चूहा और केंचुआ
चूहा और केंचुआ
"तुम गन्दे केंचुए, दूर भाग जा। तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेंरे बिल में आने की?"
खेत के चूहे ने नफरत भरी आँखों से केंचुए की ओर देखते हुए कहा,
"जा रहा हूँ, लेकिन यह मत भूलो कि मेंरी जिंदगी दूसरों की भलाई के लिए समर्पित है"
"कैसे?"
"मैं खेत की मिट्टी खाता हूँ तो बदले में खाद बनाकर लौटता हूँ। तुम फसलों को खाते ही नहीं उनको बर्बाद भी करते हो। जिस पत्तल में खाते हो उसी में छेद भी करते हो। इसीलिए तुम तिरस्कृत ही नहीं होते लोगों द्वारा मारे भी जाते हो"
तभी किसान ने चूहे को पकड़ने के लिए उसकी छेद में पानी डाला।
चूहे ने पानी में डूबते हुए कहा ,"सच कहते हो भाई, बड़ा होने से कोई बड़ा नहीं होता, बड़ा वही है जिसके कर्म बड़े होते हैं"
