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Twinkle Raghav

Comedy Drama Others

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Twinkle Raghav

Comedy Drama Others

घुसपैठिया

घुसपैठिया

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 गत रात एक घुसपैठिया घर में घुस आया। या नहीं, शायद वह बहुत पहले से ही घर में घुसा बैठा था। बिलकुल शातिर अपराधी की तरह शांत और सही अवसर की फ़िराक में। यह अनुमान लगाने का मेरे पास बहुत ठोस कारण है , वह यह की कुछ दिनों पहले मैंने इस शातिर अपराधी को अपनी मच्छरदनी के डंडे पर दिन दहाड़े चढ़ते देखा था। 

उसका पूरा शरीर काले रंग में प्राकृतिक रूप से सराबोर था। बड़ी - बड़ी आँखें किसी सुपर हीरो फिल्म के नायक जैसे मुखौटे का भान कराकर आँखों में धूल झोंकने का सफल प्रयास कर रही थीं। वह आपने कबीला का नवयुवक जान पड़ता था जो पूरे उत्साह और निडरता के साथ हमारे घर में बेधड़क घुस आया था। अगर बात सत्यता की कहूँ तो इतना डरावना चूहा मैंने अपनी ज़िंदगी में पहली बार ही देखा था। अगर उसकी परम शत्रु बिल्ली का उससे सामना हो जाता तो वह उसे देखकर थर-थर काँपने लगती और निश्चित ही उस युद्ध भूमि से उलटे पाँव भाग खड़ी होती। 


उस दिन के बाद मैंने उस बलवान चूहे को नहीं देखा शायद इसलिए मुझे यह भ्रम हो गया की वह बलवान मूषक अब तक अजेय रहे मनुष्यों के डर के कारण भाग खड़ा हुआ है। 

ऐसे दंभ का दोषी मैं उन चूहे मरने वाली चूरन की पूड़ियों को मानती हूँ जिन्होंने इन आतताइयों को जड़ से नष्ट करने का हम सभी को आश्वासन दिया है। भले ही हम कायरों की भांति उस ज़हरीले चूर्ण को किसी खाने के पदाथ में छुपाकर रख देते हैं और फिर चूहों द्वारा उसके सेवन की दिनों दिन प्रतीक्षा करते हैं , परन्तु उसकी मृत्यु पर ऐसे दंभी हो जाते हैं जैसे कितने पराक्रम से हमने अपने शत्रु को पराजित किया है। 


परन्तु इस बार हमारा पाला केवल एक बलिष्ठ ही नहीं अपितु अत्यंत कुटिल मूषक से पड़ा था। वह हमारे ज़हरीले पकवानों के छल में नहीं फँसा। और फँसता भी क्यों उसे सोयाबीन पसंद थी और हम रख रहे थे चावल , टमाटर। अब आप सोचेंगे की उसकी पसंद भला आपको कैसे पता होगी तो इसका जवाब है कि जिस समय हम चूहे का चावल या टमाटर खाने की प्रतीक्षा कर रहे थे उस दौरान उसने सोयाबीन का आधा डब्बा साफ़ कर दिया। साक्ष्य के तौर पर बस पाँच - छः वड़ियाँ ही उसके इर्द - गिर्द मिल पायीं। प्रतिदिन उसका आतंक बढ़ता ही जा रहा था। हद तो उस दिन हो गयी जब एक रोज़ उसने कायरों की तरह छिपना छोड़ दिया और खुले आम बाहर आकर हम सभी को चुनौती दे डाली।


 

इस उद्दंडता की प्रतिक्रिया पुरे घर में गंभीरता से हुई, आपात कालीन बैठक के रूप में। अब तक घर की जो तिल्लियाँ इधर उधर बिखरी पड़ी थीं, कइस शत्रु की ललकार ने उन्हें इकट्ठा करके एक शशक्त गट्ठे में बंद दिया था। 

परिवारजन बैठ, तो हर दिमाग ने आगामी युद्ध के लिए अपनी रणनीति प्रस्तुत की। प्रथम सुझाव था कि सभी को एक ब्रिगेड की तरह कार्य कर उसे घेरकर समाप्त कर देना चाहिए। लेकिन चूहे के आकार के कारण बहुत लोगों को इस योजना की सफलता में संदेह हुआ। एक प्रतिशत विफलता का भी जोखिम उठाने को कोई राज़ी नहीं था इसलिए इस योजना को तुरंत कचरे के डब्बे का रास्ता दिखा दिया गया


थोडी देर गहमा - गहमी के बाद सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पास हुआ की चूहेदानी मँगवाई जाये। और अगर मूषक राज बंदी बन जाए तो उनकी उद्दंडता के लिए उन्हें थोड़ा डराया जाये और फिर कहीं दूर छोड़ा जाये। डराने की अल -ग अलग विधियों पर विचार शुरू हो गया। कोई कहता उन्हें पानी में दो चार डुबकियां लगवा दी जाएँ , किसी का सुझाव था कि कम से कम पंद्रह मिनट के लिए तेज़ प्रकाश से उसे प्रताड़ित किया जाये।


