प्रभाव आत्मचिंतन के
प्रभाव आत्मचिंतन के
ऑफ़िस से घर आकर रितु अभी चाय की पहली चुस्की ली ही थी कि कॉल बेल बज उठी। ये क्या रिमू के साथ-साथ सोसाइटी की और भी कई सहेलियाँ खड़ी थी।
“व्हाट ए ग्रेट सरप्राइज, एक साथ तुम सभी ? क्या बात है...सोसाइटी में कुछ नया करने का इरादा है क्या.. ?” रितु चहक उठी।
ओफ्फ नो .. रिमू ने बताया बहू के आगमन की तैयारी में तुम आजकल आत्मचिंतन कर रही हो। कीया बोल पड़ी। बात व्यंग्य में कही गई थी पर रितु ने बड़े ही सहजता से उसके शब्दों को लिया और बोली हाँ.. चिंतन तो आवश्यक है।
अपने बुद्ध बाबा के चिंतन का लाभ उठाने ही तो हम सभी आई हैं। एक साथ दो-तीन सहेलियाँ बोल पड़ी। रितु मुस्कुरा दी पर मौका लगते ही कीया बोल पड़ी - “रितु घबराने की बात तो है क्योंकि आजकल की लड़कियाँ किसी को अपने सामने कुछ समझती ही नहीं। पर घबराओ नहीं। मैंने तो अपनी बहू को कह दिया यहाँ मेरे पास रहोगी तो मेरे अनुसार रहना होगा, अपने यहाँ अपने अनुसार रहना और जब मैं तुम्हारे यहाँ आऊँगी तो उन दिनों तो गृहस्थी की बागडोर मेरे ही हाथों होगी। आजकल कोई भी बहू चार दिन से ज्यादा रहती है क्या। देखो कोई दिक्कत नहीं होती है।
‘रितु का बेटा तो यहाँ ही नौकरी करता है उसे तो सोचना होगा।’ रिमू बोल पड़ी। सभी बुद्ध बना रितु को सुनने आई थीं और आपस में ही बोल वाद-विवाद कर रही थीं। रितु सभी के बातों का आनन्द ले रही थी। काफी देर तक वाद-विवाद चलता रहा। चाय-नाश्ता के बाद महिमा को ध्यान आया कि वो लोग रितु के आत्मचिंतन से उपजे ज्ञान का लाभ उठाने आए अतः उसने सबको शांत किया और रितु से मुख़ातिभ हुई। अरे रितु ! इनकी छोड़ तुमने क्या ज्ञान प्राप्त किया ये तो बता। हम जानने को बड़े उत्सुक हैं।
रितु पुनः मुस्कुराते हुए बोल पड़ी - “अरे निष्कर्ष क्या निकलेगा। अपने को शांत कर संयम से रहना है। सब आप ही आप ठीक रहेगा। मैं पूछती हूँ क्या पहले सास बहू के रिश्ते केवल मधुर ही होते थे ? हर युग में प्यार और कर्तव्य के बल पे ये रिश्ते मधुर और कटु दोनों होते थे। इस पर फालतू चिंतन और मगजमारी नहीं करनी चाहिए। सास बहू दो जेनरेशन के प्रतीक हैं। बीच में गैप तो होगा ही। अपने अनुभव और प्यार के मीठे बोल के साथ संयम धर इस गैप को पाटने की कोशिश करनी है।” सभी के मुँह खुले रह गए और रितु का मुस्कुराता चेहरा दिव्य, मानों उसने बुद्धत्व को प्राप्त कर लिया।