चौकीदार भाग 3
चौकीदार भाग 3
राहुल के अपेक्षित लेकिनग बेहद रूखे व्यवहार को देखकर गिरिधर को मयंक के लिए बुरा लगता है। लेकिन उस भरी भरकम वातावरण को कुछ हल्का करने के लिया मयंक चहकते हुए गिरिधर से कहता है।
"बहुत ज़ोरों की प्यास लगी है काका , एक गिलास पानी मिल जाये तो मज़ा आ जाये। "
"तुम बैठो , मैं अभी लता हूँ। "
"अरे नहीं नहीं आप बता दीजिये मैं खुद ले लूंगा। "
"अरे अब बैठो भी। "
इतना कहकर गिरिधर रसोई की ओर चला जाता है। मयंक, जिस दिशा में राहुल अभी थोड़ी देर पहले गया था उस ओर बड़ी तीव्रता से चल पड़ता है। वह राहुल के कमरे की चौखट पर खड़ा होकर देखता है राहुल अपने फ़ोन में लगा है।
वह चिकित्सा से सम्बंधित कोई विडिओ देख रहा था। यह समझाना कोई मुश्किल काम नहीं था कि वह निश्चित रूप से अपना उपचार खोजने का प्रयास कर रहा था। भले ही उसने किसी के सामने रो - रोकर अपना दुःख व्यक्त न किया हो पर सत्य तो यह था की उसे अपनी दयनीय स्थिति से पीड़ा तो होती ही थी , जैसे किसी भी मनुष्य को होगी। उसकी वेदना ने उसे चिड़चिड़ा बनाने के स्थान पर अत्यंत शांत बना दिया था , इसलिए उसकी वेदना का अनुमान लगाना ज़्यादातर लोगों के लिए असंभव ही था।
"यहाँ आकर मै तो निराश ही होने लगा था , पर मेरे हाथ तो इक्का लग गया। (कुछ रूककर ) हम दोनों एक दूसरे के काम आ सकते हैं , अगर तुम चाहो तो --- (गहरी साँस छोड़कर ) यहाँ , में उम्मीद कर रहा था कि तुम पूछोगे , कैसे ? " मयंक ने बात शुरू की।
राहुल ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह आपने फ़ोन में ही लगा रहा।
मयंक मुस्कुराया और राहुल की ओर बढ़ने लगा, उसकी मेज़ के पास पहुंचकर वह ठहर गया।राहुल ने अपना फ़ोन झट से बंद कर दिया और प्रश्न भरी आँखों से उसे देखा। मयंक ने टेबल पर पड़ी कलम उठा ली और राहुल से अपना हाथ आगे बढ़ने का इशारा किया।
"तुम्हारे पिता जरा पुराने ख्याल के व्यक्ति हैं वो मेरी बात सुनेंगे भी नहीं । लेकिन मुझे भरोसा है कि तुम दिमाग से काम लोगे और सही फैसला लोगे । --तो बढ़ाओगे हाथ या नहीं ? तुम्हारे और मेरे दोनो के फायदे का सौदा है । "
पहले तो राहुल कुछ झिझका पर फिर धीरे - धीरे अपना हाथ मयंक की ओर बढ़ा दिया। मयंक ने उसकी हथेली पर एक फ़ोन नंबर लिख दिया।
"मुझे उम्मीद है तुम सोचने में ज्यादा समय बर्बाद नहीं करोगे । " मयंक ने हलकी सी मुस्कराहट के साथ अपनी बात खत्म की।
अपनी बात समाप्त कर वह मुड़ा और कमरे से बाहर चला गया। जाते जाते उसने राहुल पर एक दृष्टि डाली वह बहुत तीव्र दृष्टि से अपनी हथेली को घूरे जा रहा था। मयंक समझ गया कि राहुल का मन डोलने लगा है और यह उसके लिए अच्छा संकेत है। वह तेज़ी से घर के बाहर चला गया।
गिरिधर पानी लेकर लौटा तो उसे मयंक कहीं नहीं मिला। उसने उलझन में यहाँ - वहाँ तलाश की पर मयंक गायब था।
"शायद कोई ज़रूरी काम आ गया होगा। " गिरिधर ने आपने मन में सोचा और वापस आपने काम में लग गया।
दूसरी ओर मयंक अभी उस बस्ती के बाहर भी नहीं पहुँचा था कि उसे किसी अनजान व्यक्ति का फ़ोन आ गया। मयंक ने जीत की सी मुस्कराहट के साथ फ़ोन उठाया।
"ओह ! तो ऐसी है तुम्हारी आवाज़। अब जाकर हमारा परिचय पूरा हुआ ---तो , काम की बात शुरू करें ?"
कहानी अगले भाग में जारी रहेगी ......