  उन सभी की बातें सुनकर मेरे मन में एक खयाल कौंधा कि शुक्र है जो मूषकराज यहाँ बंदी बनेंगे , वरना हमारे पड़ोसी चीन जैसे किसी देश में वो वहाँ दुर्भाग्यवश किसी परिवार के हत्थे चढ़ गए होते तो चर्चा इस विषय पर हो रही होती कि कौन सा अंग सबसे स्वादिष्ट होगा। गुर्दे ज़्यादा पौष्टिक और स्वादिष्ट होगा या आँतें। बरहाल , यातना देने के किसी भी स्पष्ट तरीके के निर्णय के अभाव में सभा की समाप्ति घोषित हो गयी। 


चूहेदानी लायी गयी , एक रोटी का टुकड़ा उसमें लटकाया गया। अभी इस युक्ति को कार्यान्वित हुए पाँच मिनट भी नहीं हुए थे कि हमारा दुश्मन धराशाही हो गया। पट से पिंजरा बंद होने की आवाज़ आयी और आँखों ही आँखों में सभी ने एक दूसरे को सफलता की बधाई दे डाली। 

मेरी माँ चूहेदानी के बंदी को हमारे समक्ष झटपट ले आयीं , सभी ने घुसपैठिये का चेहरा खूब घूर - घूर कर देखा। तत्पश्चात मैया ने एक छोटी डंडी हाथ में धारण कर ली। मुझे संदेह हुआ कि आज मूषकराज का पाला माँ से पड़ गया है और अब इनकी ऐसी ही कुटाई होने जा रही है जैसी बचपन में माँ ने शरारत करने पर हमारी लगायी थी। 


मेरा अनुमान सही निकला। माँ ने पिंजरे से झाँकते मूषकराज को एक डंडी जड़ दी , मूषकराज को वह लगी तो नही पर पिंजरे की टंकार से ही भय उनके मन में विद्यमान अवश्य हो गया। चूँ -चूँ की आवाज़ आने लगी। 


" इतने दिनों से तुझे समझा रहे हूँ चला जा --चला जा पर बात तेरी समझ में नहीं आ रही , है न ? " माँ ने उससे वार्तालाप शुरू किया। 

" चूँ ----चूँ "

चूहा चाहे कुछ भी कह रहा हो मुझे तो " मैया अब कभी नहीं करूँगा , क्षमा कर दो !" ही सुनाई दे रहा था। 

"अब आएगा वापस ?" एक और डंडी रसीद करते हुए। 

" चूँ --चूँ --चींईईई। "

" भूलकर भी नही। " मेरा अनुवाद। 


कुछ देर यूँ ही डांट और विलाप का कार्यक्रम चला। तत्पश्चात मैया उसे बाहर कुछ दूर छोड़ आयीं। मूषकराज सरपट दौड़कर बिजली की तीव्रता से अँधेरे में ओझल हो गए। आज उनको गए हुए कुछ दिन बीत चुके हैं, लगता है खबर आसपास की सरी चूहा कॉलोनी में फ़ैल चुकी है कि उनके सबसे बलशाली मूषक का क्या हाल हुआ है। बेचारे भय से काँप रहे होंगे कि मनुष्य से विजय असंभव है। यही सोच - सोचकर मैं रात को किताब की पन्ने पलट रही थी , फिर दिमाग विज्ञान की और चल पड़ा कि जब इंसान ने शेर जैसे हिंसक पशुओं पर विजय पायी होगी तभी तो यह संभव हुआ होगा की आज शेर विलुप्त होने की कगार पर खड़ा है और मनुष्य की जन सँख्या रुकने का नाम नहीं ले रही। 


मैंने विचारों के वेग में ध्यान नहीं दिया पर फिर से दंभ ने अपना सर उठा लिया था और वह किसी मदमस्त हाथी जैसा उन्माद में झूम रहा था। परन्तु तभी मुझे अपने सर के पास कुछ सरसरहाट सी महसूस हुई पलटकर देखा तो एक छोटी सी चुहिया मच्छरदनी के डंडे पर मेरे सर के ऊपर की और बैठी थी , उसने मेरे घमंड खोखले मुकुट को अपनी तिरस्कृत नज़रों से ठोकर मारकर चूर - चूर कर दिया। 

इसके बाद वह बड़े इत्मीनान से वहां से उतरी और किसी साम्रागी की भांति बड़े रौब से वहाँ से चली गयी। कुछ दिनों बाद फिर से गृह आपातकालीन बैठक की घोषणा हो गयी फिर से एक घुसपैठिया घर में घुस आया था। 



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