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Ramesh Chandra Singh

Drama

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Ramesh Chandra Singh

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जीवन का मर्म

जीवन का मर्म

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" जीवन निस्सार है, मोहमाया में लिपटा हुआ, इससे मुक्त होना ही तुम्हारे जीवन का उद्देश्य है।" गुरु ने अपने शिष्य से कहा।

"लेकिन जन्म लेते ही माता-पिता सन्तान मोह में क्यों पड़ जाते हैं गुरुदेव ?" 

"नासमझी के कारण, जो समझ जाते हैं वे संसार से विरक्त हो जाते हैं।"

" क्या उन्हें जीवन से भी मोह नहीं रह जाता ?" शिष्य की जिज्ञासा बढ़ गई थी।

"नहीं, उनके लिए तो जीवन ही भारस्वरूप है, इसीलिए तो ज्ञानी मोक्ष चाहते हैं।" महात्मा जी अभी शिष्य को समझा ही रहे थे कि एक विषधर उनकी ओर लपका। 

महात्मा जी डरकर भागे।

"अब समझा, मुझे अब और ज्ञान की जरूरत नहीं गुरुदेव। मैं मोहमाया में ही खुश हूँ।"

 शिष्य वहाँ से लौटने लगा। अब उसने जीवन का मर्म समझ लिया था।


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