Nisha Singh

Drama

4.3  

Nisha Singh

Drama

पंछी

पंछी

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236


चेप्टर -4 भाग-1


आज अचानक ही नींद कुछ जल्दी खुल गई। अब भई 8 बजे जागती हूँ 7:45 पे जाग गई… जल्दी ही है। आँख खुली तो लगा जैसे घर में कोई आया हुआ है। कोई आने वाला तो नहीं था पर मेहमानों का क्या भरोसा कब आ टपके। एक बार को तो मन में आया कही बुआ न आ गई हों। मेरी बुआ, साधना, आफत की सिनोन्यम हैं। मैंने उठकर देखा तो बड़ी गहन चर्चा हो रही थी। माँ पापा और राहुल डाइनिंग टेबल पर बैठे बात कर रहे थे मैं भी जाकर वहीं बैठ गई।

‘जनाब… दिमाग में कुछ बैठा या नहीं?’ पापा ने राहुल की तरफ देख कर कहा।

‘हाँ पापा... ठीक है ना, कितना समझाओगे...?’ राहुल ने थोड़ा गुस्से में कहा। शायद, काफी देर से भाषण सुन रहा होगा और अब बेचारा सह नहीं पाया तो फूट पड़ा।

‘काफी बद्तमीज़ हो गए हो तुम। ’ पापा ने डांटते हुए कहा।

‘क्या माँ… पापा हमेशा ही डांटते रहते हैं अब मैं बड़ा हो गया हूँ। ’ कहते हुए राहुल ने माँ की तरफ़ देखा। उसका ये बात कहना था कि मेरी हँसी छूट गई सबने मेरी तरफ देखा, पर मेरी हँसी थी कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी फिर क्या था उठ के जाना ही पड़ा वहाँ से। ये सोच के सुकून था की बुआ जी नहीं आयी है पर सुबह-सुबह किस बात का बतंगड़ बनाया जा रहा था ये नहीं पता सोचते-सोचते मैं किचन की तरफ बढ़ गयी। चाय ली… इतने में ही मम्मी आ गयी।

‘जब देखो तब बच्चों के पीछे पड़े रहते है’ इतना ही सुना मैंने, अंदर आते हुए बड़बड़ा रही थीं।

'क्या हुआ मम्मी?'

'कुछ नहीं, तेरे पापा है... ’

‘वो तो है पर हुआ क्या ?’

'पीछे पड़े है राहुल के'

अब मैं चिढ़ चुकी थी। मम्मी को हर बात बढ़ा चढ़ा के करने की आदत है सीधे मतलब की बात नहीं कर सकती।

‘सीधे सीधे ही बता दो कि क्या हुआ है?’ मैंने चिढ़ते हुए कहा तो मम्मी समझ गयीं कि जो बात है सीधे बताना ही ठीक रहेगा।


‘तेरे पापा राहुल को IIT की तैयारी करने की कह रहे थे। ’ मम्मी की बात सुन के तीर सा लग गया मुझे, फिर भी अपने आप को स‌ंभालते हुए मैंने पूछ लिया।

‘ क्या कहा फिर राहुल ने?’

‘तैयार तो है, क्या करे अब… अभी तो 10th किया है। अभी से ही पीछे पड़ गए है। ’

इसके बाद मम्मी ने क्या कहा। मुझे कुछ सुनाई नहीं दिया अपनी चाय का कप उठाकर मैं बाहर निकल आयी कॉलेज जाना था, 11 बजे की क्लास थी, पर बहुत अजीब सा महसूस कर रही थी। कुछ भारीपन सा था पूरे शरीर में, चलती थी तो हर कदम पर वजन सा लगता था। समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हो रहा है।

‘हेलो मैडम…’ पीछे से एक आवाज़ आई। मैं और अंशिका लाइब्रेरी में बैठ कर अपना असाइनमेंट तैयार कर रहे थे। अंशिका ने मुड़कर देखा और काफी खुश हो गयी। ना मैंने देखा ना जानने की कोशिश की, कि किसने आवाज़ दी।

‘शोर मत कीजिये’ लाइब्रेरियन मैडम ने टोका तब मैंने ध्यान दिया। पीछे मुड़ के देखा तो मुस्कुराये बिना नहीं रह सकी। तब तक आवाज़ देने वाला हमारे सामने आकर बैठ चुका था।

‘हाय समीर, कैसी रही ट्रिप?’

‘ठीक थी यार, इसको क्या हुआ?’ मुझे देखकर समीर ने पूछा।

‘पता नहीं यार, सुबह से उदास है। ’ अंशिका ने बड़ी ही थकी हुयी आवाज़ में जवाब दिया। बेचारी सुबह से मुझे मना मना के परेशान हो गयी थी।

‘अच्छा हुआ समीर तू आ गया, तू ही देख अब इसको। मुझे आज घर जल्दी जाना है। तब से इसे कह रही हूँ तू भी चल, मान नहीं रही। मैं जाती हूँ तू ही देखना अब इसको। ’

मुझे समीर के भरोसे छोड़ कर वो अपने घर निकल गई।

‘क्या बात है क्यों मुंह लटका रखा है?’ समीर ने पूछा।

‘कुछ नहीं यार, बस यूं ही’

‘यूं ही तो कुछ नहीं होता…. ज़्यादा सोच मत’ समीर की इस बात पर भी मैं खामोश ही रही।


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