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Ramesh Chandra Singh

Abstract

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Ramesh Chandra Singh

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पलायन

पलायन

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"जिंदगी गुजर गई, समय कैसे बीता पता ही न चला,।

मृत्यु शैया पर पड़े हुए एक अति वृद्ध साधू अचलानन्द ने अपने नवयुवक साधु चेले शिवानंद से कहा।

"क्यों महाराज ?"

"क्योंकि जीवन का सारा समय मैंने आश्रम के अंदर की राजनीति में ही गवाँ दिया पर निंदा,षड़यंत्रो और प्रपंचो में जीवन बीत गया।"

"फिर गृहस्थ आश्रम त्यागने का क्या लाभ हुआ महाराज ?"

"कुछ नहीं, अब सोचता हूँ इससे तो गृहस्थ आश्रम ही अच्छा था। न माया मिली न राम।"

चेला अभी-अभी साधुूबना था और जब से आश्रम में आया था साधुओं को किसी न किसी बात पर आपस में लड़ते देखता था।

"सुनो शिवानन्द, ईश्वर ने हर प्राणी को जनन की शक्ति से इसीलिए नवाजा है कि वह अपने परिवार की परवरिश करे और संसार के प्राणियों का कष्ट दूर करने की कोशिश करे न कि गृहस्थाश्रम से पलायन कर निकृष्ट जीवन व्यतीत करे।"

यह कहते हए अचलानन्द ने अपने प्राण त्याग दिए।

शिवानन्द ने  जीवन का वह रहस्य समझ लिया था जिसे वह कई बड़े महात्माओं के प्रवचन सुनकर भी न समझ पाया था।

अब उसने पुनः गृहस्थाश्रम में लौटने का संकल्प ले लिया था।


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