Shivtanya Raghav

Horror

3.6  

Shivtanya Raghav

Horror

परछाईं - भाग १

परछाईं - भाग १

4 mins
454



ऑफिस के बुरे दिन के बाद सड़क चलते उसके साथ अगर कोई था तो सिर्फ उसकी परछाईं। कभी उसके आकार से बड़ी हो जाती कभी इतनी छोटी की उसके पैरों के इर्द - गिर्द ही सिमटकर रह जाती , कभी उसकी लम्बाई की कई गुना होकर आगे निकल जाती, कभी उसके पीछे छिप जाती। राहुल का मन कुछ हल्का होने लगा , उसे लगा जैसे उसकी परछाईं उसे दिलासा देकर हँसाने का प्रयास कर रही थी। 


आखिरकार परछाईं की जीत हुई और राहुल ने मुस्कुराते हुए उसे पकड़ लेने का निश्चय किया। उसने तेज़ी से उसकी ओर कई बार कदम बढ़ाये परन्तु हमेशा ऐसा लगता मानो कुछ ही दूरी से वह उससे पीछे छूट जाता , कभी वो उस आकृति के हाथ को आपने पंजों से दबा लेना चाहता था कभी उसके सर तक लम्बी छलाँग लगा देने को उसका ह्रदय उसे उकसाता। 


आपने खेल में मग्न राहुल का ध्यान, एक अँधेरी गली से लुढ़ककर आती हुई उस खून से सनी कलम पर नहीं गया। वो अपनी पीड़ा के उपचार से सारी दुनिया जैसे भूल ही बैठा था। वह कुछ आगे निकल आया तो ट्रैफिक के शोर के बीच उसे मनो किसी की मदद के लिए पुकारने की आवाज़ सुनाई दी उसने रुककर इधर उधर देखा , पर वहाँ कोई दिखाई नहीं दिया। उसने दोबारा वह आवाज़ सुनाई देने की प्रतीक्षा की पर वह आवाज़ दोबारा सुनाई नही दी। 

"हुं -मेरा वहम था क्या ?" अपना सर खुजाते हुए राहुल ने सोचा। 

कुछ देर प्रतीक्षा करने के बाद जब उसे वहाँ कोई ऐसी आवाज़ सुनाई नही दी तो वह फिर से अपने घर की तरफ चल पड़ा। 


कुछ दूर निकल आने पर राहुल का धयान पुनः अपनी परछाईं पर गया। पर इस बार वह अलग थी, वह पहले जैसी बिल्कुल नही थी। 


 उसने देखा कि किसी स्त्री की परछाईं उसके सर के ऊपर थी। यह देखते ही उसका दिल ज़ोर - ज़ोर से धड़कने लगा , सर की नसें में मनो एक ही झटके में सरे शरीर का खून भागने लगा, उसकी साँस जैसे उसी क्षण जड़ हो गयी और आंखें भय के मारे पत्थरा गयीं।

दिमाग शीघ्रातिशीघ्र इसका तर्क चाहता था , पर आँखें कब का इस बात पर यकीन कर चुकी थीं, शरीर कँपकँपाने लगा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह जो देख रहा है वह सत्य है या उसकी कल्पना की कोई भद्दी , मनघडंत छवि। 

इसका फैसला हो सकता था। हाँ, बिलकुल हो सकता था यदि वो एक बार पीछे मुड़कर देख ले तो। पर क्या उसमे इतनी हिम्मत थी कि वो एक बार पीछे मुड़कर इसकी पुष्टि कर सके। हो सकता है यह उसका भ्रम निकले , परन्तु यदि यह उसका भ्रम न हुआ तो ---?


"नहीं यह मेरा भ्रम ही है , ऐसी चीज़ें कहानियों में ही सुनने को मिलती हैं।" आपने मन में यह सोचकर राहुल रुका और एक गहरी साँस छोड़कर उसने पीछे मुड़कर देखा। वहाँ कोई नहीं था। 


उसने मुड़कर अपनी परछांई को देखा तो उसे फिर से वहाँ वो ऊपर बैठी परछाईं दिखाई दी। इस बार उसने आपने सर के ऊपर तेज़ी से नज़र दौड़ाई पर वहाँ कुछ भी नही था। 


अब राहुल के हाथ मारे भय के काँपने लगे , उसने अपनी मुट्ठी कसकर बंद कर ली , और आँखें बंद कर मन ही मन प्रार्थना करने लगा "हे भगवन , मेरी रक्षा करना।"

"ॐ नमः शिवाय --ॐ नमः शिवाय " इन मन्त्रों के निरंतर उच्चारण के साथ वह अपने घर की ओर लगभग भागने ही लगा।


बेतहाशा भागते हुए आखिरकार वो आपने घर पहुँचा। बहुत तेज़ी से चाबी निकाल उसने अपने घर का दरवाज़ा खोला ही था कि एक खून से लथपथ कलम उसके पैरों से आ टकरायी। यह वही कलम थी जिसे राहुल ने वहाँ पीछे सड़क पर नही देखा था। खून की रेखा बनते हुए उसकी ओर लुढ़ककर आती हुई कलम देखकर राहुल के मुँह से चीख निकल पड़ी। अब तक उसकी समझ ने उसका साथ छोड़ दिया था और वह बुरी तरह घिघियाने लगा। 

"तुम कौन हो ? क्या चाहती हो ? मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है ? मुझे छोड़ दो --मै जीना चाहता हूँ। " राहुल का स्वर बुरी तरह काँप रहा था।


तब तक वह परछाईं भयंकर रूप धारण कर चुकी थी , उसके बाल जैसे किसी आँधी के कारण फैलकर विकराल रूप में आ गए थे और उसने एक चीत्कार के साथ राहुल पर हमला कर दिया। 

राहुल की आँखों के सामने अँधेरा छा गया। नही , यह किसी भय के कारण नहीं था। उसकी आँखों की रौशनी ही चली गयी थी। उसके सामने गुप्प अँधेरा छा गया। अब राहुल को अपनी मृत्यु में कोई संदेह नहीं रह गया था। आज उसका बचना संभव नही था। उसका दम घुटने लगा , वह धम्म से ज़मीन पर गिर पड़ा और ज़ोर - ज़ोर से आपने पैर ज़मीन पर पटकने लगा। कुछ देर बाद वह चौखट पर ही ढेर हो गया।


                                          

                                                                                            ( कहानी जारी रहेगी ........ भाग २ में )



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Horror