के लिए आमंत्रित करती हैं , ततपश्चात अग्निकुंड के समक्ष ही उसका वध कर देती हैं। इस तरह वो एक बार फिर अपने राज्य की रक्षा करने में सफल होती हैं।
अंतिम संघर्ष
पर एक बार फिर उदयनदेव की मृत्यु के पश्चात बुरे दिनों और असंख्य विपदाओं की जैसे बाढ़ सी आ जाती है। इस बार आंतरिक विद्रोह खड़ा हो जाता है। शाह मीर जो कुछ समय पहले अपने प्राणो की रक्षा के लिए शरणार्थी के वेश में आया था और अब कश्मीर का सेनापति भी था ,शरणार्थियों का एक जत्था तैयार कर लेता है जो विद्रोह पर उतर आता है।
इस बार की चुनौती का सामना डटकर करने के पश्चात भी दुर्भाग्यवश कोटा रानी के हाथ असफलता लगती है । बूढ़ा शाह मीर विविआह का प्रस्ताव रख , साथ में राज्य करने का अंतिम प्रलोभन कोटा रानी को देता है । कोटा यह समझ चुकी थी कि उनके लिए अब कोई रास्ता नहीं बचा है इसलिए अपने सम्मान की रक्षा करते हुए वे स्वयं के जीवन का अंत कर लेती हैं।
कोटा रानी जिन्होंने हर बर्बर बाहरी आक्रमणकारी से कश्मीर की रक्षा की ,हर चुनौती स्वीकार कर जीत हासिल की अंत में अंदर के लोगों से जीत नही पायीं।
यह पुस्तक क्यों अवश्य पढ़नी चाहिए ?
आज के जीवन में भी अत्यंत प्रासांगिक - आज के समय में एक स्त्री जिन सवालों का सामना करती है ,कोटा रानी के जीवन में लगभग वही सब सवाल थे जिनका उन्हने सामना किया। इस कारण इस कहानी से आपने आपको जोड़ना बहुत सहज हो जाता है।
इतिहास की जानकारी - कश्मीर का गौरवशाली इतिहास तो इस उपन्यास से पता चलेगा ही। साथ ही कब इस रोमांचक कहानी के ज़रिये आपका ज्ञानवर्धन भी हो जायेगा पता भी नहीं चलेगा।
आत्मविश्वास की अद्भुत अनुभूति - कोटा रानी के अदम्य सहस की इस कथा को पढ़ने के बाद आत्मविश्वास की एक अद्भुत लहर आपको स्वयं पर विश्वास रखने और चुनौतियों का डटकर सामना करने की ऊर्जा देगी। कोटा रानी का चरित्र हमे सिखाता है कि अपने जीवन के लिए ,अपनी भूमि के लिए , अपने राष्ट्र के लिए ,अपने लोगों के लिए निर्णय लीजिये और पथ कितना भी कठिन क्यों न हो उस पर चलिए। क्यूँकि आप चल सकते हैं , और इस बात पर क्षणभर के लिए भी संदेह मत कीजिये ।
