पिता
पिता
आज 15 अक्टूबर है। मनस्वीत आज आठ वर्ष का हो गया। हर साल उसके जन्मदिन पर दोनों पिता -पुत्र इसी जगह पर आकर बैठते हैं। नदी के किनारे इसी पेड़ की घनी छाव पर राहुल मनस्वीत को लेकर आया करता है; उसकी माॅ, श्वेता से आशीर्वाद लेने। राहुल को यहाॅ आकर हरबार ऐसा महसूस होता है कि जैसे इस पेड़ की टहनियों और पत्तों के माध्यम से श्वेता की ममता मनस्वीत को स्पर्श करना चाहती हो! मनस्वीत को राहुल ने यहीं पहली बार अपने हाथों में उठाया था।
आज भी राहुल को ऐसा लगता है कि जैसे वह सब कल ही की बात हो! देखते देखते न जाने कैसे आठ साल बीत गए! यहाॅ की हर एक चीज में मानो श्वेता का बजूद घुल- मिल गया हो। यहाॅ की हवाओं में उसकी खिलखिलाहट वह महसूस करता है। इसकी फीजाएं उसकी खुशबू बिखेरा करता है। फैला हुआ आसमान मानो उसका आंचल हो और जमीन उसका वह सुंदर लहलहाता हरा लहंगा! जिसे वह हरियाली तीज के दिन पहना करती थी। बहुत बहुत प्यार करता था राहुल अपनी श्वेता से।
श्वेता जब भी उदास होती थी तो नदी के किनारे इस पेड़ के नीचे आकर अकसर बैठ जाया करती थी। राहुल भी अब यहाॅ दो पल बैठकर श्वेता से अपनी मन की बाते किया करता है।जबकि मनस्वीत उससमय इधर उधर कभी गिलहरी के पीछे तो कभी किसी तितली के पीछे भाग रहा होता है।
"देखो न श्वेता, तुम्हारा मुन्ना बिलकुल तुम पर गया है। उसके काले घुंघरालु बाल तुम्हारी याद दिलाती है। उसकी वह पानीदार भूरी आंखे, और वह मुंह दबाकर हंसना, तुम्हारे जैसा ह
ी है। जानती हो श्वेता, जब भी मुन्ना गुस्सा में होता है, वह भी बिलकुल तुम्हारी ही तरह खाना- पीना छोड़कर बैठ जाता है।"
" उसका बालमन मुझसे तरह-तरह के सवाल किया करती है, और मैं जवाब देते देते थक जाता हूं। अगर तुम यहाॅ होती , श्वेता, तो शायद तुम उसे अच्छे से समझा पाती।"
"पापू हम यहाॅ क्यों आते हैं?"
"मेरे बर्थडे के दिन ही क्यों आते हैं?"
" अपना बर्थडे मैं सैम की तरह मैकडोनल्ड में क्यों नहीं मना सकता?"
राहुल इन प्रश्नों का कोई जवाब नहीं दे पाता था। कैसे कहे वह मुन्ने से कि तेरी माॅ ने यहाॅ आत्महत्या की थी। इसी पेड़ के नीचे उसका अंतिम संस्कार किया गया था? किसी तरह मुन्ने से छिपाकर राहुल अपनी आंसू पोछ लिया करता है।
आज भी श्वेता की यादें उसके चश्में की शीशा को धुंधला कर जाया करती है।
इतनी देर में मनस्वीत राहुल के पास आता है और "पापू"," पापू" कहकर उसके गले में नन्ही नन्ही बाहें डालकर लटक जाता है और बड़े लाड़ से कहता है---" आप दुनिया के बेस्ट पापा हो।"
यह सुनकर राहुल की आंखों में फिर से आंसू आ जाते हैं।
राहुल श्वेता से कभी भी अपने प्यार का इजहार न कर पाया था। वह तो अपने सबसे प्यारे दोस्त मनोज और उसकी मंगेतर श्वेता के अंश मनस्वीत को बड़ा करके अपने प्यार से किए गए वायदे को निभाए जा रहा है।
प्रेम तो सब करते हैं परंतु कुछेक लोग ही ऐसे होते है जो इसे जीवनभर निभा जाते हैं।